200 साल पुरानी 'पीली कोठी' को कायापलट का इंतजार
जागरण संवाददाता, हिसार : फिरोजशाह महल और जिंदल पार्क से सटी 'पीली कोठी'। करीब 203 साल पुरानी जर्ज
जागरण संवाददाता, हिसार :
फिरोजशाह महल और जिंदल पार्क से सटी 'पीली कोठी'। करीब 203 साल पुरानी जर्जर और ढहने के कगार पर खड़ी नायाब इमारत। इसकी दीवारों और गर्भ में इतिहास दफन है। शायद ही कोई जानता होगा कि फिरोजशाह महल के तहखाने से पीली कोठी को रास्ता जाता है। फिर भी अमूल्य धरोहर कोठी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। नशेड़ियों व बदमाशों की पनाहगाह बन चुकी कोठी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है।
जीर्णोद्वार को मोहताज पीली कोठी को तीन वर्षो से पुरातत्व विभाग को सुपुर्द करने की कवायद की जा रही है। मगर जिला प्रशासन के उदासीन रवैये के कारण मामला अटका हुआ है। वहीं कायापलट की बाट जोह रही पीली कोठी की नींव वक्त के साथ कमजोर होने लगी है। अगर समय रहते इसकी सुध नहीं ली गई तो इस अमूल्य धरोहर को हमेशा के लिए खो देंगे।
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ब्रिटिश काल में हुआ था निर्माण
इतिहास को खंगालें तो सन 1800 में पशुधन फार्म की जमीन पर बनी पीली कोठी का निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था। यहां फार्म की स्थापना के साथ ही अधिकारियों के लिए कोठी व दफ्तर बनाए गए थे। इसके अलावा फिरोजशाह महल और पीली कोठी के बीच गुप्त तहखाने होते थे।
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पवित्र जगह पर बनी है पीली कोठी
पुरातत्व विभाग की मानें तो पीली कोठी के नीचे बारहदरी है। यह इस्लामिक मजहब से संबंधित है और बहुत पवित्र जगह मानी जाती है। इसके ऊपर पीली कोठी का निर्माण किया गया था। आज भी बारहदरी के अवशेष कोठी के गर्भ में महफूज हैं। बस जरूरत है, इन्हें संजोए रखने की।
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बहती थी सरस्वती
दैनिक जागरण टीम ने फिरोजशाह महल के तहखानों में प्रवेश किया। चमगादड़ों की भरमार तहखाने अंधेरे में डूबे हुए थे। टॉर्च की रोशनी से उस बंद दरवाजे तक पहुंच गए, जहां से रास्ता पीली कोठी को जाता है। इतना ही नहीं यहां सरस्वती नदी बहती थी। आज भी उसके अवशेष वहां मौजूद हैं।
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1857 की गवाह कोठी
सन् 1857 में हिसार के डिस्ट्रिक कलेक्टर भी पीली कोठी में रुके थे। तब सारा खजाना लेकर यहां आ गए थे। उस दौर में कोठी परिसर सैन्य छावनी भी था। 29 मई 1857 को कलेक्टर की पुरानी कचहरी में गोली मारकर हत्या कर डाली थी।
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इस तरह बचेगी धरोहर
इस पीली कोठी की हालत जर्जर है। कारण, मरम्मत न होना है। इसके अलावा जिंदल पार्क के तरफ की दीवार जर्जर है और टूटी हुई है। इसी तरह कोठी की नींव को मजबूती देते हुए दीवारों को दुरुस्त किया जाए तो ढहने से बचाया जा सकता है। इसके अलावा रंग-रोगन करके कोठी की पहचान को लौटा सकते हैं।
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पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
पीली कोठी हिसार की शान है। इसकी अनदेखी का मतलब हमेशा के लिए पहचान को खो देना है। इसलिए समय रहते प्रशासन मामले पर संज्ञान लेकर पुरातत्व विभाग को कोठी सुपुर्द करे, ताकि इसका रखरखाव किया जा सके।
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वर्जन
पीली कोठी अमूल्य धरोहर है। इसे संजोए जाने की आवश्यकता है। इसके गर्भ व दीवारों में इतिहास दफन है। पर्यटन को बढ़ावा भी मिलेगा। पुरातत्व विभाग ही कोठी को संवार सकता है।
- आरके श्रीवास्तव, पूर्व सहायक निदेशक, पुरातत्व विभाग।
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वर्जन
अभी तक पीली कोठी पुरातत्व विभाग को हैंडओवर नहीं हुई है। अगर यह कोठी मिल जाती है तो इसकी कायापलट की जाएगी। यह धरोहर नायाब है। इसको संजोए तो पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता है।
- अनुराग, संरक्षण सहायक, पुरातत्व विभाग।
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हमारी तरफ से पीली कोठी को पुरातत्व विभाग को हैंडओवर करने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। हमारी तरफ से फाइल सरकार को भेजी जा चुकी है। वहीं से आगामी कार्रवाई होनी है।
- एसके बागोरिया, मुख्य अधीक्षक, पशुधन फार्म।
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