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    पंचायत चुनने में अहम भूमिका निभाती है सपेरा जाति

    By Edited By:
    Updated: Sun, 10 Jan 2016 12:46 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, फरीदाबाद: आस्तित्व के संकट से जूझ रही सपेरा जाति के लोग जिले के एक दर्जन से अधिक ...और पढ़ें

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    जागरण संवाददाता, फरीदाबाद:

    आस्तित्व के संकट से जूझ रही सपेरा जाति के लोग जिले के एक दर्जन से अधिक गांवों की पंचायत चुनने में अहम भूमिका निभाएंगे। इनके वोट किसी प्रत्याशी के सिर जीत का सेहरा बांध सकते हैं तो किसी को हार का मुंह दिखा सकते हैं। इनके वोट हासिल करने के लिए प्रत्याशियों ने भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी है।

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    जिले के राजपुर कलां, सहरावक खेड़ा, सिडोला, चीरसी, खानपुर, टिकावली, देहा, तिलपत, छोटी खेड़ी, भतौला, फज्जूपुर, मच्छगर, अरुआ और मोठूका गांवों में सपेरा जाति के लोग हैं। जिले में इनकी संख्या करीब 5 हजार है। सभी जगह यह जाति मुख्य गांव से थोड़ा हटकर एक डेरे में बसी है। अधिकतर जगह यह आर्थिक व शैक्षिक स्तर पर पिछड़ी हुई जाति है। आज भी इनके घर मिट्टी के बने हुए हैं। इस जाति के लोगों का पुश्तैनी काम सांप पकड़कर खेल दिखाना, सांप काटे का इलाज करना व जड़ी बूटियां बेचना था। सुप्रीम कोर्ट ने सांप पकड़ने पर रोक लगा दी। इसके बाद से यह जाति आस्तित्व के संकट से जूझ रही है। अब यह शादी या अन्य समारोहों में बीन, ढोल बजाकर रोजी कमाते हैं। इनमें डेरे का एक मुखिया होता है। उसके निर्णय को डेरे के सभी लोग मानते हैं। वोट भी यह मुखिया के निर्देश पर ही करते हैं। इनमें अधिकतर किसी एक प्रत्याशी को समर्थन करने की प्रवृति होती है। इससे इनके वोट बेहद अहम माने जाते हैं।

    आमतौर पर इस जाति के लोग हाशिये पर रहते हैं, मगर चुनावों में अचानक इनकी अहमियत बढ़ जाती है। सभी प्रत्याशी इनके वोट हासिल करने के लिए इन्हें सिर आंखों पर बैठाते हैं।

    सहरावक डेरे के सपेरे युवक रवि का कहना है कि सपेरा नाम ही सांप से बना है। ¨कतु सुप्रीम कोर्ट के सांप न रखने को आदेश के बाद सपेरे केवल नाम के रह गए हैं। वह कहते हैं कि हमारी जाति बीन बनाने व बजाने में बेहद पारंगत है। देश-विदेश में उनकी इस कला के कद्रदान हैं। मगर बिना सांप के न बीन का कोई औचित्य है न सपेरों का कोई आस्तित्व।