आंखों में जलन, गले में खराश... गुरुग्राम में गला घोंट रहा वायु प्रदूषण, दिखावे में उलझा 'सिस्टम'
गुरुग्राम में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, जिससे लोगों को आंखों में जलन और गले में खराश जैसी समस्याएं हो रही हैं। प्रशासन प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर केवल दिखावा कर रहा है, जिससे नागरिकों में निराशा है। लोग सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग कर रहे हैं ताकि उन्हें इस जहरीली हवा से बचाया जा सके।
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जागरण संवाददाता, गुरुग्राम। आंखों में जलन, गले में खराश। न मार्निंग वाक न शाम की सैर। लोग घरों में कैद होने लगे हैं। प्रदूषण की यह हर साल की कहानी है। अक्टूबर से लेकर फरवरी तक गुरुग्राम गैस चैंबर बन जाता है। गुरुग्राम में बुधवार को एयर क्वालिटी इंडेक्स 223 दर्ज किया गया। उपाय के नाम पर ग्रेडिड रिस्पांस एक्शन प्लान यानी ग्रेप लागू है, लेकिन इसके नियम धूल और धुएं में उड़ रहे हैं।
सड़क पर पानी का छिड़काव, वाहनों पर जुर्माना और निर्माण कार्यों पर अस्थायी रोक को ही उपाय मान लिया जाता है। असलियत यह है कि प्रदूषण गुरुग्राम के सिस्टम, अव्यवस्था और लापरवाही का नतीजा है। शहर की सड़कों पर बिखरा कूड़ा, खुले में धूल उड़ाते निर्माण स्थल, सीएंडडी वेस्ट के ढेर और निष्क्रिय सफाई एजेंसियां मिलकर इसे ‘गैस चैंबर’ बना रही हैं।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नगर निगम के बीच समन्वय की कमी, मापक यंत्रों की सीमित संख्या और योजनाओं का केवल कागजों पर रह जाना स्थिति को और भयावह बना रहा है। जब तक सिस्टम जागेगा, तब तक सर्दी गुजर जाएगी। हर साल की तरह इस साल भी वही क्रम दोहराया जा रहा है।
प्रदूषण बढ़ा, ग्रेप लागू हुआ, पानी छिड़का गया और रिपोर्टें बन गईं, लेकिन सवाल अब भी वहीं है, स्थायी समाधान कब होगा? सवाल यह है भी है कि जब करोड़ों रुपये सफाई और नियंत्रण पर खर्च किए जा रहे हैं, तो फिर हवा इतनी जहरीली क्यों है? आखिर कब तक गुरुग्राम के 40 लाख लोगों का दम ऐसे ही घुटता रहेगा और जिम्मेदार अधिकारी मूकदर्शक बने रहेंगे। प्रस्तुत है गुरुग्राम के वरिष्ठ संवाददाता संदीप रतन की रिपोर्ट :
सड़कों पर आ रहा 30 प्रतिशत कूड़ा, माचिस हो रहा निपटान
नगर निगम के आंकड़ों के अनुसार, शहर से निकलने वाले कचरे का केवल 65 से 70 प्रतिशत ही उठान हो पा रहा है। बाकी 30 प्रतिशत कूड़ा सड़कों, नालों और खाली प्लाटों पर फेंक दिया जाता है। इनमें बड़ी मात्रा में जलने योग्य कचरा, प्लास्टिक और पॉलीथिन घरेलू वस्तुएं होती हैं, जो हवा में प्रदूषक तत्व घोलती हैं। जगह-जगह खुले में जलाया जा रहा कचरा प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बन चुका है। कूड़ा निस्तारण में एजेंसियों की लापरवाही और निगम की निगरानी की कमी साफ झलकती है।
इस धूल का कोई इलाज नहीं
गुरुग्राम की सड़कों पर सफाई के नाम पर 16 मैकेनिकल रोड स्वीपिंग मशीनें तैनात हैं, लेकिन अधिकतर मशीनें या तो बंद पड़ी हैं या खानापूर्ति के लिए इस्तेमाल हो रही हैं। जिन मार्गों पर इन मशीनों से सफाई होती है, वहां भी धूल का जमाव बना रहता है।
सड़क किनारे उड़ती धूल और टूटे फुटपाथ शहर को एक स्थायी धूलकण स्रोत बना चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक सड़क किनारे की मिट्टी को पक्का नहीं किया जाएगा और नियमित सफाई नहीं होगी, तब तक एक्यूआइ में सुधार संभव नहीं है।
टैंकर छिड़क रहे पानी, लेकिन कहां?
