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फर्जी काल सेंटर में लागत और कमाई का अंतर जानकर रह जाएंगे हैरान, हाईटेक धोखाधड़ी के लिए बिछाया जाता है जाल

कम लागत में अधिक कमाई का सबसे बड़ा धंधा है फर्जी काल सेंटर का संचालन। 40 से 50 लाख रुपये खर्च करके सात से 70 करोड़ रुपये तक कमाने का लक्ष्य तय किया जाता है। लक्ष्य पूरा होते ही एक जगह से सेंटर बंद करके दूसरी जगह शुरू कर दिया जाता है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Sun, 13 Jun 2021 01:32 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jun 2021 01:32 PM (IST)
फर्जी काल सेंटर में लागत और कमाई का अंतर जानकर रह जाएंगे हैरान, हाईटेक धोखाधड़ी के लिए बिछाया जाता है जाल
पिछले कुछ सालों से साइबर सिटी ही नहीं, बल्कि दिल्ली-एनसीआर में फर्जी काल सेंटरों का जाल बिछना शुरू हुआ है।

गुरुग्राम, [आदित्य राज]। कम लागत में अधिक कमाई का सबसे बड़ा धंधा है फर्जी काल सेंटर का संचालन। 40 से 50 लाख रुपये खर्च करके सात से 70 करोड़ रुपये तक कमाने का लक्ष्य तय किया जाता है। लक्ष्य पूरा होते ही एक जगह से सेंटर बंद करके दूसरी जगह शुरू कर दिया जाता है। देश के भीतर धोखाधड़ी की राशि प्रति व्यक्ति 15 से 16 हजार एवं विदेश में 35 से 40 हजार रुपये निर्धारित की जाती है।

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अधिकतर लोग इतनी राशि की धोखाधड़ी को लेकर थाने में शिकायत करने नहीं पहुंचते हैं। पिछले कुछ सालों से साइबर सिटी ही नहीं, बल्कि दिल्ली-एनसीआर में फर्जी काल सेंटरों का जाल बिछना शुरू हुआ है। गुरुग्राम में ही अकेले कुछ वर्षो के दौरान लगभग 40 फर्जी काल सेंटर पकड़े जा चुके हैं। सूत्रों का कहना है कि यह मुनाफे का ऐसा धंधा है कि जिसने एक बार इसकी कमाई देख ली, वह इससे दूर रह ही नहीं सकता। जेल से बाहर आते ही नाम बदलकर दूसरी जगह काम शुरू कर देता है। यही वजह है कि फर्जी काल सेंटरों के ऊपर लगाम नहीं लग पा रही है।

लालच व डर दिखाकर करते हैं वसूली

सेंटरों के कर्मचारी फोन करके कहते हैं कि आपका इनाम निकला है, आपका गिफ्ट वाउचर आया है आदि। इससे देश के लोग हों या विदेश में बैठे लोग, सभी आकर्षित हो जाते हैं। जैसे ही वे लालच में आते हैं, उनसे रजिस्ट्रेशन के बदले या किसी-न-किसी बहाने पैसे वसूलते हैं। यही नहीं, पहले कंप्यूटर सिस्टम में वायरस भेज देते हैं। फिर उसे ठीक करने के नाम पर वसूली करते हैं। सोशल सिक्योरिटी नंबर ब्लाक करने का डर दिखाकर वसूली करते हैं। इस तरह छह महीने के भीतर सेंटर के संचालन पर जहां 40 से 50 लाख रुपये खर्च होते हैं, वहीं वसूली करोड़ों में होती है।


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