Move to Jagran APP

ट्रक ड्राइवर की बेटी का बेमिसाल जज्‍बा, 'बुलंद उड़ान' से अंधेरी जिंद‍गियों को यूं कर रही रौशन

हरियाणा केएक गांव के ट्रक ड्राइवर की 16 साल की बेटी अंजू ने अपने अनोखे जज्‍बे से प्रदेश का नाम रौशन कर दिया है। वह मजदूरी करने को मजबूर बच्‍चों की शिक्षा का अभियान चला रही है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 15 Dec 2018 12:59 PM (IST)Updated: Sat, 15 Dec 2018 01:00 PM (IST)
ट्रक ड्राइवर की बेटी का बेमिसाल जज्‍बा, 'बुलंद उड़ान' से अंधेरी जिंद‍गियों को यूं कर रही रौशन
ट्रक ड्राइवर की बेटी का बेमिसाल जज्‍बा, 'बुलंद उड़ान' से अंधेरी जिंद‍गियों को यूं कर रही रौशन

फतेहाबाद, [मणिकांत मयंक]। 16 साल की अंजू बड़े-बड़ों के लिए मिसाल बन गई है। अंजू के बेमिसाल जज्‍बे की कहानी वैश्विक मंच पर पहुंच गई है। एक ट्रक ड्राइवर की बेटी अंजू ने अपनी संवेदना और समाज के गरीब व बालश्रम के शिकार बच्‍चों के जीवन में नई उम्‍मीद जताई है। दसवीं कक्षा की यह छात्रा बाल श्रमिकों को शिक्षा की रोशनी दिखा रही हैं। हरियाणा के फतेहाबाद जिले के दौलतपुर की रहने वाली इस बेटी को संयुक्त राष्ट्र वॉलंटियर अवार्ड मिल चुका है और अब वह टेड-एक्स के वैश्विक मंच पर दुनिया को संबोधित करने जा रही है।

loksabha election banner

बुलंद उड़ान की संस्थापक अंजू का सपना, बाल श्रम मुक्त देश हो अपना

सुशिक्षित समाज की दिशा में सबसे बड़ा बाधक बाल श्रम है। दौलतपुर की अंजू रानी बच्चों को मजदूरी करते हुए देख परेशान हो उठती थी। इसके बाद उसने इन बच्‍चों को शिक्षा से आलाेकित करने की ठानी। छोटी-सी उम्र में यूनाइटेड नेशन वॉलेंटियर अवार्ड से सम्मानित एक ट्रक ड्राइवर की इस लाडो का बस एक ही सपना है-बाल श्रम मुक्त देश हो अपना। सपने को हकीकत में बदलने के लिए वह अद्भुत जज्बा दिखा रही है। अपने इस जज्बे को उसने बुलंद उड़ान (उसकी संस्था का नाम) दी।

बाल श्रमिक बच्‍चों के घर पर उनके परिजनों से संपर्क करती अंजू रानी और उनकी टीम।

ट्रक ड्राइवर की बिटिया को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बुलावा, जर्मनी में साझा करेगी अनुभव

वह मजदूरी कर रहे बच्चों के परिजनों को समझाकर उन्हें श्रम से मुक्त कराने का प्रयास करती हैं और इसके साथ ही इन बच्‍चों को स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए शिक्षकों से संपर्क करती है। अपने इस जज्बे को अंजू ने बुलंद उड़ान नामक संस्था के रूप में विस्तार देना शुरू कर दिया।

परिवार के लिए आजीविका जुटाने में खोए करीब 450 बचपन के कोमल हाथों को कलम का साथ दिलाकर वह बाल श्रम मुक्त व सुशिक्षित समाज के सपने को साकार करने की राह पर अग्रसर है। अंजू के जुनून को देखकर अब उन्‍हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आइडिया रखने वाले मंच टेड-एक्स ने अपने अद्भूत अभियान के बारे में वैश्विक सेमिनार को संबोधित करने के लिए जर्मनी आमंत्रित किया है। यहां वह बाल श्रम को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के अपने अनुभव साझा करेंगी।

