हिसार लेख: संगत से गुण होत हैं संगत से गुण जात साथियों के दबाव में न बिगाड़ें जीवन
संवाद सहयोगी, हिसार : जीवन में हम हमेशा किसी न किसी रूप में साथियों के दबाव में रहते है। व्यक्ति
संवाद सहयोगी, हिसार :
जीवन में हम हमेशा किसी न किसी रूप में साथियों के दबाव में रहते है। व्यक्ति के दिन चाहे बचपन के हों, जवानी की दहलीज या फिर बुढ़ापे का पायदान। साथी हमेशा महत्वपूर्ण होते हैं।
परन्तु साथियों के दबाव का ज्यादा अच्छा या बुरा प्रभाव किशोरावस्था या बचपन पर पड़ता है। इस उम्र में एक किशोर बौद्धिक, भावनात्मक, शारीरिक व मानसिक बदलाव से गुजरता है। इस दौरान साथियों का प्रभाव सबसे ज्यादा रहता है। कई बार मित्रों के दबाव के कारण हम कई गलत आदतों में पड़ जाते है। इसका खामियाजा मां-बाप व समाज को भुगतना पड़ता है। आज साथियों के दबाव की वजह से बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, सभी स्कूल, परिवार, समाज, कॉलेज इन समस्याओं से जूझ रहे हैं। अन्य साथी हमें किसी कार्य के लिए उकसाते हैं, डराते हैं, इन सबके बावजूद नहीं डिगने पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हैं ताकि आप उनके दबाव में वो काम करें जो वो चाहते हैं।
हम अक्सर देखते हैं कि जब छोटे बच्चे पार्क या स्कूल में खेलते हैं और जब कोई नया बच्चा उनका ग्रुप ज्वाइन करता है। तब उसे वही करना होता है जो ग्रुप के बाकि सदस्य कहते हैं। ऐसे में बच्चे को डर रहता है कि कहीं उसे समूह से निकाल न दें। इसका मतलब हम बचपन से ही साथियों के दबाव के शिकार होते हैं। कई बार हमें हमारे गु्रप के बच्चे किसी कार्य को करने के लिए उकसाते हैं कि कर के देख बड़ा मजा आता है या फिर अरे! ये तो बच्चा है ये नही कर सकता इसके बस का नही है। ये हमारे ग्रुप के लायक नहीं है। इस तरह कि स्थिति में बच्चा खुद को दूसरों की नजरों में साबित करने के लिए कई बार गलत कदम उठा लेता है। जिसके कारण वह गंदी आदतों को अपना लेता है।
इन आदतों में ड्रग्स लेना, अध्यापक व कक्षा के साथियों को परेशान करना, शरारतें, बदमाशियां करना व स्कूल में ना जाना आदि प्रमुखता से शामिल हैं। इसी प्रकार मूवी देखना, पढ़ाई न करना, मां-बाप की बात न मानना, धूम्रपान व अन्य कई जो कि हम अक्सर साथियों के दबाव में हीं करते हैं। स्पष्ट रूप में कहा जाए तो साथियों के दबाव से कई बार हमारा सामना हो सकता है। जिससे आज बच्चों को मुकाबला करना ही होगा। क्योंकि अब ये आपके हाथ में है कि हम जान बूझ कर साथियों के दबाव को अपने उपर हावी होने दिया जाए या नहीं। आपकी दृढ़ इच्छा शक्ति व सकारात्मक सोच इसमें आपकी बहुत मदद कर सकती है। कुछ भी गलत होने पर अपने बड़ों से या माता पिता से जरूर शेयर करना चाहिए, क्योंकि वे आपका सही मार्ग दर्शन कर सकते हैं। जिससे कि हमें फायदा हो, एवं हम साथियों के दबाव से बाहर निकल सकें। साथियों का दबाव नकारात्मक हो ये जरूरी नहीं है। बहुत समय ये सकारात्मक भी हो सकता है। साथी अगर सही हो तो बड़ी से बड़ी मुश्किल को आसान भी किया जा सकता है। मदद मिलती है तो अच्छे साथियों की संगत से आत्मविश्वास भी । बस सही व सुदृढ़ मार्गदर्शन की जरूरत होती है। अगर बच्चों को सही दिशा निर्देश नहीं दिये जाए तो बच्चे अपनी ऊर्जा को गलत दिशा में लगाना शुरू कर देते हैं। बच्चों को संस्कार देने की जिम्मेवारी केवल मां-बाप की ही नहीं बल्कि स्कूल, सामाजिक संस्थाओं और बुजुर्गो की भी है। ताकि आगे आने वाली पीढ़ी बढ़ते साथियों के दबाव के कारण अपना अहित न कर बैठें। सही संस्कार देने से बच्चे पहचान पाएंगे कि कौन गलत है क्या सही है। क्या करना है क्या नहीं करना है। इन्हीं बातों को लेकर बच्चे सही और अच्छे साथियों का चुनाव भी कर पाएंगे। साथियों का चुनाव बच्चे सही कर रहे हैं या गलत इस विषय में शिक्षक की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षक बच्चों के आभिभावक से बात कर सकते हैं। बच्चों को जागरूक कर सकते हैं। तब सही साथियों का चुनाव करना बहुत आसान होगा।
-दिनेश चंद्र सेमवाल, शिक्षाविद्, हिसार।
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