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    कहीं पानी की बर्बादी तो कहीं प्यासी आबादी

    प्राइम इंट्रो: सफर करते वक्त एक बोतल पानी की खरीदते हैं तो घूंट-घूंट करके पीते हैं। सोचते हैं कि

    By Edited By: Updated: Wed, 17 Jun 2015 12:58 AM (IST)

    प्राइम इंट्रो: सफर करते वक्त एक बोतल पानी की खरीदते हैं तो घूंट-घूंट करके पीते हैं। सोचते हैं कि कहीं कोई बूंद बर्बाद न जाए। इसकी दो वजह होती हैं। एक तो शायद इसलिए कि उस पानी की कीमत चुकाई होती है। दूसरी वजह ये कि उस वक्त पानी देखने तक को नहीं मिलता। इसलिए पानी का महत्व समझते हैं। पेयजल संकट के पीछे का सच यही है कि जनता ने पानी की कभी कीमत नहीं समझी। जहां पर पानी की कमी है, वहां बूंद-बूंद को भी लोग तरसते हैं। जहां पानी पर्याप्त है, वहां से बर्बादी शुरू हो जाती है। समस्या को लेकर सरकार पर उंगली उठाना काफी नहीं होगा। व्यवस्था में भी सुधार की जरुरत है। व्यवस्था में खामी कहां है, रिपोर्ट पढि़ये-

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    जागरण संवाददाता, फतेहाबाद:

    इस दौर का संकट ये है कि पानी की बचत बूंदों के हिसाब से हो रही है और बर्बादी लीटरों में। धान के सीजन में खेतों में दिन-रात ट्यूबवेल चलते हैं। असमिति मात्रा में पानी बहाकर धान की ¨सचाई होती है। इधर, शहरों में लोग पीने के पानी को तरसते हैं। इसी असंतुलन की वजह से सारा खेल बिगड़ चुका है। भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। आधे घरों तक पेयजल पहुंच नहीं पाता। जमीन का पानी भी बेहद घटिया गुणवत्ता का है। इस बीच नहरी पानी पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। इस पानी का बड़ा हिस्सा सिस्टम की खामियों की वजह से बर्बाद हो जाता है। कहीं पर खुले नलों के कारण पानी व्यर्थ बह रहा है तो कहीं पर पेयजल से बगीचों में ¨सचाई होती है। पानी की इस बर्बादी को रोकने के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। जिले में 245 गांव व रतिया, टोहाना व फतेहाबाद शहरी क्षेत्र है। इनके अलावा भूना, जाखल व भट्टूकलां कस्बे का रूप ले चुके हैं। इन तमाम क्षेत्रों लगभग दस लाख आबादी निवास करती है। लोगों को पानी की सप्लाई करने के लिए 262 जलघर हैं जोकि इतनी बड़ी आबादी के लिए काफी नहीं हैं। इनकी कमी के कारण लोगों को पानी सबमर्सीबल टयूबवेल से सप्लाई किया जाता है। रतिया में तो जलघर ही नहीं है।

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    खपत का कोई अनुमान नहीं

    यूं तो प्रशासन अक्सर कहता है कि जल की बचत करें। सच ये है कि जनस्वास्थ्य विभाग पानी की खपत का आंकलन नहीं कर पाया। विभाग ने लोगों को पेयजल मीटर लगवाने के लिए दो साल पहले अपील शुरू की थी। बार बार अनुरोध के बावजूद उपभोक्ता मीटर नहीं लगवाते। अभी तक 40 प्रतिशत लोगों ने ही मीटर लगवाएं हैं। फतेहाबाद शहर में 13 हजार 207 पेयजल कनेक्शन हैं। इनमें से सिर्फ 5 हजार 350 लोगों ने मीटर लगवाएं हुए हैं। विभाग बार बार चेतावनी देता रहा है कि यदि मीटर न लगवाया तो कार्रवाई होगी। लेकिन कोई असर नहीं हुआ। एक अनुमान के मुताबिक जन स्वास्थ्य विभाग की ओर से शहर के प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 135 लीटर पानी की सप्लाई की जाती है। ग्रामीण क्षेत्र में पानी की सप्लाई सिर्फ 70 लीटर प्रति व्यक्ति होती है। लेकिन गर्मी में जरुरत के मुताबिक यह मात्रा काफी नहीं है। हजारों की संख्या में लोगों ने पेयजल के अवैध कनेक्शन लिए हुए हैं। गांवों में शहर की तुलना में ज्यादा अवैध कनेक्शन हैं। विभाग को पता ही नहीं होता कि उनका पानी किस-किस घर में कितना जा रहा है। इस कारण सभी लोगों को समान रूप से पानी नहीं मिल पाता। विभाग के पास अवैध कनेक्शन रोकने के लिए कोई कारगर नीति भी नहीं है।

