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    'रॉकस्टार' से पहले के रॉकस्टार हैं हम : निजामी बंधु

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 21 Sep 2017 02:56 PM (IST)

    बॉलीवुड फिल्म रॉकस्टार में 'कुन फाया कुन' कव्वाली गाकर लोगों के दिलों तक पहुंचने वाल ...और पढ़ें

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    'रॉकस्टार' से पहले के रॉकस्टार हैं हम : निजामी बंधु

    बॉलीवुड फिल्म रॉकस्टार में 'कुन फाया कुन' कव्वाली गाकर लोगों के दिलों तक पहुंचने वाले निजामी बंधु बुधवार को एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए शहर के साइबर हब पहुंचे। निजामी बंधु हजरत निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो से संबंध रखने वाले 750 साल पुराने सिकंदरा घराने के कव्वाल हैं। हाल-ही में आई सलमान खान की फिल्म बजरंगी भाईजान में भी इन्होंने कव्वाली गाई है। निजामी बंधु अपनी कव्वाली में क्लासिकल गायन का भी इस्तेमाल करते हैं। कव्वाली के बदलते स्वरूप और युवाओं की पसंद को लेकर निजामी बंधु जोड़ी के चांद निजामी से दैनिक जागरण संवाददाता हंस राज ने की खास बातचीत -

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    कव्वाली गायन से आपका खानदान 750 सालों से जुड़ा हुआ है, आप अपने अनुभव साझा कीजिए

    जब मैं आठ साल का था तब से अपने वालिद के साथ दरगाह में होने वाले कव्वाली में शिरकत करना शुरू कर दिया था। उस दरम्यान मैं कम से कम चार घंटे रियाज जरूर करता था। कव्वाली गायन हमें विरासत में जरूर मिली है पर हम इसे सिर्फ परंपरा का निर्वाहन मात्र नहीं मानते हैं।

    क्या आपका पूरा परिवार कव्वाली गायन से जुड़ा है?

    नहीं हमारे परिवार में इंजीनियर और डॉक्टर भी हैं, सभी कव्वाली से नहीं जुड़े। हां, लेकिन खून तो कव्वालों का ही है। कितना भी कुछ कर लें लेकिन गाना बजाना नहीं छूटता। एक न एक चिराग खानदान का नाम रोशन करता है बस इसी तरह यह परंपरा भी कायम है। मेरे बड़े भाई फरीद निजामी के इंतकाल के बाद उनके बच्चों शदाब और सोहराब ने मुझसे सीखा और अब वो मेरे तीनों बेटे गुल खान, गुलफ़ाम और कामरान को कव्वाली सिखा रहे हैं। कव्वली हमारे लिए पेशा नहीं परंपरा है।

    सिकंदरा घराने के कव्वाली में क्या खास है?

    हम कव्वाली में क्लासिकल का भी उपयोग करते है, जो किसी घराने में नहीं है। यही वजह है कि लोग आज भी उसी चाव से सुनते हैं और बच्चे सीखने आते हैं।

    फिल्मों में कव्वाली का ट्रेंड बढ़ा है, क्या यह कव्वाली को पहचान दे रही है ?

    मेरे बुजुर्ग कहते हैं कि क्लासिकल गाना लोहे के चने चबाने जैसा है। ऐसा कुछ कव्वाली के साथ भी है। यदि अब भी पुराने ढंग से कव्वाली गाई जाएगी तो लोग इससे दूर भागेंगे। यही कारण है कि अब कव्वाली में ¨हदी, पंजाबी जैसी भाषाओं का मिश्रण कर उसे आसान बनाया गया है। फिल्मों में भी यह पसंद की जाती है। जहां तक पहचान की बात है तो कुछ लोग कहते हैं कि रॉकस्टार ने हमें प्रसिद्धि दी है।

    फिल्मी कव्वाली और सूफी कव्वाली में क्या भिन्नता है?

    असल में जो सूफी कव्वाली है वो दरगाहों, खानकाहों, मंदिरों और गुरुद्वारे में गाई जाती है। कव्वाली फिल्मों में पहले से भी गाई जाती रही है लेकिन वो सूफी कव्वाली नहीं होती थी। लेकिन पिछले 12-15 सालों में फिल्मों में सूफी कव्वाली का प्रचलन बढ़ा है और लोग इसे पसंद भी कर रहे हैं।