इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया: डा. कृष्ण गोपाल
दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग ने मंगलवार को पुरातत्व एवं अभिलेख शास्त्र के आलोक में भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग ने मंगलवार को पुरातत्व एवं अभिलेख शास्त्र के आलोक में भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की। मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल ने कहा कि भारतीय इतिहास को तोड़-मरोड़ कर हमारे समक्ष प्रस्तुत किया गया है। इसके पुनर्लेखन की आवश्यकता है। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय का जिक्र किया और कहा कि कुछ इतिहासकार लिखते हैं कि व्यक्तिगत झगड़े में विवि को जलाया गया, जो कि सरासर गलत है। उसे बख्तियार खिलजी ने ध्वस्त किया था, जिसको असम में राजा भृगु ने युद्ध में पराजित किया। इसका जिक्र किसी भी इतिहासकार ने नहीं किया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय संग्रहालय के पूर्व डायरेक्टर जनरल डा. बीआर मणि विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए। इसके अलावा शिक्षाविद चांद किरण, प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे. नंद कुमार, इस्कान इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक कृष्ण कीर्ति दास, जेएनयू के सामाजिक शास्त्र विभाग के डीन प्रो. कौशल शर्मा, डीयू संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डा. रमेश भारद्वाज, साउथ कैंप के संस्कृत विभाग के प्रभारी प्रो. ओमनाथ विमल भी संगोष्ठी में शामिल हुए।
डा. कृष्ण गोपाल ने कहा कि युवा पीढ़ी को यह बताने की आवश्यकता है उनका अतीत कितना समृद्ध था। कई इतिहासकार मुसलमान शासकों के आक्रमण का महिमा मंडन करते हैं। वे औरंगजेब के बारे में लिखते हैं कि वह दयालु था, अपनी टोपी खुद सिलता था। किंतु उन्होंने यह नहीं लिखा कि उसने किस कदर क्रूरता की। औरंगजेब ने हजारों मंदिरों को तोड़ दिया, जजिया व तीर्थ यात्रा कर लगाया। उन्होंने आगे कहा कि आज युवाओं को संस्कृत जरूर पढ़ना चाहिए और इसके प्रचार-प्रसार का कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेगस्थनीज, ह्येनसांग व अलबरूनी जैसे इतिहासकार हजारों साल पहले हमारे देश में आए थे। कई इतिहासकार मुगल, खिलजी व गोरी आदि के साथ आए। इसी तरह ब्रितानिया हुकूमत ने भी भारत का इतिहास लिखा। यहां तक कि आजादी के बाद कुछ लोगों ने इतिहास लिखा। किंतु उसके बाद इतिहास के ऊपर मार्क्सवादियों का कब्जा होने लगा। वे अपनी दृष्टि से इतिहास बनाने लगे और देखते ही देखते इतिहास में सैकड़ों शोध पेपर आने लगे। ऐसे में समस्या यह है कि किस इतिहास को सही माना जाए? यदि सही-गलत का पता हो तो रास्ता ढूंढने में आसानी होगी। वहीं, प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक डा. नंद कुमार ने कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। जिस व्यक्ति को संस्कृत का ज्ञान है, वह सभी भाषाओं का ज्ञाता है। इसके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय के डिप्टी प्राक्टर और कार्यक्रम के संयोजक डा. सौरभ ने कहा कि इतिहास पुनर्लेखन की दिशा में हम आगे भी ऐसे कार्यक्रमों के द्वारा युवाओं का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
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