सर्वे तक ही सीमित रहती है अरावली में कार्रवाई
दिल्ली-एनसीआर के लिए जीवनदायिनी कही जाने वाली अरावली के सीने पर किए गए गैर-वानिकी कार्यों का कई बार सर्वे किया जा चुका है। गैर-वानिकी कार्यों की रिपोर्ट हरियाणा विधानसभा से लेकर संसद तक में प्रस्तुत की जा चुकी है।

आदित्य राज, गुरुग्राम
दिल्ली-एनसीआर के लिए जीवनदायिनी कही जाने वाली अरावली के सीने पर किए गए गैर-वानिकी कार्यों का कई बार सर्वे किया जा चुका है। गैर-वानिकी कार्यों की रिपोर्ट हरियाणा विधानसभा से लेकर संसद तक में प्रस्तुत की जा चुकी है। इसके बाद भी आगे की कार्रवाई नहीं हुई। हास्यास्पद स्थिति यह है कि वन विभाग में ऊंचे पदों पर आसीन कई अधिकारी ऐसे हैं जो पहले गुरुग्राम से लेकर फरीदाबाद में जिला वन अधिकारी के पद पर विराजमान थे। उनके कार्यकाल में भी बड़े पैमाने पर गैर-वानिकी कार्य किए गए। आज वही अधिकारी वर्तमान जिला वन अधिकारियों से गैर-वानिकी कार्यों की रिपोर्ट तलब कर रहे हैं।
अरावली पहाड़ी क्षेत्र में गैर-वानिकी कार्यों का सिलसिला वर्ष 1990 से ही शुरू हो गया था। तबसे अरावली की सुरक्षा को लेकर कार्रवाई कागजों में ही चल रही है। सबसे अधिक गैर-वानिकी कार्य गुरुग्राम एवं फरीदाबाद जिले के दायरे में आने वाले अरावली पहाड़ी क्षेत्र में है। अनुमानत 10 हजार एकड़ से अधिक भूमि पर गैर-वानिकी कार्य है। प्रतिबंध के बाद भी न केवल हजारों फार्म हाउस बना दिए गए बल्कि ऊंची-ऊंची इमारतों के साथ ही स्कूल, मंदिर, धर्मशाला तक बने हुए हैं। जब भी मामला गर्म होता है वन विभाग सर्वे शुरू कर देता है। सर्वे शुरू होने पर धीरे-धीरे मामला ठंडा हो जाता है। पिछले 10-15 सालों के दौरान कई बार सर्वे कराए जा चुके हैं लेकिन कभी भी गैर-वानिकी कार्यों को ध्वस्त करने का अभियान शुरू नहीं किया गया।
पहुंच वाले लोगों के सामने बौना वन विभाग
अरावली में बनाए गए अधिकतर फार्म हाउस देश के नामचीन नेताओं से लेकर पूर्व एवं वर्तमान नौकरशाहों के बताए जाते हैं। उनके सामने वन विभाग के अधिकारी बौने साबित हो रहे हैं। इसका प्रमाण है आज तक एक भी पहुंच वाले लोगों के फार्म हाउसों के खिलाफ कार्रवाई न होना। फार्म हाउसों में पार्टियां की जाती हैं। इससे भी वन्य जीव अशांत होकर कई बार रिहायशी इलाकों में पहुंच जाते हैं। यही नहीं वन्य जीव अपने इलाके में खुले रूप से विचरण भी नहीं कर पाते हैं।
विधानसभा से लेकर संसद तक को पता है किन लोगों के फार्म हाउस अरावली के सीने पर बने हुए हैं। सभी अवैध तरीके से बने हुए हैं। जब कार्रवाई ही नहीं करनी फिर बार-बार सर्वे करके रिपोर्ट क्यों तैयार की जाती है? सर्वे के नाम पर मामले को हर बार ठंडे बस्ते में डालने का प्रयास किया जाता है। कुल मिलाकर प्रशासन अरावली की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। गंभीर होता तो पहले किए गए सर्वे के आधार पर सीधे तोड़फोड़ अभियान शुरू कर देता।
डा. आरपी बालवान, पर्यावरणविद व पूर्व वन संरक्षक
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।