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    बॉक्स: ये है जिले में जलापूर्ति की व्यवस्था

    कुल वैध कनेक्शन: 1 लाख 6 हजार

    अनुमानित अवैध कनेक्शन: 2 लाख

    नहरी जल घरों की संख्या: 102

    ट्यूबवेल वाले जलघर: 160

    बू¨स्टग स्टेशनों की संख्या: 35

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    बीमारियां दे रहा भू-जल

    ट्यूबवेलों का पानी प्यास बुझा रहा है तो साथ ही कई बीमारियां भी दे रहा है। इस पानी में टीडीएस व फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा है। इस वजह से शहरवासियों में लीवर व गुर्दों से जुड़ी कई बीमारियां हो रही हैं। कितने ही लोगों में पत्थरी जैसी शिकायत है। डॉक्टर मानते हैं कि इन बीमारियों की वजह जमीनी पानी है। इसीलिए प्रशासन ने शहर को नहरी पानी देने का फैसला लिया था। फ्लोराइड की मात्रा अधिकतम डेढ़ मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। इससे ज्यादा मात्रा हड्डियों के लिए नुकसानदायक है। शहर के जमीनी पानी में दो मिलीग्राम से भी ज्यादा फ्लोराइड है। इसके स्वास्थ्य पर कई प्रतिकूल प्रभाव हैं। लोगों की मजबूरी है कि उन्हें कैंपर लेना पड़ता है।

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    आधी आबादी को नहीं मिलता पानी

    सामाजिक कार्यकर्ता रमेश जांडली का कहना है कि इस समय आधी आबाधी को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता। कई कॉलोनियों में तो साल भर दूषित पानी आता है। गरीब बस्तियों में पेयजल की सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। उन बस्तियों में बीमारियां फैलने का डर भी दूषित पानी की सप्लाई की वजह से होता है। खास बात ये है कि शिकायत मिलने पर जनस्वास्थ्य विभाग हरकत में ही नहीं आता। इसी कारण लोगों को बार-बार प्रदर्शन करने पड़ते हैं।

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    किसान धान बोयें या पानी बचाएं

    जल संकट की स्थिति में दोराहे पर खड़े हैं किसान। जिले के आधे से ज्यादा क्षेत्र में धान की पैदावार होती है। धान के लिए चौबीस घंटे पानी की जरुरत होती है। इसके लिए किसानों को दिन-रात ट्यूबवेल चलाने पड़ते हैं। इससे भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। कभी क्षेत्र में 70 फुट की गहराई पर पानी मिल जाता था। आज भू-जल स्तर चार सौ फुट नीचे जा चुका है। इस संकट को देखते हुए किसान भी ¨चतित हैं। उनके सामने सवाल है कि वे पानी की बचत करते हैं तो धान की पैदावार कैसे करेंगे। कृषि विभाग तो किसानों को धान की सीधी बिजाई की सलाह देता है। किसानों की राय है कि यह विधि कारगर नहीं है।

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    व्यवस्था सुधार की ओर: एक्सईएन

    जनस्वास्थ्य विभाग के एक्सईएन दलबीर ¨सह का कहना है कि पेयजल आपूर्ति व्यवस्था सुधार की दिशा में जा रही है। पिछले कुछेक समय में काफी सुधार हुआ है। हम ऐसी व्यवस्था बना रहे हैं, जिसमें पानी की बर्बादी रुकेगी और कोई प्यासा भी नहीं रहेगा।

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    बॉक्स:: कल पढि़ये बिजली संबंधी रिपोर्ट

    कल के अंक में होगी बिजली आपूर्ति व्यवस्था पर ग्राउंड रिपोर्ट। इस मुद्दे पर कुछ कहना चाहते हैं तो आप भी भेज सकते हैं ई-मेल। दैनिक जागरण के एजेंडे में शिक्षा, पर्यावरण, परिवहन, सीवरेज, आवास व स्वास्थ्य आदि भी हैं। इसलिए किसी भी क्षेत्र की हालत में आपको कुछ सूझता है तो वो ग्राउंड रिपोर्ट दैनिक जागरण से सचित्र सांझा करें। हमें द्घड्डह्लद्गद्धड्डढ्डड्डस्त्र@द्धद्बह्म.द्भड्डद्दह्मड्डठ्ठ.ष्श्रद्व पर ई-मेल भेजें। फोन नंबर 01667-223242 पर कॉल भी कर सकते हैं।