'सूरा सो पहचानिए जो लरे दीन के हेत'
संवाद सहयोगी, हिसार : 'सूरा सो पहचानिए जो लरे दीन के हेत, पूरजा-पूरजा कट मरे कबहू न छाड़े खेत' अर्थात
संवाद सहयोगी, हिसार : 'सूरा सो पहचानिए जो लरे दीन के हेत, पूरजा-पूरजा कट मरे कबहू न छाड़े खेत' अर्थात शूरवीर की असली पहचान है कि जो दीन-दुखियों के लिए मर मिटे। यह बात भाई कुलदीप सिंह रागी जत्था ने नागोरी गेट स्थित गुरुद्वारा साहिब में गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा इतिहास शबद कीर्तन में उपस्थित साध संगतों को कही। शब्द कीर्तन से पूर्व प्रबंधक कमेटी के प्रधान रमिन्द्र सिंह शन्टी, महासचिव स. जसवंत सिंह, कुलविन्द्र सिंह गिल, बाबा सतनाम सिंह, हरविन्द्र सिंह टक्कर व प्रीतम सिंह जुनेजा ने गुरु की अरदास करवाकर शबद कीर्तन को शुरू करवाया।
शबद कीर्तन में भाई कुलदीप सिंह ने बताया कि गुरु गोबिन्द सिंह के साहिबजादे बाबा अजीत सिंह व बाबा जुझार सिंह ने किस प्रकार पौष माह में कड़ाके की ठंड में आमजन के लिए मुगलों से लड़ते हुए किस प्रकार अपनी शहादत दी। उन्होंने कहा कि उस समय मुगलों का शासन था और उनकी क्रूरता से आमजन परेशान थे। गुरु गोबिन्द सिंह महाराज अपने चारों साहिबजादों, माता गुजरी कौर व सिंहों के साथ आनंदपुर के साथ सहेड़ी की और जा रहे थे सिरसा नदी के किनारे उनके परिवार को अलग होना पड़ा। बड़े साहिबजादे 40 सिंहों की फौज के साथ चमकौर की गढ़ी में मुगलों की फौज से जा टकराए। लाखों की संख्या में मुगलों का सफाया करने के बाद दोनों साहिबजादे मात्र 19 व 15 वर्ष की उम्र में 40 सिंहों के साथ शहीद हुए। उनकी याद में चमकौर की गढ़ी जो पंजाब के रोपड़ जिले में स्थित है वहा गुरुद्वारा साहिब स्थापित हुआ। इसके अलावा भाई कुलदीप ¨सह ने 'ऐसी मरनी जो मरे, बोहर न मरना होय', 'मित्र प्यारा नू हाल मुरीदा दा कहिना', 'सा रसना धन-धन है मेरी जिंदड़िए', 'जाको हरि रग लागो इस युग महि सो कहीयत है सूरा' से उपस्थित संगतों को भाव विभोर किया। शबद कीर्तन के उपरात सरबत की भलाई की अरदास की गई व सभी संगतों के बीच लंगर बरताया गया। इस अवसर पर जसवंत सिंह भुल्लर, केएस गिल, बाबा सतनाम सिंह, हरविन्द्र सिंह टक्कर, हैड ग्रन्थी इकबाल सिंह, प्रीतम सिंह जुनेजा, संजीव सिंह, अमरीक सिंह, समय सिंह, सुखवंत सिंह, कुलवंत सिंह कंग आदि मौजूद रहे।

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