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नहीं रहे जाने माने इतिहासकार डाॅ. केसी यादव

रेवाड़ी जिले के गांव नाहड़ में सन 1936 में जन्में डा. केसी यादव यादव कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में 30 वर्षों तक इतिहास के प्रोफेसर एवं डीन के पद कार्यरत रहे। 30 से अधिक इतिहास एवं संस्कृति पर आधारित पुस्तकें लिखीं। वह जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे।

By Aditya RajEdited By: Published: Thu, 27 May 2021 10:52 PM (IST)Updated: Thu, 27 May 2021 11:10 PM (IST)
नहीं रहे जाने माने इतिहासकार डाॅ. केसी यादव
इतिहासकार व हरियाणा इतिहास एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व निदेशक 84 वर्षीय डा. केसी यादव का निधन हो गया।

गुरुग्राम [आदित्य राज]। जाने माने इतिहासकार व हरियाणा इतिहास एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व निदेशक 84 वर्षीय डा. केसी यादव का बृहस्पतिवार सुबह हृदयाघात से निधन हो गया। वह वर्तमान में गुरुग्राम के सेक्टर-23 इलाके में परिवार सहित रह रहे थे। उनका अंतिम संस्कार बृहस्पतिवार दोपहर इलाके के श्मशान स्थल पर किया गया। बड़े बेटे डा. नीरज यादव ने उन्हें मुखाग्नि दी।

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मूल रूप से रेवाड़ी जिले के गांव नाहड़ में सन 1936 में जन्में डा. केसी यादव यादव कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में 30 वर्षों तक इतिहास के प्रोफेसर एवं डीन के पद कार्यरत रहे। 30 से अधिक इतिहास एवं संस्कृति पर आधारित पुस्तकें लिखीं। वह जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे। शोध को लेकर अमेरिका सहित कई देशों की यात्राएं की थीं। उन्होंने हिंदी पत्रकारिता के मसीहा कहे जाने वाले साहित्यकार एवं मूर्धन्य पत्रकार स्व. बाबू बालमुकुंद गुप्त पर एक दर्जन से अधिक शोध कृतियों का लेखन एवं संपादन किया।

पिछले दिनों उन्होंने इंग्लैंड के रोलट प्रकाशन से प्रकाशित होने वाली उनकी पुस्तक ट्रायल आफ बहादुर शाह को अंतिम रूप दिया था। बाबू बालमुकुंद गुप्त पत्रकारिता एवं साहित्य संरक्षण परिषद के महासचिव सत्यवीर नाहड़िया एवं रेजांगला युद्ध स्मारक समिति के संयोजक डा. टीसी राव सहित विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक एवं शैक्षणिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। सभी ने उनके निधन को इतिहास एवं संस्कृति के क्षेत्र में अपूर्णीय क्षति बताया है। वह सामाजिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर भूमिका निभाते थे। प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के इतिहास एवं संस्कृति के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए दूसरे प्रदेशों से विद्यार्थी ही नहीं बल्कि शिक्षाविद् तक पहुंचते थे।


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