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    पांडवों से जुड़ा है गांव मोहना का अस्तित्व

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    Updated: Sun, 06 Nov 2011 06:11 PM (IST)

    बल्लभगढ़, वरिष्ठ संवाददाता : गांव मोहना यमुना के किनारे बसा है। इसका धार्मिक रूप से इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है। यहां के लोगों का पेशा मुख्य रूप से कृषि है। गांव के एक सपूत ने कारगिल युद्ध में शहादत दी थी।

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    गांव का इतिहास : गांव में एक दुर्गा मंदिर है। इसके चारों तरफ पांडवों के समय के पांच खंभ बने हुए हैं। इन खंभों के नाम पांचों पांडवों के नाम से प्रसिद्ध है। पुजारी पूर्ण और साधुराम का कहना है कि द्वापर युग में संतों को राक्षस पूजा-पाठ व यज्ञ नहीं करने देते थे। तब पांडवों ने संतों का यज्ञ पूर्ण कराया था और यज्ञ स्थल पर दुर्गा देवी प्रकट हुई थी। यहां तभी से मंदिर बना हुआ है। नवरात्र में अष्टमी को मेला लगाया जाता है और दंगल का आयोजन किया जाता है। गांव में सिद्ध मंदिर है। इसने यमुना में डूबने वालों को कई बार बचाया है। उसकी भी पूजा की जाती है।

    मुगलों से भी जुड़ा है इतिहास : गांव के निवासी, विक्रम, त्रिलोक चंद व भगत सिंह का कहना है कि पृथ्वी राज चौहान के बाद भारत में मुगल आ गए। इसलिए गांव में मुसलमान रहने लगे। गांव को मियांओं का गांव कहने लगे। बाद में इसका नाम बदल कर मैना पड़ गया। ग्रामीण क्षेत्र में इसे मैना के नाम से ही जानते हैं, लेकिन हिंदुओं ने इसका नाम मोहना रख दिया। रूपचंद व भगत सिंह का कहना है कि यहां मुसलिम रहते थे, जो भारत-पाक बंटवारे के दौरान पाकिस्तान चले गए। उनके मकान तथा जमीन पाकिस्तान से भारत आए हिंदुओं को दे दिए गए। अब गांव में अत्री गोत्र के जाट रहते हैं, जो नोएडा उत्तर प्रदेश के गांव खंडिया से आकर यहां बसे हैं।

    गांव की आबादी : गांव की आबादी 10 हजार है, जिसमें 5800 मतदाता हैं। गांव के लोगों का मुख्य रूप से पेशा कृषि है। ये आधुनिक तरीके से खेती करते हैं। गांव में ट्रैक्टरों की संख्या 100 के करीब है। गांव के नवयुवक पेंट-कमीज पहनते हैं। बुजुर्ग सिर पर पगड़ी, धोती, कुर्ता, पाजामा पहनते हैं। वृद्ध महिला कमीज, ओढ़ना, पेटीकोट पहनती हैं और नई पीढ़ी की महिला सूट-सलवार पहनती है।

    गांव में उपलब्ध सुविधाएं : पूरे गांव की सड़कें सीमेंट व कंकरीट की बनी हुई हैं। शिक्षा के लिए गांव में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय (बाल), राजकीय उच्च विद्यालय (कन्या) तथा राजकीय प्राथमिक विद्यालय है। यहां चार प्राइवेट स्कूल हैं। गांव में स्वास्थ्य की दृष्टि से अंग्रेजों के शासन काल से अस्पताल बना हुआ है। यहां अब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिसमें चार डाक्टर हैं। गांव में व्यापारिक दृष्टि से अनाज मंडी है। यहां दो बैंक हैं। पेट्रोल पंप हैं। पलवल और बल्लभगढ़ आने-जाने के लिए बस सेवा है। यमुना पर पुल बना हुआ है। लोगों के लिए गांव में बाजार है, जिसमें सभी समान मिलता है। पीने के लिए पानी की आपूर्ति है।

    एक सपूत की कारगिल युद्ध में शहादत : शहीद विरेंद्र कुमार चार जाट रेजिमेंट में सिपाही था। वह कारगिल युद्ध के दौरान मश्कोह घाटी में तैनात था। चार जुलाई 1999 को उसने पाक सैनिकों से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। उसकी स्मृति में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में शहीद स्मारक बनाया गया है। उसकी जयंती पर हर वर्ष पहली जनवरी को खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।

    गांव की समस्याएं : यह गांव आसपास के करीब 25 गांवों का केंद्र है। यमुना पार हरियाणा के खादर क्षेत्र के 15 गांवों के लोग यहां आकर पलवल व बल्लभगढ़ के लिए बस लेते हैं। फिर भी यहां कोई बस अड्डा नहीं बनाया गया है। लोगों को बारिश के मौसम में यहां बनी दुकानों में शरण लेनी पड़ती है। गांव में काफी समय से कालेज बनाए जाने की मांग चली आ रही है, क्योंकि यह शहर से दूर बसा हुआ है। यदि यहां कालेज बना दिया जाए तो आसपास के गांवों की लड़कियों के शिक्षा स्तर में काफी सुधार होगा।

    प्रस्तुति : सुभाष डागर

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