फरीदाबाद: पहले चरण में 261 एकड़ जमीन पर गरजा बुलडोजर, अब मंदिर समेत इन पर हो सकता है एक्शन; लोगों में हड़कंप
फरीदाबाद के अरावली वन क्षेत्र (Aravalli forest demolition) में अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई से निर्माणकर्ताओं में दहशत है। वन विभाग ने पहले चरण में 261 एकड़ जमीन खाली करा ली है। अब दूसरे चरण में मंदिर गौशाला और तीसरे चरण में सरकारी निर्माणों पर कार्रवाई हो सकती है। शिक्षण संस्थान वन संरक्षण अधिनियम के तहत अनुमति लेने का प्रयास कर रहे हैं।

जागरण संवाददाता, फरीदाबाद। Faridabad Bulldozer Action: अरावली वन क्षेत्र में हुई कार्रवाई के कारण निर्माणर्ताओं के बीच भय उत्पन्न हो गया है। अधिकारियों की मानें तो चरणबद्ध तरीके से होने वाली कार्रवाई में सिर्फ कमर्शियल ही नहीं बल्कि सरकारी इकाइयां, शिक्षण संस्थान और धार्मिक स्थलों का नाम भी सूची में शामिल है।
इनपर कभी भी बुलडोजर गरज सकता है, ऐसे में निर्माणों को बचाने के लिए वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) की ओर रुख कर रहे हैं। जिला वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि वन क्षेत्र में पहले चरण की कार्रवाई लगभग पूरी हो चुकी है।
अवैध निर्माण पर हुई कार्रवाई के बाद बचे हुए फार्म हाउस, बैंक्वेट हॉल और मैरिज गार्डन के हिस्सों को गिराया जा रहा है। वन विभाग को करीब 260 इकाइयों को तोड़ना था।
अभी तक 240 निर्माणों को तोड़कर करीब 261 एकड़ जमीन खाली कराई जा चुके है। बचे हुए 20 बैंक्वेट हाल और मैरिज गार्डन में से कुछ पर कोर्ट का स्टे लगा हुआ है। जिसकी वजह से इनपर कार्रवाई नहीं हुई है।
शिक्षण संस्थानों और धार्मिक स्थल भी सूची में शामिल
अधिकारियों के अनुसार वन विभाग को अरावली वन क्षेत्र से करीब साढ़े छह हजार अवैध निर्माण पर कार्रवाई कर 800 एकड़ की जमीन खाली करानी है। विभाग एक तिहाई हिस्सों की जमीन खाली करा चुका है।
दूसरे चरण में मंदिर, गौशाला, आश्रम और तीसरे चरण में पुराने सरकारी निर्माण तथा चौथे चरण में शैक्षणिक संस्थानों पर गाज गिर सकती है। अधिकारियों ने सरकार और सेंट्रल एंपावर्ड कमेटी को रिपोर्ट सौंप दिया है। सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई सितंबर के पहले सप्ताह में होगी।
एफसीए की तरफ भाग रहे शिक्षण संस्थान
वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना किसी भी वन भूमि का उपयोग गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता है। ऐसे क्षेत्रों गैर-वनीय उद्देश्य के लिए उपयोग करने के सभी प्रस्तावों को केवल केंद्र सरकार ही अनुमति दे सकती है।
यह मंजूरी तीन चरणों में दी जाती है। पहले चरण में प्रस्ताव पर भारत सरकार द्वारा सैद्धांतिक सहमति दी जाती है। जिसमें आमतौर पर भारतीय वन अधिनियम, 1972 के अंतर्गत प्रतिपूरक वनरोपण के लिए गैर-वन भूमि के हस्तांतरण, नामांतरण और वन भूमि के रूप में घोषणा तथा प्रतिपूरक वनरोपण को धनराशि जुटाने से संबंधित शर्तें निर्धारित की जाती हैं।
निर्धारित शर्तों के संबंध में राज्य सरकार से अनुपालन रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद भारत सरकार द्वारा अधिनियम के अंतर्गत औपचारिक अनुमोदन जारी किया जाता है। तीसरे चरण में राज्य सरकार वन अधिनियम, 1980 की धारा 2 के अंतर्गत अंतिम चरण की मंजूरी प्रदान करती है। एक शिक्षण संस्थान को पहले चरण की अनुमति मिल गई है। अन्य शिक्षण संस्थान भी इसके तहत अनुुमति लेने का प्रयास कर रहे हैं।
अरावली वन क्षेत्र में चार चरणों में कार्रवाई होनी है। पहले चरण की कार्रवाई में 261 एकड़ जमीन खाली करा दी गई है। अभी तक हुई कार्रवाई की रिपोर्ट बन सरकार को सौंप दी गई है। आदेशानुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी।
विपिन सिंह, जिला वन अधिकारी।
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