लगातार असफलता ने दिलाया अनुभव और अब मिल गई मंजिल, प्रांशु शर्मा ने UPSC में हासिल किया 65वीं रैंक
राजेंद्र शर्मा के भतीजे एवं फरीदाबाद महानगर विकास प्राधिकरण से हाल ही में सेवानिवृत हुए चीफ इंजीनियर विजय शर्मा के पुत्र प्रांशु शर्मा ने 65वीं रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर परिवार में खुशियां ला दी हैं।

फरीदाबाद, जागरण संवाददाता। जिले में डीटीपी के पद पर तैनात रहे राजेंद्र शर्मा के भतीजे एवं फरीदाबाद महानगर विकास प्राधिकरण से हाल ही में सेवानिवृत हुए चीफ इंजीनियर विजय शर्मा के पुत्र प्रांशु शर्मा ने 65वीं रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर परिवार में खुशियां ला दी हैं। प्रांशु शर्मा प्रदेश के परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा के समधी के पुत्र हैं।
प्रांशु शर्मा को यह शानदार सफलता यूं हीं नहीं मिल गई बल्कि इसके लिए उन्होंने लगातार पांच वर्ष तक कड़ी मेहनत की और तप किया। असफलताओं का भी सामना किया, पर हौसला नहीं खोया, निराश नहीं हुए। बस कोशिशें जारी रखी और अंतत: छठे और अंतिम प्रयास में 65वीं रैंक के साथ परीक्षा पास कर मंजिल हासिल कर ही ली।
पहले प्रयास में मिली थी 448वीं रैंक
प्रांशु का परिवार अब गुरुग्राम में रहता है। उन्होंने दसवीं कक्षा की परीक्षा चंडीगढ़ में ट्राई सिटी के टॉपर छात्र के रूप में पास की और 12वीं की पढ़ाई डीपीएस आरके पुरम से की। फिर बिट्स हैदराबाद से सिविल इंजीनियरिंग की, पर प्रांशु आईएएस अधिकारी बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने यूपीएससी की तैयारी की। प्रांशु ने पहले ही प्रयास में 2017 में ही यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी, पर तब उनका रैंक 448वां आया था।
इस रैंक के साथ प्रांशु को रेलवे में लेखा शाखा में अच्छे पद पर नियुक्ति तो मिल गई थी, पर आईएएस या आईएफएस अधिकारी के रूप में देश सेवा की इच्छा मन में रह गई। खैर प्रांशु ने निराश होने की बजाय नौकरी के साथ-साथ ही पढ़ाई जारी रखी और अगले वर्ष फिर से यूपीएससी की परीक्षा मे बैठे। यह क्रम उन्होंने अगले चार बरस लगातार जारी रखा, पर मनचाही सफलता उनसे दूर रही। यूपीएससी में उत्तीर्ण होने के छह मौके मिलते हैं।
अब अंतिम मौका उनके पास 2022 का और था। इस बार असफलताओं के भंवर से निकल कर प्रांशु ने सफलता की नई इबारत अपने नाम लिखी और मंगलवार को जब परिणाम आया तो सफल परीक्षार्थियों की सूची में प्रांशु का नंबर 65वां था। दैनिक जागरण से बातचीत में प्रांशु ने कहा कि लगातार प्रयास और उसके बाद आ रहे परिणाम ने उन्हें ज्यादा निराश नहीं किया, बल्कि असफलताओं ने उन्हें अनुभव दिलाया।
विदेश सेवा में जाने की इच्छा
इसी अनुभव ने अब उन्हें मंजिल दिला दी है। प्रांशु की पहली प्राथमिकता व रुचि विदेश सेवा में जाने की है। इसलिए वो आईएफएस को चुनेंगे, उन्हें आशा भी है कि इस रैंक पर आईएफएस मिल जाएगा, पर अगर आईएएस अधिकारी के रूप में भी नियुक्ति होती है तो भी उन्हें स्वीकार है और देश व समाज की सेवा करने के ध्येय के साथ अपना काम करेंगे।
प्रांशु ने कहा कि आजादी के अमृत काल में भारत विश्व गुरु बनने की दिशा में अग्रसर हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश आगे बढ़ रहा है। आईएएस या आईएफएस अधिकारी बन कर अपना योगदान दे पाऊं, ऐसी कोशिश होगी। रेलवे में अकादमिक निदेशक स्मृति वर्मा के काम करने के अंदाज से प्रेरित प्रांशु ने कहा कि सफलता में खुद की मेहनत के अलावा माता-पिता, शिक्षकों, मित्रों सभी का योगदान है।
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