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    जोगिया द्वारे-द्वारे-सौम्य नेताजी ने चुनावी गर्मी दबाने को ली पहाड़ियों की ठंडक

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 17 May 2019 06:36 PM (IST)

    चुनाव में दोहरी गर्मी के चलते सौम्य नेताजी का पारा सातवें आसमान पर नहीं चढ़ जाए इसलिए उनकी कोर टीम उन्हें पहाड़ियों की ठंडक दिलाने शिमला ले गई। यहां सौ ...और पढ़ें

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    जोगिया द्वारे-द्वारे-सौम्य नेताजी ने चुनावी गर्मी दबाने को ली पहाड़ियों की ठंडक

    चुनाव में दोहरी गर्मी के चलते सौम्य नेताजी का पारा सातवें आसमान पर नहीं चढ़ जाए इसलिए उनकी कोर टीम उन्हें पहाड़ियों की ठंडक दिलाने शिमला ले गई। यहां सौम्य नेताजी ने प्राणायाम और कपाल भाती भी की। इससे उनका मन शांत हुआ। असल में सौम्य नेताजी को इस चुनाव में दोहरी गर्मी मार रही थी। उनके समर्थकों को पता है कि सौम्य नेताजी की खुशियों का कंवल (कमल) इस बार पहली बार से भी ज्यादा मुस्कुरा रहा है और यह बात पहले से पता होने के कारण गुलाबी रंग के बंडल भी खूब मुस्कुराए हैं। ऐसे में दोनों की यह गर्मी कहीं कोई खेल न बिगाड़ दे, इसलिए फिलहाल उनके गुलाबी रंग के बंडलों से अपने बंडलों में इजाफा करने वाली अक्की-उमा की जोड़ी ने यह सकारात्मक कार्य किया। इसका पूरे टूर का ताना-बाना तो उनकी टीम में विजय नाम को सार्थक करने वाले एक युवा ने ही बुना। मगर अब विजय की बजाय अक्की-उमा की जोड़ी सौम्य नेताजी को ज्यादा भाने लगी है। सौम्य नेताजी जब से कमल के फूल वालों के साथ आए हैं तब से उन्होंने अब तक जितने भी चुनाव लड़े हैं, उनकी एक खासियत रही है। उन्होंने चुनाव का जिम्मा अपनी कोर टीम को अलग से दिया है। इसी टीम को वे चुनाव बाद घुमाने ले जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि सौम्य नेताजी के आठ समर्थकों ने यहां कड़वे तेल की मालिश भी कराई है ताकि आने वाले चुनाव में अपने आका के पूर्व मित्र से कुश्ती लड़ी जा सके। सौम्य नेताजी चूंकि मुखियाजी की तरह अपना भाग्य मोर पंख से लिखवाकर आए हैं, इसलिए उनसे इस बात के लिए और कार्यकर्ता नाराज भी नहीं होते। अन्यथा कोई नेता अपने 14 समर्थकों को तो शिमला ले जाए और बाकी यहीं 45 डिग्री के तापमान में जलते रहें और कोई कुछ न कहे। अब वकील साहब की जजिया कर वालों पर हो रही है सख्ती

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    तिगांव वाले वकील साहब ने अब लड़ाई-झगड़ा छोड़ सिर्फ समाजसेवा में अपना ध्यान लगा दिया है। वकील साहब ने पिछले दिनों अरावली पहाड़ियों के संरक्षण के लिए बीड़ा उठाया और उसमें सफलता पाई। एक दिन जब वे अरावली पहाड़ियों का निरीक्षण करके आ रहे थे तो उन्होंने सोहना-बल्लभगढ़ टोल बैरियर पर टोल टैक्स (जिसे सौम्य नेताजी 2014 के चुनाव से पहले जजिया कर कहते थे) वसूलने में हो रही धांधली देखी। बस फिर क्या था वकील साहब, टोल टैक्स वसूलने वाली कंपनी के कर्मचारियों पर पिल पड़े। वैसे तो टोल टैक्स बैरियर पर काम करने वाले इन कर्मियों की नौकरी ही ज्यादा बदतमीजी करने की है मगर वकील साहब का रुतबा देखकर वे पीछे हट गए। खैर, अब वकील साहब की वजह से जजिया कर वसूलने वाले थोड़ा बहुत ठीक जरूर हो गए हैं। पार्षद बंधुओं की दीदी बनी साध्वी

    बड़खल में साध्वी का दुर्भाग्य रहा है कि जिसने उन्हें दीदी बनाकर राखी बंधवाई है, उसी ने धोखा दिया है। क्रशर जोन वाले नेताजी का उदाहरण तो सबके सामने है मगर अब इस लोकसभा चुनाव में साध्वी पार्षद बंधुओं की दीदी बनी हैं। बेशक इस रिश्ते को कायम करने के लिए सौम्य नेताजी ने भी प्रयास किए हैं मगर साध्वी जानती हैं कि पार्षद बंधुओं का प्रशिक्षण कहां-कहां हुआ है। इन बंधुओं में से बड़े पार्षद जी का राजनीतिक प्रशिक्षण सिद्धबाबा के निवास पर हुआ, यहां ठंडा करके खाना सिखाया गया। मगर छोटे वाले पार्षद जी का प्रशिक्षण तो ऐसी जगह हुआ, जहां 'धर जा और मर जा' वाली कहानी से अलग कुछ नहीं होता था। वैसे भी छोटे वाले पार्षद जी को न तो किसी की चिकनी चुपड़ी बातों से कुछ लेना देना होता है और न ही किसी राजनीतिक बात से, उन्हें तो सिर्फ और सिर्फ अपने मतदाताओं का हित चाहिए। दो कांग्रेसियों ने निभाया पुरानी दोस्ती का धर्म

    लोकसभा चुनाव में जिला के दो कांग्रेसियों ने सौम्य नेताजी के साथ पुरानी दोस्ती का धर्म निभाया है। इन दोनों दोस्तों ने दो शहरी विधानसभा क्षेत्रों में अपने समर्थकों के मत इसलिए सौम्य नेताजी को डलवाए ताकि सौम्य नेताजी ज्यादा प्रफुल्लित हो जाएं और जब विधानसभा चुनाव की बारी आए तो उनके हितों की रक्षा कर सकें। वैसे इन दोनों नेताओं को यह भी पता है कि सौम्य नेताजी भी दोस्ती का धर्म निभाते हैं मगर यदि इन दोनों से गहरा कोई दोस्त चुनाव लड़ा तो वे (सौम्य नेताजी) बदल जाते हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में सौम्य नेताजी यह साबित कर चुके हैं। बाक्स..

    गीता से सिर्फ कर्म करने का संदेश मिलता है

    पृथला क्षेत्र के गांव असावटी का बूथ नंबर-88 बड़े साहब को ले डूबा। इस क्षेत्र में बड़े साहब के सहायक गीता के कर्म में विश्वास रखते हैं इसलिए उन्होंने अपनी रिपोर्ट देते समय फल के बारे में तो सोचा ही नहीं। आपको याद दिला दें, बड़े साहब ने पृथला में जिन साहब को अपना सहायक बनाया था, वे अपने कार्यालय में भी गीता का पाठ करते हैं। बड़े साहब को यह तो पता था कि उनके खिलाफ निचले स्तर पर षड्यंत्र होता है मगर वे यह परिकल्पना नहीं कर पाए कि इस बार षड्यंत्र कर्म के परि²श्य में होगा। प्रस्तुति: बिजेंद्र बंसल

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