श्रद्धा का महासावन: लक्ष्मी ने बांधी थी राजा बलि को राखी
अपने देश की समृद्ध परंपराओं में हर ऋतु का सांस्कृतिक महत्व है। सावन में प्रकृति हरियाली की चादर ओढ़
अपने देश की समृद्ध परंपराओं में हर ऋतु का सांस्कृतिक महत्व है। सावन में प्रकृति हरियाली की चादर ओढ़ लेती है। यह समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो यह शिव भक्ति का महीना है। कई त्योहार इस मौसम में है। हरियाली तीज और रक्षाबंधन का त्योहार इस महीने में आता है। ऐसा माना जाता है, इस महीने में शिव जागृत अवस्था में रहते हैं।
रक्षाबंधन अब करीब है। राखी के बारे यह कथा है कि सबसे पहली राखी लक्ष्मी जी ने राजा बलि को बांधी थी। दानवेन्द्र बलि से वामन रूप धारण कर विष्णु भगवान ने तीन पग में सबकुछ ले लिया। भगवान ने पाताल लोक का राज्य बलि को दे दिया, तब बलि ने प्रभु से कहा कि मैं रहने के लिए तैयार हूं मगर यह वचन दो कि जब मैं उठूं तब जिधर भी नजर जाए आपको देखूं। इस तरह बलि ने विष्णु को अपना पहरेदार बना लिया। बैकुंठ में लक्ष्मी जी को ¨चता होने लगी। तब नारद ने उन्हें बताया कि नारायण पाताल लोक में हैं। नारद के समझाने पर लक्ष्मी सुंदर स्त्री का रूप धर कर गई और राजा बलि को भाई बनाकर उसे रक्षा सूत्र बांधा। दक्षिणा में उन्होंने बलि का पहरेदार मांगा। इस तरह लक्ष्मी ने नारायण को बलि के वचन बंधन से मुक्त कराया। इसलिए रक्षा सूत्र बांधते समय यह मंत्र पढ़ते हैं।
येन बद्धो बलि राजा दानवेंद्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:। मतलब है जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेंद्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा। तब से बहनें भाइयों को रक्षा सूत्र बांधने लगीं और रक्षाबंधन का प्रचलन हुआ। यह भाई बहन के प्रेम और सम्मान का प्रतीक है।
- सुनीता चोखानी, गृहिणी
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