गुरुग्राम नहर की सफाई में 'खजाना', गाद से निकले हजारों सिक्के और विश्वकर्मा जी महाराज की मूर्ति
गुरुग्राम की जलापूर्ति नहर की सफाई के दौरान सिक्के और मूर्तियां मिलीं। नहर में गाद निकालने के दौरान बड़ी संख्या में सिक्के मिले, जिससे लोगों में खजाने ...और पढ़ें

गुरुग्राम की जलापूर्ति नहर की सफाई के दौरान सिक्के और मूर्तियां मिलीं। जागरण
महावीर यादव, बादशाहपुर (गुरुग्राम)। साइबर सिटी को पानी सप्लाई करने वाली गुड़गांव वाटर सप्लाई (GWS) नहर आजकल सुर्खियों में है। इसका कारण एक अनोखा नज़ारा है जो नहर की खास सफाई अभियान के दौरान सामने आया, जिसने आम नागरिकों से लेकर राहगीरों तक सबका ध्यान खींचा। पीने के पानी की सप्लाई के लिए ज़रूरी इस नहर की तलहटी से जब गाद हटाई गई, तो बड़ी संख्या में सिक्के मिले।
इससे नहर के आसपास खजाने की खोज जैसा माहौल बन गया। सिक्कों के साथ-साथ विश्वकर्मा की कई मूर्तियां भी मिलीं, जिन्हें लोगों ने विश्वकर्मा दिवस पर पूजा करने के बाद नहर में विसर्जित किया था। सिंचाई विभाग ने इस नहर की सफाई का अभियान शुरू किया है। सोनीपत के काकरोई से बुढेरा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट तक नहर में काफी गाद जमा हो गई थी, जिससे पानी का बहाव कम हो गया था। GMDA ने भी काकरोई से प्लांट तक 70 किलोमीटर लंबी नहर की सफाई के लिए सिंचाई विभाग को लिखा था।
JCB के साथ किस्मत की एक झलक
जैसे ही JCB जैसी भारी मशीनें नहर की गहराई से काली गाद निकालने लगीं, वहां मौजूद लोग तुरंत उसकी तरफ दौड़ पड़े। मिट्टी में एक, दो, पांच और दस रुपये के सिक्के साफ दिखाई दे रहे थे। बच्चे, जवान और बूढ़े – हर उम्र के लोग – हाथों से मिट्टी छानते दिखे। कई लोगों ने इसे किस्मत का साथ माना, जबकि कुछ ने इसे भगवान की कृपा बताया।
सिक्कों का रहस्य धार्मिक आस्था से जुड़ा
इस पूरी घटना के पीछे कोई रहस्यमयी कहानी नहीं, बल्कि सालों से चली आ रही एक धार्मिक परंपरा है। लोगों के अनुसार, पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों के बाद भक्त पूजा सामग्री को बहते पानी में विसर्जित करते हैं। इसके साथ ही, अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की उम्मीद में नहर में सिक्के भी फेंके जाते हैं। ये सिक्के ज्यादातर गुरुग्राम-फर्रुखनगर रोड पर धनकोट पुल के पास मिलते हैं।
सड़क पर अपनी गाड़ियों से यात्रा करने वाले लोग इस पुल के पास रुकते हैं और आस्था के नाम पर नहर में सिक्के फेंकते हैं। तेज़ बहाव और गहराई के कारण, कई सिक्के तुरंत नहीं निकलते और धीरे-धीरे नहर की तलहटी में जमा हो जाते हैं। अब सफाई का काम चल रहा है। ये जमा हुए सिक्के अब मिट्टी के साथ नहर से बाहर आ रहे हैं।
तैराकों और स्थानीय लोगों के लिए एक मौका
नहर के पास रहने वाले कुछ कुशल तैराक पूरे साल पानी से सिक्के निकालने की कोशिश करते हैं। हालांकि, सफाई का समय उनके लिए सबसे अच्छा मौका माना जाता है। चश्मदीदों का कहना है कि यह नज़ारा हर साल सफाई के दौरान देखने को मिलता है, जिसमें लोग मशीनों के पीछे सिक्के इकट्ठा करते हुए दिखते हैं।
भीड़ के कारण सुरक्षा की चिंता बढ़ी
सफाई के काम के दौरान नहर के किनारे बढ़ती भीड़ प्रशासन के लिए चिंता का कारण बन गई है। लोगों का मशीनों के बहुत करीब जाना एक बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है। नहर विभाग के अधिकारियों ने लोगों से सुरक्षा नियमों का पालन करने और सफाई के काम में रुकावट न डालने की अपील की है।
जल प्रदूषण रोकने के लिए अच्छा नहीं
धार्मिक आस्था के नाम पर नहरों में प्लास्टिक, कपड़े और दूसरी न सड़ने वाली चीज़ें फेंकने से जल प्रदूषण बढ़ता है। इससे न सिर्फ पानी की क्वालिटी खराब होती है, बल्कि सफाई का खर्च और मेहनत भी बढ़ जाती है। लोगों से अपील की जाती है कि वे नहर में किसी भी तरह का प्लास्टिक न फेंके। पूरे शहर के लोग इसी नहर का पानी पीते हैं।
रवींद्र कुमार, एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, सिंचाई विभाग

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