शौर्य गाथा: पूरी रात पैदल चल कर गंगा सागर रेलवे स्टेशन पर किया था कब्जा
दिसंबर की भरी सर्दी में 1971 के युद्ध में पैदल चल कर बांग्लादेश के गंगा सागर रेलवे स्टेशन पर पाकिस्तान की सेना से आमने-सामने मैन-टू-मैन लड़ाई लड़ कर कब्जा करने वालों में कर्नल महेंद्र सिंह बीसला शामिल थे।

सुभाष डागर, बल्लभगढ़ (फरीदाबाद)
सर्दी हो या बारिश, फिर तपती हुई धूप कोई भी मौसम सेना के जांबाजों के हौसले पस्त नहीं कर सकता। दिसंबर की भरी सर्दी में 1971 के युद्ध में पैदल चल कर बांग्लादेश के गंगा सागर रेलवे स्टेशन पर पाकिस्तान की सेना से आमने-सामने मैन-टू-मैन लड़ाई लड़ कर कब्जा करने वालों में कर्नल महेंद्र सिंह बीसला शामिल थे। इस युद्ध में सिर्फ उनकी रेजीमेंट के लांस नायक अलबर्ट इक्का को मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला। परिचय
गांव दयालपुर के रहने वाले किसान नेता पूर्व विधायक स्व.चौधरी सुमेर सिंह बीसला के पुत्र महेंद्र सिंह बीसला 1970 में सेना में सेकेंड लेफ्टिनेंट भर्ती हुए। उन्होंने जबलपुर मध्यप्रदेश में प्रशिक्षण लिया। 13 मार्च 1971 को उन्हें कमीशन मिला और वे नागालैंड चले गए। यहां पर उन्होंने छह महीने कोंबो ट्रेनिग और लाइव ट्रेनिग ली। नागालैंड में तब काफी उग्रवाद चल रहा था। 1971 में ही बांग्लादेश की लड़ाई शुरू होने वाली थी। युद्ध में भाग लेने के आदेश मिले। पहले दो महीने बांग्लादेश लिब्रेशन को प्रशिक्षण दिया। उनके साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा की जानकारी ली। 3 दिसंबर को गंगा सागर रेलवे स्टेशन पर कब्जा करने के आदेश मिले। कर्नल महेंद्र सिंह बीसला की जुबानी उनकी शौर्य गाथा।
30 नवंबर-1971 को गंगा सागर रेलवे स्टेशन को कब्जे में लेने का टास्क मिला। ये समन्वय करने का बहुत महत्वपूर्ण स्टेशन था। 30 नवंबर और पहली दिसंबर की रात को हमने गंगा सागर स्टेशन की तरफ कूच किया। वहां पर 24 घंटे बिताए और दुश्मनों के बारे में पूरी जानकारी हासिल की। पूरे विस्तार से योजना का ले आउट तैयार किया। 3 दिसंबर की रात को भारत पाकिस्तान का युद्ध शुरू हो गया। रेलवे लाइन पर दोनों देशों की सेना आमने-सामने खड़ी थी। वहां पर पाकिस्तान ने अपनी सेना का पहले से ही हजारों की संख्या में जमावड़ा किया हुआ था। यहां पर लाइट और हैवी मशीनगन मौजूद थी। यहां गोलियों की बारिश हो रही थी और ऊपर से पाकिस्तान का तोप खाना तोपों के गोले दाग रहा था। इसके बावजूद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को मारकर गंगा सागर रेलवे स्टेशन पर कब्जा कर लिया। उस समय उनकी कंपनी टू-आई-सी डेल्टा थी। यहां से उन्हें ढाका पहुंचने का आदेश मिला। पैदल चल कर 15 दिन में ढाका पहुंचे। 1971 के युद्ध में उनकी रेजीमेंट को परमवीर चक्र मिला, इस पर उन्हें गर्व है। पाकिस्तान युद्ध में भाग लेने से जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अनुभव मिला।
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