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    संस्कारशाला-विविधता का सम्मान

    13 से 13जी तक ------------------ भारत वर्ष विविधता भरा देश है। यहां हर किसी में जाति, धर्म

    By JagranEdited By: Updated: Fri, 20 Oct 2017 05:39 PM (IST)
    संस्कारशाला-विविधता का सम्मान

    13 से 13जी तक

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    भारत वर्ष विविधता भरा देश है। यहां हर किसी में जाति, धर्म या रंग, रूप के तौर पर भिन्नता तो होती है, परंतु खास बात है कि हर भिन्नता का सम्मान भी किया जाता है। इस कारण ही मेरा भारत पूरे विश्व में इतना खास है। इसमें जात-पात पर किसी को छोटा या बड़ा नहीं समझा जाता है।

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    -स्वाति सहारावत, छात्रा, अरावली इंटरनेशनल स्कूल।

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    इस दुनिया में करोड़ों लोग रहते हैं जो अलग-अलग धर्मों, जातियों को मानते हैं। इन लोगों में विविधता

    होती है। अक्सर विविधता को अनेकता का साधन समझा जाता है, परंतु ऐसा नहीं है। विभिन्न जातियों के, धर्मों के, अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले जब एक साथ रहते हैं तो एकता तथा एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना ही उत्पन्न होती

    है।

    -अनन्या अरोड़ा, छात्रा।

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    विविधता में एकता का अर्थ है अनेकता में एकता। भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ पर विविधता में एकता, यह अवधारणा स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। यहां धर्मों, संस्कृतियों और परंपराओं के लोग एक साथ रहते है। भिन्न भाषा और बोली होने पर भी भारत के लोग एक हो के रहते हैं।

    -अनुष्का चौहान, छात्रा।

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    हमारा ऐसा देश है जहा हर धर्म और जाति का सम्मान किया जाता है। यहां धर्म लोगों को एक साथ जोड़ कर रखता है। यहां विविधता का सम्मान होता है। यहां सभी लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इस कारण विश्व में हमारे देश की अलग पहचान है।

    -दीक्षा चुटानी, छात्रा।

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    अलग-अलग धर्म, जाति, खान-पान और रंग रूप के लोग ही हमारे भारत देश को सबसे सुदंर और अनोखा बनाता है। यहां संविधान भी हर जाति और धर्म के लोगो को जोड़ कर रखता है। अगर किसी राज्य मे विविधता न हो तो, वह राज्य सुखी नहीं हो सकता। भारत का उदाहरण हमें बताता है कि विविधता का सम्मान करना कितना जरूरी है। विविधता वह साधन है जो राज्य को जोड़ कर रखता है।भारत ऊंचे, पहाड़ों, घाटियों, महासागरों, जंगल रेगिस्तान, संस्कृति एक माला के रूप में सजा हुआ है। धर्म ग्रंथों में ज्ञान-विज्ञान की एक सी धारा बहती है, वेद, रामायण, महाभारत प्राचीन ग्रंथ, कबीर, नानक, मीरा आदि के पद, महात्मा गांधी, र¨वद्रनाथ जैसे महान व्यक्तियों की ज्ञान से भरी बातें चाहे किसी भी भाषा में हों, लेकिन ज्ञान, मानवता का पाठ, एकता और प्यार संस्कृति सभी कुछ सिखा जाते हैं।

    धर्म हो या पर्व, भौगोलिक विविधता ही, या भाषा की भारत ने भाषाओं को मान्यता प्रदान की है। एक अध्यापक

    (गुरु)भी अपने शिष्यों में अनेक विविधता को अनदेखा कह उन्हें केवल एकभाव से ज्ञान की ज्योति प्रदान करते हैं।

    जिस प्रकार जल अपने में सबकुछ लेकर निर्मल, निश्चल दिखता है उसी प्रकार भारत अनेक विविधताओं के बावजूद भी अडिग हिमालय की तरह गर्व से खड़ा है। लेकिन जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार कई बार बहु-भाषायी संबंधी लोग सामाजिक ¨चताओं को बढ़ावा देते है। धर्म के ठेकेदार भी कभी कुछ गलतियां कर परेशानी का कारण बन जाते है।

