आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी की थीम पर आधारित सूरजकुंड मेला, जयपुरी मसालों की खुशबू से भरा महिलाओं का जीवन
सूरजकुंड दिवाली मेला ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों ने स्टॉल लगाए हैं। उजाला समूह की महिलाएं जयपुरी मसाले बेच रही हैं। 2014 में 10 महिलाओं से शुरू हुआ समूह आज 110 महिलाओं तक पहुंच गया है। ये महिलाएं शुद्ध मसाले बेचकर अच्छी कमाई कर रही हैं और अपने जीवन स्तर में सुधार ला रही हैं।

अनिल बेताब, फरीदाबाद। सूरजकुंड दिवाली मेला ग्रामीण महिलाओं की आत्मनिर्भरता के लिए लाभकारी सिद्ध हो रहा है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से, मेले में स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं द्वारा बड़ी संख्या में स्टॉल लगाए गए हैं।
उजाला स्वयं सहायता समूह का स्टॉल नंबर आठ झज्जर के बदानी गाँव की महिलाओं का है। उनके स्टॉल पर जयपुरी मसाले उपलब्ध हैं। महिलाएं जयपुर से साबुत मसाले लाकर गाँव में पीसती हैं।
मसाले की गुणवत्ता और साफ़-सफ़ाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। ये मसाले न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी हैं। समूह की प्रमुख कमला देवी, सूरजकुंड मेले में तीखे और जायकेदार मसाले लेकर आई हैं।
स्टॉल पर शुगर-फ्री बाजरे के लड्डू भी
सूरजकुंड दिवाली मेला आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी की थीम पर आधारित है। कमला देवी के साथ कमलेश देवी और मुन्नी देवी भी हैं। कमला देवी कहती हैं कि वे विभिन्न प्रकार के शुद्ध मसाले उपलब्ध कराती हैं।
एक समूह से शुरुआत, अब 110 महिलाएं जुड़ीं
कमला देवी ने बताया कि 2014 में उन्होंने 10 महिलाओं के साथ एक स्वयं सहायता समूह बनाया। ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, उन्होंने राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर मसाले बनाने के लिए एक लाख रुपये का ऋण लिया। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा घर पर बनाए जाने वाले विभिन्न मसाले बहुत लोकप्रिय हैं।
उन्होंने गांव के दो अन्य समूहों से जुड़कर तीन समूहों का एक ग्राम संगठन बनाया। आज उनके समूह में 110 महिलाएं हैं। महिलाओं द्वारा तैयार किए गए मसाले, जिनमें गरम मसाला, हल्दी, हल्की और तीखी मिर्च, सौंफ के पैकेट, सेंधा नमक और अन्य मसाले शामिल हैं, बहुत लोकप्रिय हैं। ये सभी मसाले पूरी तरह से शुद्ध और बिना किसी मिलावट के हैं, जिससे ये स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक दोनों हैं।
महिलाओं के जीवन में सुधार
एजला समूह से जुड़ने से कई ग्रामीण महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार हुआ है। पूनम, एक ग्रामीण, के पति मज़दूरी करते हैं। उनके दो बच्चे हैं। कई साल पहले, उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, किसी तरह गुज़ारा करना मुश्किल था।
समूह से जुड़ने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी। पूजा के पति भी मज़दूरी करते हैं। उनके तीन बच्चे हैं। उनके पति की आमदनी कम थी, और पहले बच्चों की स्कूल फीस भरना भी मुश्किल था। पूजा ने बताया कि समूह से जुड़ने के बाद से वह लगभग 10,000 रुपये प्रति माह कमा लेती हैं। इसी तरह, पिंकी, सुषमा और मुन्नी देवी की ज़िंदगी भी बदल गई है।
उनके स्टॉल तक कैसे पहुंचें
अगर आपको जयपुरी मसालों की खरीदारी करनी है, तो मुख्य चौपाल के पास जाएं। उनका स्टॉल नंबर आठ चौपाल के पास ही स्थित है।
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