ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया..
गीतकार और शायर राहत इंदौरी इस नज्म को अक्सर दोहराया करते थे। शहर में कई बार अदबी महफिलों में अपनी मौजूदगी से खुशबू बिखेरने वाले राहत इंदौरी के निधन की खबर से प्रशंसकों को रुला गई।
प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम
'दो गज सही, मगर यह मेरी मिल्कियत तो है।
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया।'
शायर राहत इंदौरी इस शेर को अक्सर दोहराया करते थे। शहर में कई बार अदबी महफिलों में अपनी मौजूदगी से खुशबू बिखेरने वाले राहत इंदौरी के निधन की खबर प्रशंसकों को रुला गई। अपने बेबाक अंदाज और जज्बातों को लफ्जों में पिरोने की अद्भुत कला उन्हें बाकी शायरों से अलग खड़ा करती थी। दैनिक जागरण द्वारा करवाए जाने वाले वार्षिक कवि सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति मात्र लोगों में उत्साह भर देती थी। शहर के मुरीदों ने दैनिक जागरण से अपने संदेश साझा किए। कवि सम्मेलनों में सक्रियता से हिस्सा लेने वाली ऋचा अरोड़ा का कहना है कि राहत इंदौरी का जाना अदब के सीने का वह गहरा भाव है जो कभी नहीं भर सकता। प्रो. सुभाष सपड़ा का कहना है कि दैनिक जागरण के कवि सम्मेलन में उन्हें सुनने का अवसर प्राप्त हुआ था। वह अपने अलग अंदाज से शायरी में रस घोल देते थे।
शिक्षाविद डॉ. अशोक दिवाकर ने कहा कि उन्हें गर्व है कि दैनिक जागरण के मंच पर उन्हें सुनने और उनके विचार जानने का अवसर प्राप्त हुआ था। वे सच को सच कहने वाले और विदेश में भी देश की जयकार करने वाले शायर थे। कवि सुंदर कटारिया ने कहा कि शायरी को अपने अंदाज से और खूबसूरत बनाने की कला थी उनमें। हर दिल अजीज शायर ने हर वक्त मौत को परम सच मानने की सीख दी और यह बात उनकी रचनाओं से बखूबी झलकती है। वे नहीं उनके शब्द उन्हें हमेशा लोगों को दिलों में जिदा रखेंगे।
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