    -गायत्री शर्मा, अध्यापिका।

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    भारत को विविधता की कसौटी पर परखा हुआ संस्कृति के सोने-सा खरा देश माना जाता रहा है। यही विविधता हमारे देश की अ²श्य शक्ति तथा ताकत का आधार रही है। यहां ही संस्कृति धर्म, दर्शन और ¨चतन प्रधान रही है। यहां धर्म का अर्थ न मजहब है और न ही जाति है। भारतीय संस्कृति ने सदैव एक अच्छे यजमान होने का कर्तव्य निभाया है, जिसने हर सभ्यता, हर संस्कृति का आगे बढ़कर स्वागत किया। शायद यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में इतनी विविधता पाई जाती है।

    भारतीय संस्कृति का यही गुण इसके उदार भाव एवं जीवन मूल्यों का पुंज है। भारतीय संस्कृति का एक अलौकिक तत्व इसकी सहिष्णुता है, जिसने इतने उतार-चढ़ावों के बावजूद अपनी पहचान अपनी पहचान कायम रखी तथा सभी को स्वीकार भी किया।

    भारतीय संस्कृति एकांगी नहीं, सर्वांगीण है। इसके सब पक्ष परिपक्व, विकसित, और संपूर्ण हैं।

    इसमें न कोई रिक्तता है और न संकीर्णता। भारतीय संस्कृति की इन्हीं विशेषताओं ने इस देश को एक सशक्त एवं संपूर्ण भावनात्मक एकता के सूत्र में बांध रखा है। यही कारण है कि देश के भीतर छोटे-मोटे विवाद, बड़े-बड़े युद्ध और व्यापक उथल-पुथल के बाद भी भारत की एकता खंडित नहीं हुई। देश की एकता का सबसे सुदृढ़ स्तंभ इसकी संस्कृति है। रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा और त्योहारों-उत्सवों की विविधता के पीछे सांस्कृतिक सरमसता का तत्व दृष्टिगोचर होता है।

    -अर्चना नागपाल, अध्यापिका।

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    देश में विविधता के होते हुए भी यदि वे एक दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं। तइसका कारण केवल यही है कि हम न केवल एक दूसरे का सम्मान करते हैं अपितु सबकी धार्मिक भावनाओं का भी सम्मान करते हैं। यही दृष्टिकोण न केवल समाज को, बल्कि देश को भी पोषित करने में सहायक हैं। ऐसी सोच से ही संस्कृति का मान बढ़ता है। सकारात्मक सोच वाले मनुष्य को, समाज को और देश को उन्नत रहने के लिए एक माला के रूप में सुगंध देते रहना चाहिए और महकाते रहना चाहिए।

    अपने देश में ही सामाजिक नैतिकता और सदाचार के सूत्रों के प्रति समान आस्था के दर्शन होते हैं।

    विविधता में एकता होते हुए उसका सम्मान करना सबसे बड़ी विशेषता है। केवल भारत ही ऐसा देश है,

    जहां मनोवैज्ञानिक, वैचारिक, राजनीतिक, धार्मिक, बहुभाषी, शारीरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद भी एकता के अस्तित्व को कायम रखने के लिए सम्मान किया जाता है।

    भारत एक ऐसा देश है, जहां कई राज्य हैं। हर राज्य में विविधता दिखाई देती हे। हमें इस विविधता का सम्मान करना चाहिए और विविधता को एकता का साधन समझना चाहिए। एक चीज है भारत में, जो हर देश है देखता,और वे है, विविधता के बावजूद, उत्पन्न हुई एकता। हर किसी को उसकी ¨जदगी उसके तौर पर जीने की पूर्ण

    स्वतंत्रता। यहां हर धर्म को बराबर माना जाता है। और हर किसी को अपने धर्म को पालन करने की छूट है।

