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राजा नाहर ¨सह को नहीं याद करती सरकार

सुभाष डागर, बल्लभगढ़ 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के प्रमुख नायकों में बल्लभगढ़ के वीर राज

By Edited By: Published: Thu, 07 Jan 2016 12:47 AM (IST)Updated: Thu, 07 Jan 2016 12:47 AM (IST)
राजा नाहर ¨सह को नहीं याद करती सरकार

सुभाष डागर, बल्लभगढ़

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1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के प्रमुख नायकों में बल्लभगढ़ के वीर राजा नाहर ¨सह भी शामिल थे। नाहर ¨सह को अंग्रेजों ने 9 जनवरी 1858 के दिन दिल्ली के चांदनी चौक में सेनापति के भूरा ¨सह, गुलाब ¨सह के साथ फांसी पर लटका दिया था। बल्लभगढ़ में राजा नाहर ¨सह का महल और नाहर ¨सह पार्क बलिदान को याद दिलाने वाला शहीद स्मारक भी है मगर उनके बलिदान दिवस पर यहां कोई सरकारी स्तर पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम नहीं होता। शहीद राजा नाहर ¨सह का बलिदान दिवस सेक्टर-3 स्थित राजा नाहर ¨सह पैलेस में मनाया जाता है। इसका आयोजन राजा नाहर ¨सह के वंशज राजकुमार तेवतिया करते हैं। इस बार भी यहां पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर और प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष डॉ.अशोक तंवर सहित कुछ दिग्गज कांग्रेस नेता शहरी राजा को श्रद्धांजलि देने आ रहे हैं।

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बल्लभगढ़ रियासत की स्थापना गांव सिही निवासी बलराम ¨सह उर्फ बल्लू ने 1606 में की थी। सबसे पहले राजा बल्लू बने। उनकी सातवीं पीढ़ी में नाहर ¨सह पैदा हुए। वे 13 वर्ष की आयु में ही राजा बन गए। राजा नाहर ¨सह बहुत ही बहादुर थे। उनकी सेना में जाट-गुर्जर-राजपूत-सैनी-वाल्मीकि सभी जातियों के सैनिक शामिल थे। 1857 में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ पूरे देश में अंदर ही अंदर एक आग सुलग रही थी। इसकी शुरूआत मेरठ छावनी से मंगल पांडे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि कर चुके थे। तब सभी राजाओं के सामने एक ही परेशानी थी कि अंग्रेजों से किस राजा के नेतृत्व मे लड़ाई लड़ी जाए। तब सभी ने मुगलों के अंतिम बादशाह बहादुरशाह जफर को दिल्ली के राज ¨सहासन पर बैठा कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का फैसला लिया और दिल्ली के तख्तोताज की सुरक्षा का जिम्मा बल्लभगढ़ के राजा नाहर ¨सह, झज्जर के नबाव, बहादुरगढ़ के नबाव को सौंपा गया। राजा नाहर ¨सह की बहादुरी को देखते हुए उन्हें बहादुरशाह जफर का आंतरिक प्रशासक घोषित किया गया। अंग्रेजी सेना को दिल्ली पर हमला करने से पहले राजा नाहर ¨सह की सेना का सामना करना पड़ा। नाहर ¨सह के नेतृत्व में सेना ने अंग्रेजी सेना को बुरी तरह से परास्त किया। अब अंग्रेज भी यह सोचने के लिए मजबूर हो गए कि जब तक राजा नाहर ¨सह है तब तक दिल्ली पर कब्जा करना मुश्किल है। तब अंग्रेजों ने एक चाल चली। वे शांति का संदेश लेकर राजा नाहर ¨सह के पास आए और उन्होंने बताया कि वे दिल्ली में बादशाह बहादुरशाह जफर से समझौता करना चाहते हैं। बहादुरशाह जफर तब तक बात करने के लिए तैयार नहीं जब तक राजा नाहर ¨सह इस बातचीत के मौके पर मौजूद न हो। राजा नाहर ¨सह अंग्रेजों की चाल को समझ नहीं पाए और वे उनकी चाल में फंस गए। अंग्रेजों ने राजा नाहर ¨सह को लालकिले में प्रवेश करने के साथ ही बंदी बना लिया। अंग्रेजों ने बहादुरशाह जफर को भी बंदी बना लिया। राजा नाहर ¨सह की लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेजों ने उनके खिलाफ पलवल के डाकखाने को लूटने के आरोप में मामला दर्ज किया और इलाहबाद की कोर्ट में मुकदमा चलाया। नौ जनवरी-1858 को अंग्रेजों ने राजा नाहर ¨सह, उनके सेनापति भूरा ¨सह, गुलाब ¨सह व अन्य को चांदनी चौक के लाल कुआं पर फांसी के फंदे पर लटका दिया।

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राजा नाहर ¨सह का पूर्व मुख्यमंत्री स्व. साहिब सिहं वर्मा ने दिल्ली में हर वर्ष उनका बलिदान दिवस मनाने की घोषणा की थी। उनका बलिदान दिवस दिल्ली में भी मनाया जाता है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बंसीलाल ने राजा नाहर ¨सह के ऊपर नौ जनवरी 1997 को दो डाक टिकट जारी किए थे। हरियाणा में सरकार के स्तर पर अभी तक भी राजा नाहर ¨सह बलिदान दिवस नहीं मनाया जाता है।

- राजकुमार तेवतिया।


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