Faridabad Diwali Mela: मेले में बड़ी संख्या में क्यों नहीं पहुंचे पर्यटक? निराश लौटे स्टॉल संचालक
सूरजकुंड दिवाली मेले में स्टाल संचालकों को उम्मीद के मुताबिक फायदा नहीं हुआ। छह दिनों में केवल 12500 टिकट बिके जिससे कई स्टाल संचालकों को नुकसान हुआ। स्टाल संचालकों ने टिकट दर कम करने और स्टालों की स्थिति सुधारने की मांग की है। अधिकारियों ने सुझावों पर विचार करने का आश्वासन दिया है। इस दिवाली मेले में लगभग 450 स्टाल लगाए गए थे।

अनिल बेताब, फरीदाबाद। दो अक्टूबर को शुरू हुए सूरजकुंड दीवाली मेले से स्टाल संचालकों को बड़ी उम्मीद थी कि यहां कद्रदान मिलेंगे और उनके उत्पादों की बिक्री भी खूब होगी। मगर अपेक्षा के अनुरूप ऐसा हुआ नहीं।
सात अक्टूबर को मेले का समापन हो गया और इस दौरान छह दिनों में 12500 टिकटों की बिक्री हुई। पर्यटकों की पर्याप्त संख्या न होने के कारण कारोबार प्रभावित हुआ और स्टाल संचालक निराश मुद्रा में लौटे। कई स्टाल संचालक तो ऐसे थे, जिन्होंने कहा कि मुनाफा तो दूर की बात उन्हें घाटा हो गया।
हर वर्ष फरवरी में लगने वाले सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले से सूरजकुंड दीवाली मेला बिल्कुल अलग था। फरवरी में लगने वाले मेले में तो देश-विदेश से शिल्पियों को विशेष तौर पर आमंत्रित किया जाता है। उनके ठहरने और खानपान की व्यवस्था पर्यटन विभाग की ओर से होती है।
मगर यह दीवाली मेला पूरी तरह से व्यावसायिक रहा। मेले में अलग-अलग क्षेत्र में कारोबार करने वाले ज्वैलरी निर्माता, विक्रेता मोमबत्ती, दीये के कारोबार के साथ ही सजावटी सामान से जुड़े कारोबारियों ने स्टाल खरीदे थे। लगभग 450 स्टार लगाए गए थे, इनमें से 50 से अधिक स्टाल फूड कोर्ट में थे।
संचालकों ने नाराजगी जताई कि उन्होंने 10 हजार रुपये में एक स्टाल खरीदा है, मगर उनके यहां इतनी भी बिक्री नहीं हुई कि खर्चा निकल सके, हालांकि कई स्टाल राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह को भी प्रदान किए गए थे। एक समूह से हजार रुपये शुल्क लिया गया था और उन्हें स्टाल उपलब्ध कराए गए थे।
व्यवस्था को लेकर जताई नाराजगी
सेक्टर-नौ निवासी कुशाग्र बजाज मैटल की ज्वैलरी व सजावटी उत्पाद लेकर आईं थी। मेले में उनके साथ एक सहायक भी था। सहायक का वेतन, स्टाल का किराया, पार्किग का खर्चा,प्रतिदिन लंच और डिनर का बिल कुल मिला कर उनका यहां 34200 रुपये खर्च हुए हैं, मगर उनकी इमनी राशि की भी बिक्री नहीं हुई है।
कुशाग्र ने पर्यटन निगम को सुुझाव इिया कि पर्यटकों को बढ़ावा देने के लिए टिकट दर कम होनी चाहिए। बल्कि ऐसे दीवाली मेले में तो टिकट का शुल्क रखा ही नहीं जाना चाहिए क्योंकि इन दिनों लोग स्वयं ही फेस्टिव मूड में व्यस्त होते हैं।
टिकट लेकर इतनी दूर कोई क्यों मेला प्रांगण तक आएगा। दर्शक आएं तभी तो कारोबार बढ़ेगा और खर्च निलेंगे, आय भी होगी। महरौली, दिल्ली से मेले में कारोबारी ओम गुप्ता डेकाेरेटिव दीये और रंग-बिरंगी लाइट लाए थे। इन्होंने मेले को सफल बनाने के लिए टिकट दर 100 रुपये से कम कर के 30 रुपये किए जाने की मांग की।
वजीरपुर गांव फरीदाबाद निवासी कैंडल निर्माता विवेक तलवार ने स्टाल की दुर्दशा बारे नाराजगी जताई। विवेक ने कहा कि जिस हट में उन्होंने स्टाल लगाया है। वह काफी जर्जर है। छत की हालत देख कर लगाता है कि लंबे समय से इसकी मरम्मत नहीं की गई है।
उन्होंने सुझाव दिया कि स्टाल दोनों तरफ से कवर होना चाहिए, ताकि उत्पाद सुरक्षित रहें। ऐसे में उन्हें स्टाल को कवर करने के लिए अपने खर्चे पर कपड़े के पर्दे लगाने पड़े। उनके यहां अपेक्षा के अनुरूप पर्यटकों ने खरीदारी नहीं की।
मेले की व्यवस्था बेहतर की गई थी। फिर भी अगर किसी स्टाल संचालक या पर्यटक के कोई सुुझाव आए तो उच्च अधिकारियों तक भेजे जाएंगे।
-हरविंद्र सिंह यादव, नोडल अधिकारी
पर्यटकों की संख्या
- 35000 छह दिन में आए पर्यटक
- 12500 टिकटों की बिक्री हुई
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