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    हिंदी दिवस पर विशेष - बच्चों के साहित्य को समर्पित जीवन

    By Edited By:
    Updated: Sun, 13 Sep 2015 07:37 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, गुड़गांव : आज के दौर में बच्चों को हिंदी सिखाना एक बड़ा काम हो गया है। बच्चों के लिए

    जागरण संवाददाता, गुड़गांव : आज के दौर में बच्चों को हिंदी सिखाना एक बड़ा काम हो गया है। बच्चों के लिए लिखना एक कठिन काम है। वैसी भाषा जो उन्हें समझ में आए, उनकी जुबान पर चढ़ जाए और सबसे मुश्किल उनकी तरह सोच पाना है। यह काम पिछले चार दशक से ज्यादा समय से कर रहे हैं गुड़गांव के घमंडीलाल अग्रवाल। घमंडी लाल अग्रवाल रचित बच्चों की कविताएं, कहानियां पढ़-पढ़ कर एक पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी को उनकी कविताएं पढ़ा रही है। 1970 से आज तक प्रमुख बाल पत्रिकाओं और बाल साहित्य जगत में घमंडी लाल अग्रवाल की पहचान है। घमंडी लाल अग्रवाल ने बड़ों के लिए भी लिखा है। 25 अक्टूबर 1954 को इनका जन्म हुआ। वर्ष अक्टूबर 2012 में विज्ञान शिक्षक के रूप में 31 वर्ष की सेवा के बाद ये रिटायर हुए हैँ। हिंदी साहित्य का भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार, हरियाणा साहित्य अकादमी पुरस्कार, पं. सोहन लाल द्विवेदी बाल साहित्यकार पुरस्कार, डा. राम कुमार वर्मा बाल नाटक पुरस्कार , चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट पुरस्कार समेत विभिन्न प्रदेशों में 115 सम्मान और पुरस्कार इन्हें प्राप्त हो चुका है। बाल साहित्य के रचयिता घमंडी लाल अग्रवाल ने दिया बाती कुर्र, एक डाल के पंछी, सुन री सोन चिरैया, गीतों भरी पहेलिया, बगिया के फूल, शैतानी वाला बचपन, बाल कवितांजली, बाल शिशु गीत, बाल गीतांजली, बाल दोहागीत, 101 शिशु गीत, गीत ज्ञान विज्ञान के, 51 नन्हीं कहानियां आदि कई संकलन बच्चों के लिए लिखे हैं। इनके पिछले दिनों प्रकाशित कविता संग्रह नए निराले गीत में 54 गीत हैं।

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    उन्होंने अपने इस नए संग्रह के बारे में बताया कि इस कविता संग्रह के छह हिस्से हैं। हर हिस्से में नौ-नौ कविताएं हैं। इसमें समस्याओं पर आधारित, जीव जंतुओं, उपयोगी वस्तुओं, शिक्षा प्रद, मनोरंजन प्रधान और जागरण गीत शामिल हैं। हालांकि शिक्षाप्रद तो सभी कविताएं हैं। मगर हर विषय को अलग समूह में रखा है। कोशिश है कि बच्चे इसे हिंदी सीखे, अच्छी बातें सीखें और उन्हें कविताएं अच्छी भी लगे।

    इस संग्रह की एक कविता

    जाएं कहां खेलने हम

    कोई हमे बता दे आकर

    जाएं कहां खेलने हम

    जहां न कोई डर हो भैया

    और न कोई खाये गम

    छत के उपर हम खेले तो

    चाचा डांट पिलाते हैं

    कमरे में कैरम यदि खेले

    पापा जी चिल्लाते हैं

    खेले अगर बीच आंगन में

    मम्मी करे पिटाई जम

    बागीचे में माली काका

    लाल आंखे फाड़े

    गली मुहल्ले पड़ोसियों की

    खूब पड़ा करती झाड़े

    राज पार्को में चलता है

    बड़े बड़ों का ही हरदम

    कोई ऐसी शांत जगह हो

    जहां हमारा हुक्म चले

    धमा चौकड़ी करे रोज ही

    लौटे घर को शाम ढले

    कोई हमें बता दे आकर

    जाएं कहां खेलने हम. ''।