शौर्य गाथा: बलिदानी घोषित होने के बाद भी जिदा लौटे योद्धा बलबीर सिंह
देश सेवा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले योद्धाओं के किस्से तो अनेक हैं लेकिन फाजिलपुर गांव के रहने वाले सिपाही बलबीर सिंह बेदी का किस्सा बेहद रोमांचक है।
महावीर यादव, बादशाहपुर (गुरुग्राम)
देश सेवा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले योद्धाओं के किस्से तो अनेक हैं, लेकिन फाजिलपुर गांव के रहने वाले सिपाही बलबीर सिंह बेदी का किस्सा बेहद रोमांचक है। 1965 के भारत-पाक के लड़ाई में दुश्मन के दांत खट्टे करने वाले योद्धा बलबीर सिंह के घर पर देश के लिए प्राणों का बलिदान देने का तार आ गया था। फौज में ही उनके अंतिम संस्कार की तैयारियां की जा रही थी। अंतिम संस्कार के समय सैन्य-सम्मान देते वक्त एक साथी ने उनके शरीर में कुछ हलचल देखी। इसकी सूचना वरिष्ठ अधिकारियों के दी गई। उसके बाद उनको हेलीकॉप्टर से पुणे अस्पताल में भर्ती कराया गया। काफी दिन कोमा में रहने के बाद वे ठीक हो गए और सकुशल घर लौट आए।
सिपाही बलबीर सिंह बेदी का जन्म 1943 को नरसिंहपुर गांव में हुआ। बाद में उनका परिवार फाजिलपुर में रहने लगा। 1963 को राजपूत रेजीमेंट भारतीय सेना में भर्ती हुए। दो साल बाद ही भारत पाकिस्तान की 1965 की लड़ाई छिड़ गई। जम्मू से आगे छमजोड़ियां पोस्ट पर उनकी तैनाती थी। उस लड़ाई में दुश्मनों से लोहा लेते हुए बलबीर सिंह के शरीर पर 16 गोलियां लगी। सेना ने उनको बलिदानी घोषित कर दिया।
उस समय घर पर तार आया कि सिपाही बलबीर सिंह ने अपने प्राणों का देश सेवा के लिए बलिदान दे दिया। घर मे मातम छा गया। कुछ दिनों बाद जब सिपाही बलबीर की धर्मपत्नी धौला देवी की विधवा पेंशन के लिए आर्मी हेडक्वार्टर गई तो पता चला कि बलबीर जिदा हैं। पर अभी कोमा में हैं। पुणे अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है उनके शरीर पर 16 गोलियां लगी थी। एक पैर बिल्कुल खत्म होने के कगार पर है। हाथ की उंगलियां भी काटनी पड़ी हैं। कमर और पेट का बड़ा ऑपरेशन हुआ है। कुछ दिन बाद जब बलबीर सिंह कोमा से बाहर आए तो वह अपने परिवार के पास आ गए। परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बलबीर सिंह के दो बेटे और दो बेटियां हैं। एक बेटा रोहताश सिंह बेदी कांग्रेस के नेता है। सोहना विधानसभा क्षेत्र से रोहतास बेदी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं। बलबीर सिंह बेदी का परिवार हमेशा ही देश सेवा के लिए तत्पर रहा है। बलबीर सिंह बेदी के पिता अमीलाल भी सेना में थे। उनके ताऊ चौधरी निहाल सिंह ने आजाद हिद फौज में रहते हुए अपना बलिदान दिया था। चाचा चौधरी भूप सिंह सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद फाजिलपुर गांव के सरपंच बने।
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