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    महाभारत काल की परंपरा समेटे हुए है गांव तिलपत

    By Edited By:
    Updated: Sun, 23 Oct 2011 05:24 PM (IST)

    फरीदाबाद, जागरण संवाद केंद्र:

    गांव तिलपत धार्मिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गांव है। कृषि क्षेत्र में भी यह गांव किसी से कम नहीं है, लेकिन विकास की दृष्टि से गांव पिछड़ा हुआ है। द्वापर युग में इस गांव का नाम तिलपत रखा गया था। महाभारत युद्घ के समय पांडवों ने कौरवों से यह गांव मांगा था, लेकिन कौरवों ने गांव देने से इनकार कर दिया था।

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    गांव में सबसे अधिक ब्राह्माण जाति के लोग रहते हैं। इनकी बोलचाल की भाषा में बृज की शैली झलकती है। लगभग 10 हजार आबादी वाले इस गांव में 7500 हजार मतदाता है। गांव में पाराशर, कौशिक, वशिष्ठ, भारद्वाज गोत्र के लोग शामिल हैं।

    विशेष है गांव का धार्मिक महत्व:

    ग्रामीण दयाचंद और राधेश्याम वशिष्ठ ने बताया कि इस गांव के भूगर्भ से महाभारत से भी पहले की प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति मिलेगी। द्वापर में जब श्रीकृष्ण ने पांडवों और कौरवों के बीच समझौता कराया था तो पांडवों को खांडव प्रस्थ का राज्य दिया गया था। जब पांडवों ने इस खांडव प्रस्थ को अपनी राजधानी बनाकर एक सुंदर नगर का निर्माण किया तो उसका नाम इंद्रप्रस्थ रखा था, जिसका प्रमाण राजधानी दिल्ली में पुराना किला के नाम से आज भी मौजूद है। उस समय तिलपत गांव इंद्रप्रस्थ राजधानी के अधीन था। इस इतिहास के पांच मुख्य गांव थे। पहला गांव तिलपत, दूसरा सोनीपत, तीसरा पानीपत, चौथा बागपत और पांचवां मारीपत। इनमें तिलपत गांव सबसे प्राचीन है। पांडवों ने महाभारत काल में कौरवों से उक्त पांच गांव मांगे थे, जिनमें तिलपत गांव भी शामिल था।

    ग्रामीण उमेश, वासुदेव भारद्वाज और रजनी राणा ने बताया कि मुगलों के शासन काल में भी तिलपत गांव तिलपत गढ़ी के नाम से एक रियासत थी। संभवत 1631 में उदय सिंह के बेटे गोकल सिंह सात भाई थे। जिनका तिलपत गांव में कब्जा बहाल था। उस समय दिल्ली के तख्त पर बादशाह औरंगजेब की हुकुमत थी। उस दौरान औरंगजेब गोकल सिंह को अपना दोस्त बनाना चाहता था, परंतु गोकल सिंह ने औरंगजेब की दोस्ती का प्रस्ताव ठुकरा दिया। इस बात पर औरंगजेब ने अपनी सेना तिलपत पर चढ़ा दी तथा 17 दिनों तक घमासान लड़ाई हुई। गोकल की फौज ने औरंगजेब की फौज के छक्के छुड़ा दिए। 1670 में तीन दिन तक तोपें दागी गई और गोकल सिंह को संभलने का मौका नहीं मिला। तिलपत गांव उस समय तिलपत गढ़ी के नाम से जाना जाता था। औरंगजेब ने तिलपत गढ़ी का किला तोड़कर नेस्तनाबूद कर दिया और मिट्टी का ढेर बना दिया। इस बाद औरंगजेब ने साजिश के तहत गोकल के पास एक पत्र भेजा। उस पत्र में शर्त थी कि अगर तुम इस्लाम धर्म कबूल कर लो तो तुम्हारी पुरानी सत्ता बहाल कर दी जाएगी। लेकिन गोकल ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया। औरंगजेब ने गोकल समेत उसके सभी भाइयों को आगरे की कोतवाली में बुला कर मार दिया। फिर तिलपत गढ़ी को तोपों से ध्वस्त करके एक टीला बना दिया, तभी से यह गांव आज भी टीले की शक्ल में है।

    बाबा सूरदास का आना:

    1930 के आसपास इस गांव की महिलाएं युवा अवस्था में विधवा होने लगी। किवदंती है कि इस कष्ट को दूर करने के लिए 1931 में श्री किशोरी शरण जी (बाबा सूरदास) गांव में बंसी वाले के तालाब पर प्रगट हुए। यह वह जगह है कि जहां द्वापर युग में श्रीकृष्ण पांडवों के साथ गांव में तृप्ति यज्ञ करने आए थे। इस गांव में बाबा सूरदास के मंदिर के अलावा बाबा की समाधि, बंगाली बाबा की समाधि है। नोएडा के सेक्टर-22 चौड़ा गांव से बाबा के मंदिर पर आई रजनी राणा ने बताया कि बाबा सूरदास के मंदिर पर जो भी भक्त सच्चे मन से कुछ मांगता है, उसकी तमन्ना पूरी होती है। फरीदाबाद के अलावा एनसीआर में लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम और पंचायत चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार भी यहां चुनाव जीतने की मन्नतें मांगने आते है। बाबा ने यहां के लोगों को राधा वल्लभ श्री हरी वंश, श्री वृंदावन, श्री वनचंद का मंत्र दिया था। आज भी इस मंत्र के साथ भक्तजन संकीर्तन करते हैं।

    1950 में स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू और 1979 में श्रीमती इंदिरा गांधी भी तिलपत रेंज में एयरफोर्स द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में आ चुके हैं।

    कृषि है मुख्य आधार :

    जीवन यापन करने के लिए ग्रामीण कृषि के अलावा नौकरी भी करते हैं। यहां के कई व्यक्ति विदेशों में भी नौकरी कर रहे हैं। यहां के किसान आधुनिक तकनीकी से खेती कर अच्छा मुनाफा कमाते हैं। खुंभी उत्पादन के क्षेत्र में किसान सुशीला को पुरस्कृत भी किया गया है। सुशीला का कहना है कि खुंभी के अलावा यहां पर गोभी, बैंगन, मूली, गाजर और धान की खेती प्रमुख रूप से की जाती है।

    जनसुविधाओं का है टोटा:

    गांव में नालियों की व्यवस्था नहीं है। इस कारण पानी गलियों में बहता रहता है। सड़क कहीं बनी हुई है तो कहीं सड़क का काम अधूरा छोड़ दिया गया है। इतना ही नहीं बिजली के तार लटके हुए हैं। इसके चलते कभी भी हादसा हो सकता है। इतना ही नहीं परिवहन और डाक व्यवस्था नहीं है। दसवीं कक्षा तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद छात्र-छात्राओं को दूर-दराज क्षेत्रों में जाना पड़ता है। गांव की सरपंच सुधा देवी का कहना है कि कई बार जिला प्रशासन को विकास कार्यो के लिए पत्र लिखे हैं। लेकिन प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है।

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