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शौर्य गाथा: 15 पाक घुसपैठियों को मौत के घाट उतार प्राणों का बलिदान दिया हवलदार श्योदान सिंह ने

मां भारती की रक्षा करते हुए प्राणों का बलिदान देने वाले सैनिकों पर परिवार को ही नहीं बल्कि पूरे समाज को नाज होता है। ऐसे वीर बलिदानियों का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। देश व समाज उनको हमेशा याद रखता है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 25 Jul 2021 05:09 PM (IST)Updated: Sun, 25 Jul 2021 05:51 PM (IST)
शौर्य गाथा: 15 पाक घुसपैठियों को मौत के घाट उतार प्राणों का बलिदान दिया हवलदार श्योदान सिंह ने

महावीर यादव, बादशाहपुर (गुरुग्राम)

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मां भारती की रक्षा करते हुए प्राणों का बलिदान देने वाले सैनिकों पर परिवार को ही नहीं बल्कि पूरे समाज को नाज होता है। ऐसे वीर बलिदानियों का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। देश व समाज उनको हमेशा याद रखता है। सहजावास गांव के ऐसे ही रणबांकुरे हवलदार श्योदान सिंह ने दुश्मनों से लोहा लेते हुए देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। गांव के बाहर मुख्य मार्ग पर हवलदार श्योदान सिंह की आदमकद प्रतिमा लगाई गई है। उनकी पत्नी वीरांगना सुमन देवी को पति के बलिदान पर गर्व है। पति के बलिदान के बाद उन्होंने मजबूती से परिवार को संभाला। हवलदार श्योदान सिंह के बलिदान को सभी नमन कर हमेशा याद करते हैं।

18 नवंबर, 1999 को कारगिल में माछिल चोटी पर पाकिस्तानी घुसपैठिये गोले बरसाए जा रहे थे। भारतीय सेना की टुकड़ी आगे बढ़ती जा रही थी। टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे हवलदार श्योदान सिंह। उन्होंने 15 पाक घुसपैठियों को मार गिराया था। सामने चोटी पर बंकर पर पांच पाक घुसपैठियों के होने की सूचना थी। उनको मौत के घाट उतारने के लिए हवलदार श्योदान सिंह आगे बढ़ते गए। बंकर से दुश्मनों ने गोला फेंका। उससे श्योदान बुरी तरह जख्मी हो गए। उसके बाद भी उन्होंने तीन पाक घुसपैठियों को मौत के घाट उतार दिया। सेना की टुकड़ी ने दो अन्य हमलावरों को भी मार गिराया था। सभी जवान चोटी पर तिरंगा फैलाकर भारत माता के जयकारे लगा रहे थे। भारत माता के जयकारे लगाते हुए ही हवलदार श्योदान सिंह ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। सैनिक परिवार से संबंध रखने वाले श्योदान सिंह का बचपन से ही सेना में जाने का सपना था। पिता आजाद हिद सेना में थे। मां भारती को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी। सात साल जेल में भी रहना पड़ा था।


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