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    भारत में प्रशिक्षित श्रमिकों की है कमी

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    Updated: Wed, 31 Jul 2013 06:11 PM (IST)

    वरिष्ठ संवाददाता, गुड़गांव : भारत में श्रमिकों की संख्या कम नहीं है। देश में 54 फीसदी श्रमिकों में 25 फीसदी युवा हैं। परंतु कोरिया में प्रशिक्षित कर्मियों की संख्या के सामने भारत कहीं नहीं ठहरता। कोरिया के उद्योग-धंधे में लगे प्रशिक्षित श्रमिक 98 प्रतिशत हैं, जबकि भारत में ऐसे श्रमिक मात्र दो प्रतिशत हैं। कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआइआइ) द्वारा ट्रांसफारमेशन ऑफ इंडस्ट्रीयल रिलेशन टू इंप्लाइज रिलेशन पर स्थानीय एक होटल प्रांगण के सेमिनार में यह बात सामने आई। आए हुए प्रतिनिधियों के विचारों से यह बात सामने आई कि भारत में श्रमिक भावनाओं को तो समझा जाता है, लेकिन उद्योग की तकनीकी पहलु से यहां के लोग लगभग अनजान हैं। जिसकी वजह से उद्योगों के माहौल पर बुरा असर पड़ता है। उद्यमियों व श्रमिकों के बीच कड़वाहट पैदा होने की वजह भी यही है।

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    मंगलवार को देर शाम तक आयोजित इस सेमिनार में विभिन्न क्षेत्रों के 125 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसके अलावा आइटीआइ के छात्र भी शामिल थे। मुख्य रूप से लार्सन एंड टर्बो, एनटीपीसी, महिंद्रा एंड महिंद्रा, टीवीएस मोटर्स, एसआरएफ के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस सेमिनार में विभिन्न ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।

    ''श्रमिकों को प्रशिक्षित करना समय की मांग है, इससे इकाइयों को ही फायदा पहुंचता है।''

    हरभजन सिंह, उपाध्यक्ष होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया

    ''इकाइयों में स्वास्थ्य वातावरण की जरूरत है। इसके लिए उद्योगों में समाजिक व आर्थिक पर बल देते हुए कर्मचारियों को भी विश्वास में लेने की जरूरत है।''

    अनुपम मल्लिक, संयुक्त श्रम आयुक्त : हरियाणा सरकार

    भारत में युवा श्रमिकों की कमी नहीं, जरूरत है उनके मार्गदर्शन की। व्यक्तिगत के साथ-साथ संगठित रूप से विकास करने की जरूरत है। श्रमिकों के कल्याणार्थ कार्यक्रम चलाने की जरूरत है।

    एसी पांडेय, संयुक्त सचिव श्रम एवं रोजगार : भारत सरकार

    '' 90 फीसदी मामलों को पारदर्शिता व विश्वास से हल किया जा सकता है। श्रमिकों को भी उत्पादन के महत्व और इकाइयों के विकास में योगदान करना होगा।''

    संजीवा रेडडी, अध्यक्ष : इंडियन नेशनल कांग्रेस

    '' उद्यमी सफल हैं तो वह श्रमिकों की वजह से, मशीन की वजह से नहीं। समय के साथ लचीलापन लाना होगा। भागीदारी से उद्योगों को चलाना होगा।''

    जयंत डावर, चेयरमैन, सीआइआइ नार्थ

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