Faridabad Nikay Chunav : खूब हुई सियासत फिर भी नहीं थके सूबेदार सुमन, शहर के पहले मेयर की रोचक कहानी
अगर किस्मत में हुकूमत लिखी हो तो सत्ता को भी झुकना पड़ता है। ऐसी ही एक रोचक कहानी शहर की पहली मेयर सूबेदार सुमन के इस पद पर आसीन होने से जुड़ी है। प्रदेश के पहले नगर निगम का श्रेय फरीदाबाद को जाता है। तब तत्कालीन खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह अपने समर्थक सूबेदार सुमन को मेयर बनवाना चाहते थे जो अनुसूचित जाति वर्ग से पार्षद थे।

संवाददाता जागरण, फरीदाबाद। अगर किस्मत मजबूत हो और किस्मत में हुकूमत लिखी हो तो सत्ता को भी झुकना पड़ता है। ऐसी ही एक रोचक कहानी शहर की पहली मेयर सूबेदार सुमन के इस पद पर आसीन होने से जुड़ी है। प्रदेश के पहले नगर निगम का श्रेय फरीदाबाद को जाता है।
1994 में हुआ पहला मेयर का चुनाव
1994 से पहले शहर का प्रशासन फरीदाबाद मिश्रित प्रशासन के अधीन था, यानी पूरी तरह से अफसरों के हाथ में था। नवंबर 1994 में पहली बार फरीदाबाद नगर निगम के चुनाव हुए थे। तब 25 पार्षद चुने गए थे। इन्हीं पार्षदों में से मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव होना था।
मेयर चुनने के लिए निकाला गया ड्रा
अब चंडीगढ़ में एक जाति विशेष से मेयर चुनने के लिए ड्रा निकाला गया। उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और चौधरी भजनलाल मुख्यमंत्री थे। जब पहली बार मेयर चुनने के लिए ड्रा निकाला गया तो अनुसूचित जाति वर्ग से एक नाम सामने आया।
तब तत्कालीन खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह अपने समर्थक सूबेदार सुमन को मेयर बनवाना चाहते थे, जो अनुसूचित जाति वर्ग से पार्षद थे।
सुबेदार सुमन के नाम हटाने के लिए तीन बार निकाला ड्रा
महेंद्र प्रताप सिंह के कुछ विरोधी इसके पक्ष में नहीं थे। मुख्यमंत्री के करीबी कुछ विधायकों ने दबाव बनाकर इस ड्रा को रद्द कर नया ड्रा निकालने को कहा। कुछ दिन बाद जब सरकार ने दोबारा ड्रा निकाला तो फिर से अनुसूचित जाति वर्ग से मेयर चुनने के लिए पर्ची निकाली गई।
बता दें कि विपक्षी गुट ने इस बार भी ड्रा रद्द करवा दिया। सरकार ने तीसरी बार ड्रा करवाने का कार्यक्रम घोषित किया। इस बार भी जब पर्चियां निकाली गईं तो वह पर्ची अनुसूचित जाति वर्ग के पार्षद को मेयर बनाने के लिए थी।
पूर्व मंत्री ने बनाया सुबेदार सुमन को मेयर
इस तरह तत्कालीन खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह अपने विरोधियों को मात देकर अनुसूचित जाति वर्ग के अपने समर्थक सूबेदार सुमन को मेयर बनवाने में सफल रहे।
तब पार्षद गुरेंद्र सिंह वरिष्ठ उप महापौर और बसंत विरमानी उप महापौर चुने गए थे। इस तरह सूबेदार सुमन की किस्मत ने तत्कालीन सरकार को अनुसूचित जाति से महापौर बनाने के लिए मजबूर कर दिया था। इस रोचक घटना की पूरे शहर में खूब चर्चा हुई थी।
शहर के पहले महापौर सूबेदार सुमन उस घटना को याद करते हुए कहते हैं कि जिसके भाग्य में जो लिखा होता है, उसे जरूर मिलता है। उसे कोई टाल नहीं सकता। अगर मेरे भाग्य में पहला महापौर बनना लिखा था, तो मुझे मिल गया। इसके लिए सूबेदार सुमन आज भी पूर्व कैबिनेट मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह का आभार व्यक्त करते हैं।
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