    -मोनिका मेहता, अध्यापिका।

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    अपने देश में हर जगह अलग-अलग विचारों का पालन करने वाले लोग मिलते है। भारत ही एक ऐसा देश है, जहां अन्य धर्मो का पालन करने वाले लोग एक स्वरुप होकर रहते है। भारत अनेकता में एकता का पूरा पालन करता है। लोगो का मानना है कि अलग धर्म, विचार, जाति आदि मानने वाले लोग एक साथ खुश नहीं रह सकते, परंतु हमारे देश की धरती पर यह बात लागू नहीं होती जा रही है। हमारे देश में भेद-भाव करने वालों के लिए कोई जगह नही है। हमें हमेशा इस विविधता का सम्मान करना चाहिए। सदियों से भारत वर्ष के लिए एक पंक्ति उसके स्वरूप को स्पष्ट करती है-अनेकता में एकता भारत की विशेषता। भारत ही केवल ऐसा देश है, जहां न केवल रंग-रूप, खान-पान, जाति-धर्म में विविधता पाई जाती है, अपितु उसका सम्मान भी किया जाता है। यहां विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, सभी के रहन-सहन भिन्न हैं। इसके बावजूद लोगों में एक-दूसरे के

    प्रति प्रेम, भाईचारे की भावना, एक-दूसरे के सुख-दुख के प्रति संवेदना इस बात का प्रतीक हैं कि धर्म

    लोगों को तोड़ता नहीं, बल्कि जोड़ता है। इसीलिए यहां के चार मुख्य धर्म ¨हदू, मुस्लिम, सिख तथा ईसाई भारत के चार स्तंभ बनकर देश के एकीकरण को परिलक्षित करते हैं। विविधता के एकीकरण का मुख्य श्रेय गुरु को जाता है, जो छात्रों में बचपन से शिक्षा के माध्यम से विभिन्न धर्मों के प्रति प्रेम तथा सम्मान के बीज बोता आया है। गुरु ऐसा शब्द है, जिसे ध्यान से देखा जाए तो उसमें मात्राएं तो लघु हैं परंतु उसका अर्थ बहुत बड़ा है। कहने को केवल इस शब्द का अर्थ बड़ा नहीं है, बल्कि यह शब्द एक गुरु के विचारों को भी प्रकट करता है। विविधता केवल धर्मों की, रहन-सहन की, बोली की ही नहीं होती, विचारों में भी विविधता पाई जाती है।

    दंगो से देश की अखंडता को बचाए रखने के लिए तथा देशभक्ति की भावना को जगाए रखने के लिए लोगों में एक दूसरे के प्रति प्रेम जागृत करना अति आवश्यक है, जिसकी शुरूआत विद्यालय से की जाती है। विद्यालय, जहां छात्रों को विविध विषयों के माध्यम से एक अच्छे नागरिक का निर्माण करते हैं। विद्यालय में ही छात्र अपने अध्यापक-अध्यापिकाओं के

    दिशा निर्देशों का पालन करते हुए तथा दूसरों की मदद करते हुए अपने उत्कृष्ट भविष्य के लिए तत्पर होते

    हैं।

    विद्यालय के एक छोटे से प्रांगण में समाज के तौर-तरीकों को सीखते हैं तथा जीवन जीने की कला को सीखते हैं। वैचारिक मतभेद के बावजूद एक-दूसरे का सम्मान करना सीखते हैं, क्योंकि यहीं से ही इनमें नैतिक मूल्यों तथा आदर्शों के बीज बोए जाते हैं एवं उनके आचरण को भी संवारा जाता है। विषय को ध्यान में रखते हुए यदि हम कहें कि विविधता का सम्मान करना वे विद्यालय से ही सीखते हैं। यह कहने में अतिशयोक्ति न होगी कि विद्यालय में ही वे विभिन्न धार्मिक मूल्यों को सीखते हुए अपने वैचारिक दृष्टिकोण को विस्तृत करते हैं। प्रसिद्ध कवि इकबाल द्वारा रचित गीत सारे जहां से अच्छा ¨हदुस्तां हमारा की पंक्ति(मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।) लोगों के मन-मस्तिष्क में इस कदर घर कर चुकी है कि यहां जिस जोश के साथ होली, दिवाली मनाई जाती है उसी जुनून के साथ ईद और गुरुपर्व भी मनाया जाता है।

    -धन ¨सह भड़ाना, चेयरमैन, अरावली इंटरनेशनल स्कूल, सूरजकुंड रोड, फरीदाबाद।