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    नए भविष्य को आकार दे रहा पुणे का यह संस्थान, फसल अवशेष से बनाया जा रहा बायो हाइड्रोजन; वाहनों का बनेगा ईंधन

    Updated: Sun, 28 Jan 2024 04:19 PM (IST)

    फसल अवशेष से बायो हाइड्रोजन बनाने का सपना आघारकर अनुसंधान संस्थान पुणे ने साकार किया है। इससे स्वच्छ ईंधन के साथ में वेस्ट टू वेल्थ की नीति को प्रोत्साहन मिला है। ग्रीन हाइड्रोजन बनाने की इस प्रक्रिया में पहले चरण में हाईड्रोजन दूसरे चरण में बायो गैस व तीसरे चरण में इससे खेतों के लिए खाद बनाया जा रहा है।

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    आयोजित भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में बायो हाइड्रोजन बनाने के प्रक्रिया की जानकारी लेते इसरो चीफ एस सोमनाथ।

    वैभव तिवारी, फरीदाबाद। फसल अवशेष से बायो हाइड्रोजन बनाने का सपना आघारकर अनुसंधान संस्थान, पुणे ने साकार किया है। इससे स्वच्छ ईंधन के साथ में वेस्ट टू वेल्थ की नीति को प्रोत्साहन मिला है। ग्रीन हाइड्रोजन बनाने की इस प्रक्रिया में पहले चरण में हाईड्रोजन, दूसरे चरण में बायो गैस व तीसरे चरण में इससे खेतों के लिए खाद बनाया जा रहा है।

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    यह हाइड्रोजन फ्यूल वाहनों के ईधन व कैमिकल उद्योगों में इस्तेमाल किया जा सकता है। वर्तमान में इंस्टीट्यूट ने केटीएल को लाइसेंस देकर हाइड्रोजन ऊर्जा को बाजार में लाने की तैयारी प्रयासरत है। भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में पहुंचे आघारकर अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. सुमित डागर ने बताया कि इंडस्ट्री स्केल पर पांच हजार लीटर बायो हाइड्रोजन पर ट्रायल चल रहा है।

    इसके पेटेंट के लिए आवेदन भी किया जा चुका है। फसल अवशेष को अधिक तापमान व महंगे एंजाइम डालकर बायो हाइड्रोजन बनाया जाता है। यह प्रक्रिया बहुत महंगी होती है। इसके साथ ही इलेक्ट्रोलाइसिस प्रोसेस से पानी स्लिट करके हाइड्रोजन बनाया जाता है, लेकिन संस्थान की तरफ से वैक्टीरिया का ऐसा समूह बनाया है जो खुद ही एंजाइम बनाते हैं। इससे अलग से एंजाइम लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। इससे प्रक्रिया आसान होने के साथ में किफायती है।

    लैब में हो चुका है सफल प्रयोग

    इंस्टीट्यूट के लैब में पचास लीटर के हाइड्रोजन व 100 लीटर के बायोगैस पर सफल प्रयोग हो चुका है। इससे मिली सफलता के बाद में इसे बाजार में लाने की तैयारी पर चल रही है। इसके लिए केटीएल कंपनी पांच हजार लीटर हाइड्रोजन व 10 हजार लीटर के बायोगैस बनाने का काम कर रही है। बृहस्पतिवार को संस्थान के स्टाल पर पहुंचे इसरो चीफ एस सोमनाथ ने पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी ली है। साथ ही इसके बाजार में आने की संभावना के स्केल अप ट्रायल के बारे में भी जानकारी ली है।

    नवाचार के क्षेत्र में इंस्टीट्यूट काम कर रहा है। इसी के तहत फसल अवशेष से हरित हाइड्रोजन पर काम कर भारत के उद्योग को वैश्विक मान्यताओं के अनुरूप ढालने का काम किया जा रहा है। बायो हाइड्रोजन बनाने की यह अभूतपूर्व प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया कम लागत, कम श्रम के साथ में उच्च गुणवत्ता वाले हाइड्रोजन का उत्पादन करती है। पर्यावरणीय नवाचार के प्रति यह एक बड़ी उपलब्धी है। -प्रशांत क ढाकेफलकर, निदेशक, आघारकर अनुसंधान संस्थान, पुणे