ग्रेप लागू होते ही नगर निगम और निजी एजेंसियां सड़कों पर पानी छिड़कने की औपचारिकता शुरू कर देती हैं। लेकिन हकीकत यह है कि टैंकरों का पानी सीमित मुख्य सड़कों तक ही पहुंचता है।
आंतरिक कॉलोनियों, सर्विस लेन और औद्योगिक इलाकों में यह छिड़काव शायद ही कभी होता हो। नतीजा यह कि कुछ किलोमीटर के बाद धूल फिर से उड़ने लगती है। प्रदूषण विशेषज्ञों का कहना है कि छिड़काव से अस्थायी राहत मिलती है, यह स्थायी समाधान नहीं है।
बिल्डर धूल में उड़ा रहे नियम
500 वर्ग मीटर या इससे बड़े निर्माण स्थलों को डस्ट पोर्टल पर पंजीकरण कराना अनिवार्य है। यह नियम इसलिए बनाया गया था ताकि हर निर्माण साइट की मॉनिटरिंग हो सके और वहां एंटी-स्माग उपकरण लगाए जा सकें।
लेकिन शहर के अधिकतर बिल्डर इस नियम की अनदेखी कर रहे हैं। डस्ट पोर्टल पर रजिस्टर्ड साइटों की संख्या गिनी-चुनी है, जबकि शहर में सैकड़ों परियोजनाएं चल रही हैं। निर्माण सामग्री खुले में पड़ी रहती है और धूल उड़ती रहती है। प्रशासन की ओर से जांच और कार्रवाई नगण्य है।
सड़कों के किनारे फेंक रहे सीएंडडी वेस्ट
निर्माण और ध्वस्त सामग्री (सीएंडडी वेस्ट) को निस्तारित करने की व्यवस्था होने के बावजूद इसका अधिकतर हिस्सा सड़कों के किनारे या खाली जमीनों पर फेंक दिया जाता है। इससे न केवल धूल उड़ती है बल्कि जलभराव और ट्रैफिक की समस्या भी बढ़ जाती है। यदि वेस्ट को रीसाइक्लिंग प्लांट तक पहुंचाया जाए तो प्रदूषण में 10 से 15 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।
बंधवाड़ी लैंडफिल पर पड़ा 14 लाख टन कूड़ा
गुरुग्राम में बंधवाड़ी लैंडफिल साइट पर 14 लाख टन कूड़ा सड़ रहा है, जिससे जहरीली गैसें और धुआं लगातार वातावरण में घुल रहा है। कूड़ा निस्तारण का काम रुका हुआ है और नया टेंडर 7 नवंबर को खुलना प्रस्तावित है। इस देरी ने प्रदूषण की स्थिति को और गंभीर बना दिया है। जब तक कचरा प्रोसेसिंग प्लांट पूरी तरह चालू नहीं होता, तब तक बंधवाड़ी शहर का सबसे बड़ा प्रदूषण स्रोत बना रहेगा।
बजट मिला, दस एंटी स्मॉग गन का इंतजार
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दो महीने पहले नगर निगम को दस करोड़ रुपये का बजट एंटी-स्मॉग गन खरीदने के लिए जारी किया था। योजना थी कि शहर के प्रमुख मार्गों और प्रदूषण हॉटस्पॉट्स पर दस मशीनें लगाई जाएंगी, लेकिन अब तक टेंडर प्रक्रिया ही पूरी नहीं हुई। नतीजा यह है कि हवा जहरीली होती जा रही है और गन अब भी कागजों में फंसी हैं।
सफाई एजेंसियों को करोड़ों का भुगतान, काम जीरो
शहर में सफाई का जिम्मा छह एजेंसियों और चार डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन कंपनियों के पास है। इनके पास पर्याप्त मशीनें, वाहन और संसाधन नहीं हैं, फिर भी नगर निगम हर महीने करोड़ों रुपये का भुगतान करता है।
कामकाज की मॉनीटरिंग का कोई ठोस सिस्टम नहीं है। कई क्षेत्रों में हफ्तों तक सफाई नहीं होती। यह स्थिति बताती है कि सफाई व्यवस्था का बजट तो बड़ा है, लेकिन जिम्मेदारी और पारदर्शिता नाम की कोई चीज नहीं है।
सिर्फ चार प्रदूषण मापक यंत्र
लगभग 40 लाख की आबादी वाले गुरुग्राम में केवल चार प्रदूषण मापक यंत्र हैं। विकास सदन, सेक्टर 51, ग्वाल पहाड़ी और मानेसर सेक्टर 2 में यंत्र लगे हैं। पूरे शहर के वायु गुणवत्ता आंकड़े अधूरे रहते हैं, जिससे प्रदूषण नियंत्रण की रणनीति बनाना मुश्किल हो जाता है।
उद्योग, ट्रैफिक और निर्माण की अलग-अलग श्रेणियों में प्रदूषण के स्तर का सटीक डेटा न होना नीति निर्माण में बड़ी बाधा है। विशेषज्ञों का कहना है कि शहर के हर जोन में मानीटरिंग स्टेशन लगाना जरूरी है ताकि उपाय प्रभावी रूप से तय किए जा सकें।
डस्ट पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन नहीं कराने वाले बिल्डरों पर कार्रवाई की जाएगी। अगर कहीं पर एंटी स्माग गन और प्रदूषण रोकथाम के उपाय नहीं मिले तो सीलिंग की कार्रवाई भी होगी। नगर निगम को खुले में कचरा जलाने वालों पर जुर्माना लगाने के निर्देश दिए गए हैं।
- कृष्ण कुमार, क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गुरुग्राम
सड़कों पर टैंकरों द्वारा नियमित रूप से शोधित पानी का छिडक़ाव किया जा रहा है, जिससे धूल नियंत्रण में मदद मिल रही है। इस महीने से नई वाटर स्प्रिंकलर मशीनें भी आनी शुरू हो जाएंगी। बागवानी कचरे के प्रभावी प्रबंधन के लिए 25 श्रेडर मशीनें वार्ड स्तर पर उपलब्ध कराई जा चुकी हैं और शेष 15 मशीनें भी शीघ्र ही कार्यशील हो जाएंगी। अधिकारियों को कचरा जलाने की घटनाओं पर विशेष निगरानी रखने और ऐसे मामलों में तत्काल चालान करने के निर्देश दिए गए हैं।
प्रदीप दहिया, आयुक्त नगर निगम गुरुग्राम

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