बंधेज : कपड़ा बांधने व गांठ लगाने के बाद होती है रंगाई
अपने देश में वैसे तो सूट साड़ियों और दुपट्टों की कई वैरायटी हैं पर बांधनी कला की बात ही और है।

अनिल बेताब, फरीदाबाद : अपने देश में वैसे तो सूट, साड़ियों और दुपट्टों की कई वैरायटी हैं। अलग-अलग प्रदेशों में इन्हें पसंद भी किया जाता है। मगर बांधनी साड़ी, सूट और दुपट्टों के कद्रदान पूरे विश्व में हैं। बालीवुड में भी बांधनी कला के दीवाने हैं। राजा-महाराजाओं के जमाने की गुजरात की इस कला के मास्टर हैदरअली अपनी पत्नी मरजीना के साथ 35वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में आए हैं। उनके स्टाल पर बांधनी की कई वैरायटी है। इस कला की सराहना करते हुए वर्ल्ड क्राफ्ट काउंसिल ने वर्ष 2018 में हैदरअली को स्पेशल अवार्ड दिया है। हजारों वर्ष पुराना है बांधनी का इतिहास
हैदरअली कहते हैं कि बांधनी कला का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। लाल-पीले-नीले और सफेद रंग के छोटे-छोटे प्रिट वाली साड़ी-दुपट्टा पर बांधनी आर्ट किया जाता है। इस आर्ट को बंधेज भी कहा जाता है। बांधनी एक ऐसी विधि है, जिसमें कपड़े को बांधकर व गांठ लगाकर रंगाई की जाती है। जार्जेट, शिफान, रेशमी व सूती कपड़े को रंग के कुंड में डालने से पहले धागे से कसकर बांधा जाता है और जब इस धागे को खोला जाता है, तो बंधा हुआ हिस्सा रंगीन हो जाता है। फिर हाथ से कपड़े पर धागे के प्रयोग से डिजाइन किया जाता है। हैदरअली कहते हैं कि इसमें कपड़े को कई स्तर पर मोड़ना, बांधना और रंगना शामिल है। गुजरात की यह खूबसूरत कला आज पूरे विश्व में प्रचलित हो गई है। खास बात यह है कि कई वर्ष बाद भी बांधनी की साड़ी, सूट नई जैसी रहती है। यह तकनीक उन्होंने अपने चाचा अब्दुल्लाह और बड़े भाई वली मोहम्मद से सीखी है। उनका बेटा आम्र और बेटी फिरदौस भी इसी कला से जुड़े हैं। दोनों फैशन डिजाइनिग का कोर्स कर रहे हैं। इनसेट..
ऐसे पहुंचे स्टाल तक
मेले में उज्बेकिस्तान जोन के पास में ही स्टाल नंबर 818 है। यह जोन हरियाणा के अपना घर के सामने ही है। आप मेला परिसर में उज्बेकिस्तान जोन में आकर आसानी से पहुंच सकते हैं।
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