परिवार के लिए आजीविका जुटाते रहे 450 बच्चों को स्कूल से जोड़ चुकी है 16 साल की अंजू रानी

फरवरी में जर्मनी जा रही इस किशोरी की कहानी सुखद आश्चर्य से भरी है। जब वह महज 12 साल की थी तो स्कूली साथियों की परेशानियों से व्यथित हो जाती थी। उसके कुछ क्लासमेट कभी होमवर्क पूरा करके नहीं आते थे। कुछ साथी रेगुलर स्कूल नहीं आते थे। वअंजू ने उनसे कारण पूछा। साथियों से सच सुनकर उसका मन दुखी हो गया। इन बच्‍चों के माता-पिता उनसे आजीविका चलाने की खातिर काम करवाते थे।

बाल श्रम के शिकार बच्‍चों को पढ़ाती अंजू रानी।

स्कूल से घर पहुंचते ही परिवार की आर्थिक परेशानी कारण ये बच्‍चे मजदूरी में लग जाते थे। इस काररण वे  स्कूल का न तो होमवर्क पूरा पाते थे और न ही पढ़ाये गए विषयों का रिवीजन कर पाते थे। स्कूल की अटेंडेंस शॉर्ट होती थी सो अलग। इस हकीकत ने अंजू को गहरी चिंता में धकेल दिया। काफी चिंतन के बाद उसने अपने साथियों की दशा सुधारने की ठानी। वह घर-घर गई। उसने बच्चों के माता-पिता व अभिभावकों को समझाया। पहले अकेली, फिर 55 युवाओं की टीम बनाई।

अंजू ने 'बुलंद उड़ान' नामक स्वयंसेवी संस्था बनाकर बाल श्रम के खिलाफ मुहिम चलाई। अंजू बताती है कि उसके लिए यह सब इतना आसान नहीं था। बाल श्रम में उलझे बच्चों के अभिभावक उल्टा उन्हें ही डांटते थे, लेकिन अब तो सब सहज हो गया है। उसकी पहल में परिवार ने भी सहयोग करना शुरू कर दिया। रोशन के पिता महेंद्र कहते हैं कि अंजू ने उसकी आंखें खोल दी। 38 गांवों के ऐसे 450 बच्चों को अंजू ने शिक्षा की बुलंद उड़ान दी है।
-------
यूं चलती है पढ़ाई के साथ मुहिम
अंजू बताती है कि बुलंद उड़ान की टीम तीन संडे को डोर-टु-डोर सर्वे करती है। कौन स्कूल नहीं जा रहा है और कौन ढाबे आदि पर काम करता है। लास्ट संडे को एक रिपोर्ट तैयार होती है और उस पर डिस्कशन होता है। फिर रिपोर्ट के अनुसार पूरी टीम बच्चों के माता-पिता अथवा अभिभावकों को मोटिवेट करती है। बच्चों को फरवरी से जुलाई तक दाखिला दिलाने में जुट जाती है।

---------------

''अंजू को अभी हाल ही में 5 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र की संस्था-यूनाइटेड नेशन वॉलेंटियर्स की इंडिया इकाई से अवार्ड मिला है। इस छोटी-सी उम्र में इतनी अद्भुत सोच  को कौन नहीं सलाम करेगा। बच्चों के माता-पिता व समाज के लिए अंजू की पहल अनुकरणीय है।

                                                     - ऋषि बंशीवाल, यूनाइटेड नेशंस वॉलिंटियर के मैनेजमेंट एसोसिएट।

--------

'नाज है अपनी लाडो पर'

ट्रक चलाकर बच्चों की परवरिश कर रहे अंजू के पिता राजेंद्र सिंह कहते हैं कि उन्हें अपनी लाडली बेटी पर नाज है। बेटी ने जो मांगा, दिया। वह छोटी-सी थी तभी अंदाजा हो गया था कि इसमें अलौकिक प्रतिभा है। यह समाज के लिए कुछ न कुछ अलग करेगी। इसलिए खुली छूट दे दी। बेटी ने आज सिर ऊंचा कर दिया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.