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    Kargil Vijay Diwas: महज 27 वर्ष की उम्र में बलिदान हुए विरेन्द्र सिंह, बेटे को याद करके मां की आंखें हुईं नम

    Kargil Vijay Diwas इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसने एक न एक दिन अवश्य मौत का वरण करना है अब यह उस इंसान पर निर्भर करता है कि वो कैसे कर्म करते हुए जाना चाहता है। अच्छे कर्म करेगा तो वो अपनों की यादों में हमेशा रहता है और जो देश पर कुर्बान हो जाता है तो उसे हर सच्चा देशवासी याद रखता है।

    By Subhash DagarEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Wed, 26 Jul 2023 01:34 PM (IST)
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    Kargil Vijay Diwas: महज 27 वर्ष की उम्र में बलिदान हुए विरेन्द्र सिंह

    फरीदाबाद [सुभाष डागर]। Kargil Vijay Diwas : इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है, उसने एक न एक दिन अवश्य मौत का वरण करना है, अब यह उस इंसान पर निर्भर करता है कि वो कैसे कर्म करते हुए जाना चाहता है। अच्छे कर्म करेगा तो वो अपनों की यादों में हमेशा रहता है और जो देश पर कुर्बान हो जाता है तो उसे हर सच्चा देशवासी याद रखता है।

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    कुछ ऐसा ही भरी जवानी में कर गए गांव मोहना के लाल विरेन्द्र सिंह, जिसे देश के लिए बलिदान देने का मौका मिला और वो भी 27 साल की भरी जवानी में।

    विरेन्द्र कुमार ने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दिया और इसके लिए 95 वर्षीय माता लीलावती को गर्व है। मां की आंखें बेटे के बलिदान देने के 24 वर्ष बाद भी नम हो जाती हैं, लेकिन संभलते हुए कहती है, मुझे गर्व है कि उसने मेरी कोख से जन्म लिया और मातृ भूमि की रक्षा खातिर बलिदान हो गया।

    बलिदानी विरेन्द्र की शौर्य गाथा

    माता लीलावती बताती हैं कि विरेन्द्र कुमार 17 जाट रेजीमेंट में 1998 दिसंबर में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे। उन्होंने जाट रेजीमेंट के बरेली सेंटर से प्रशिक्षण लिया। अभी प्रशिक्षण लेते हुए छह महीने का समय ही पूरा हुआ था।

    कारगिल युद्ध शुरू हो गया। सरकार से आदेश मिला की 17 जाट रेजीमेंट को कारगिल युद्ध के लिए शामिल होने के लिए भेजा जाए। मई-1999 में विरेन्द्र भी कारगिल युद्ध में शामिल होने के लिए अपने साथियों के साथ चले गए।

    पांच जुलाई को उनकी टीम ने द्रास और बटालिक घाटी पर कब्जा कर लिया। वे मस्कोह घाटी में विजय के बाद तिरंगा झंडा फहरा रहे थे, तभी पाकिस्तान की ओर से एक हैंड ग्रेनेड आया और फट गया। इससे विरेन्द्र घायल हो गए और बाद में मातृभूमि पर प्राण त्याग दिए। विरेंद्र के साथियों ने बताया कि वे अंतिम समय तक पूरी बहादुरी से लड़े।

    बलिदानी का जीवन परिचय

    विरेन्द्र कुमार का जन्म गांव मोहना के किसान स्व. कालेराम के घर पहली जनवरी 1972 को हुआ। वे माता लीलावती की आठवीं संतान थी।

    विरेन्द्र छह भाई और दो बहनों में सबसे छोटे और अविवाहित थे, 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद 17 जाट रेजीमेंट में दिसंबर 1998 को सिपाही के पद पर भर्ती हुए। प्रशिक्षण की समयावधि छह महीने पूरे होने के बाद ही कारगिल युद्ध में मोर्चे पर जाने का बुलावा आ गया।

    कारगिल युद्ध में छह जुलाई 1999 को ग्रेनेड फटने से देश के लिए बलिदान दे दिया। उनकी स्मृति में सरकार ने बलिदानी विरेन्द्र राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय का नाम रखा है।

    यहां पर स्मारक बनाया गया है और मूर्ति लगाई गई है। बस अड्डे से यमुना पुल को जाने वाले मार्ग का नाम रखा है। स्वजन और ग्रामीण उनकी जयंती पर पहली जनवरी को हर वर्ष खेल-कूद प्रतियोगिता कराते हैं।