फांसी पर चढ़ना स्वीकार किया, घुटने टेकना नहीं
वरिष्ठ संवाददाता, गुड़गांव : जंगे-ए-आजादी के लिए बलिदान देने में गुड़गांव पीछे नहीं रहा। गांव झाड़सा के चौधरी बख्तावर सिंह ठाकरान ने फांसी पर चढ़ना स्वीकार किया, लेकिन अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके। इनके बलिदान के बाद लोगों में ऐसी क्रांति पैदा हुई जो आजादी मिलने के बाद ही खत्म हुई।
चौधरी बख्तावर सिंह ठाकरान 360 गांव झाड़सा सर्वखाप के प्रधान थे और बहुत बड़े जमींदार भी थे। वे गांव में ही कचहरी लगाया करते थे। उन्होंने शुरू से ही अंग्रेजों की खिलाफत की। जंगे-ए-आजादी का बिगुल 1857 में जैसे ही बजा उनके भीतर का ज्वार फूट पड़ा। बताते हैं कि काफी संख्या में अंग्रेज जब उन्हें प्रलोभन देने पहुंचे तो उन्होंने अंग्रेजों को अपनी मवेशियों के साथ न केवल बांध दिया था, बल्कि जमकर पिटाई भी की थी। इस बात की जानकारी जब अंग्रेजी हुकुमत को हुई तो उसने ठाकरान को सबक सिखाने का ठान लिया। ठाकरान के कई एकड़ में फैले बाग को तहस-नहस करा दिया और काफी जमीन भी हड़प ली। इसके बाद भी वे अंग्रेजों के सामने नहीं झुके। यही नहीं उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अंग्रेजों को गुड़गांव से बाहर खदेड़ दिया था। बाद में अंग्रेज क्रांतिकारियों पर हावी हो गए। उस दौरान देश भर के काफी संख्या में भारत मां के सपूतों को पकड़ सरेआम फांसी पर लटका दिया गया था। इन्हीं सपूतों में से एक थे चौधरी बख्तावर सिंह ठाकरान। इन्हें गुरुद्वारा रोड स्थित खाली जगह जहां पर अब कमला नेहरू पार्क है, 12 अक्टूबर 1857 को सरेआम फांसी पर लटका दिया गया था। फांसी पर लटकाने से पहले अंग्रेजों ने माफी मांगने को कहा, लेकिन ठाकरान ने झुकना स्वीकार नहीं किया।
कचहरी में बैठकर रणनीति तैयार करते थे ठाकरान
गांव झाड़सा में आज भी अमर शहीद चौधरी बख्तावर सिंह ठाकरान की कचहरी है। यहां वे बैठकर न केवल लोगों के साथ न्याय करते थे, बल्कि अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ अपनी रणनीति तैयार करते थे। उनके वंशज व 360 गांव झाड़सा के प्रधान चौधरी महेंद्र सिंह ठाकरान कहते हैं आज भी ये कचहरी देख उन्हें गर्व होता है। समाज के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलती है। उन्हें अफसोस है कि कहीं भी बख्तावर सिंह का स्मारक नहीं है। आने वाली पीढि़यों को प्रेरित करने के लिए शहीदों का स्मारक बनना चाहिए।
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