बदलता परिवेश : दरकते रिश्तों में नई जान डाल रहे रिलेशनशिप कंसल्टेंट
प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम बदलते सामाजिक परिवेश में रिश्तों के मायने भी तेजी से बदल रहे ह ...और पढ़ें

प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम
बदलते सामाजिक परिवेश में रिश्तों के मायने भी तेजी से बदल रहे हैं। तेजी से आगे बढ़ने की ललक के साथ कहीं प्रतिस्पर्धा और कहीं जिम्मेवारियों का बोझ रिश्तों में विश्वास की नींव को खोखला करता जा रहा है। इसका ही असर है कि हम थोड़ा अतिरिक्त दबाव महसूस करते ही टूटने लगते हैं। बढ़ता दबाव हमारे लिए तनाव का कारण भी बनता जा रहा है और इस तनाव में हम ऐसे कदम उठा बैठते हैं कि जिसका खामियाजा हमारे परिवार व अपनों को भी झेलना पड़ता है। रिश्ते अपनी मजबूती खोते जा रहे हैं। पैसा कमाने की दौड़ व सफलता की होड़ ने रिश्तों की डोर को नाजुक बना दिया है। कहीं तलाक के मामले बढ़ रहे हैं तो कहीं माता पिता व बच्चों के बीच दूरियां बढ़ रही हैं। लोगों को अपने दरकते रिश्तों को बचाने की ¨चता सताने लगी है। लोग रिश्तों को बचाने के लिए रिश्तों की बागडोर कंसल्टेंट व रिलेशनशिप मैनेजर के हांथों में थमा रहे हैं।
क्या है रिलेशनशिप कंसल्टेंसी
रिश्तों में आ रही दूरियों को मिटाने व नयापन लाने के लिए लोगों को टिप्स दिए जाते हैं। रिलेशनशिप कंसल्टेंट लोगों के परिवार व रिश्तों पर बाकायदा अध्ययन करते हैं। उनकी परेशानियों को समझते हैं और फिर उन्हें रिश्तों में नई जान डालने के लिए सुझाव देते हैं। इसके लिए कंसल्टेंट टाइम मैनेजमेंट, मनोरंजन, आउ¨टग आदि का सुझाव देते हैं। वे इन चीजों के लिए बाकायदा टाइम टेबल बनाते हैं और लोग इसे फॉलो करते हैं। दिल्ली की रिलेशनशिप कंसल्टेंट निहारिका ¨सह के मुताबिक लोग रिश्ते बचाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें लाइफ की भागदौड़ व अन्य चीजों को मैनेज करने के बीच रिश्ते संभालने की समझ नहीं रह जाती। ऐसे में कंसल्टेंट उन्हें रिश्तों को ¨जदा रखने के टिप्स देते हैं।
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सबकुछ बहुत तेजी से बदल रहा है। बदलाव की इस बयार में रिश्ते प्रभावित होना लाजमी है, लेकिन अब लोग रिश्तों की बचाव की दिशा में लौट रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि लोगों को समझ में आ गया है कि असुरक्षा भरे इस वातावरण में सुरक्षा की न्यूनतम बुनियादी जरूरत अगर कोई पूरा करता है तो वह है परिवार व रिश्ते। इसके लिए ¨जदगी में ठहराव बहुत जरूरी है। बदलाव व ठहराव की इस प्रक्रिया से पता चलता है कि अगर ठहर कर चीजों को देखा जाए तो ज्यादा सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। रिश्तों की सुरक्षा कहीं न कहीं आजादी के साथ समझौते के तौर पर देखी जाती है। लोग इस बात को समझने लगे हैं रिश्तों की सुरक्षा अधिक आवश्यक है।
- प्रो. आनंद प्रकाश, साइकोलॉजिस्ट, दिल्ली यूनीवर्सिटी
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लोगों का फोकस बदला है। लोग रिश्तों को लेकर गंभीर हुए हैं और चीजें सही दिशा में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। यह एक चक्र है। बच्चों की फीस भरनी है, अच्छा लाइफस्टाइल रखना है तो पैसा कमाना पड़ेगा, पैसा कमाने की होड़ में पारिवारिक जिम्मेदारियां नेगलेक्ट होंगी, लेकिन इस चक्र को कैसे सुधारना है इसपर हमें काम करना होगा। इस केस में हमारी भी समाज के प्रति जिम्मेदारी बनती है कि इस काम को पैसों से न तौलें व लोगों को सही तरीके से सलाह दें। लोगों को परिवार का महत्व समझ में आ रहा है। उन्हें अब अंदाजा हो रहा है कि घर में खुशहाली रहेगी तो सुकून का जीवन मिलेगा।
- डॉ. गरिमा यादव, साइकोलॉजिस्ट व रिलेशनशिप एक्सपर्ट, गुरुग्राम

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