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    ब्रज क्षेत्र का अहम हिस्सा है होडल

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    Updated: Wed, 21 May 2014 12:59 AM (IST)

    चंद्रप्रकाश गर्ग, होडल : दिल्ली से 90 किलोमीटर की दूरी पर ब्रज क्षेत्र में बसा होडल का इतिहास प्राचीन है। होडल में महाभारत काल के अनेकों प्रसंगों के प्रमाण यहां देखने को मिलते है। होडल में जहां महाभारत काल के प्रमाण मिलते है, वहीं भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का भी प्रमाण मिलता है।

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    ऐसा बताया जाता है कि आज से करीब साढे़ पांच हजार वर्ष पूर्व महाभारत काल में पांडव 12 वर्ष के वनवास के दौरान यहां आकर रुके थे। उसी वन में भगवान श्रीकृष्ण पांडवों से मिलने के लिए आए थे। तभी से इस वन का नाम पांडु वन पड़ गया। पांडव वन में पांडवों ने जहां एक तालाब की खुदाई की थी, वहीं उसमें रहने के लिए कच्ची गुफा की भी खुदाई की थी।

    पांडव वन में ही एक स्थान पर पांडवों द्वारा बनाई गई सौ चौकियां बनी हुई है। इसी स्थान पर बाद में यहां ओड जाति आकर बस गई थी। जिसके बाद ही यहां का नाम ओडल पड़ा था। जो बाद में बदलते-बदलते होडल में तब्दील हो गया। कुछ दिन होडल में देश ब्राह्मण स्थान पर ओड जाति के लोग रहे जिसका नाम बाद में देश मोहल्ला रख दिया गया।

    कहा जाता है कि शहर के ही इतिहास में बाबा चिंतनाथ का मंदिर भी काफी प्राचीन है। इस मंदिर की ओड़ों से बिगड़ने के बाद देश ब्राह्मण जनाचांसी के एक परिवार ने यहां आकर मंदिर की पूरी सेवा की। बाद में चौधरी ओजू के छह पुत्रों धारम, अंदुआ, बक्सुआ, रोहता, तिहाव व राविया के नाम पर होडल की छह पट्टियों का नाम रख दिया गया। इसके अलावा भुल्लो रत्वा के नाम पर भुलवाना गांव का नाम रख गया। इसके अलावा होडल में सबसे प्राचीन सती सरोवर का नाम भी जुड़ा हुआ है। चौधरी काशी की लड़की किशोरी ने भरतपुर के महाराज सूरजमल के साथ शादी कर ली थी। जिसके बाद ही महाराज सूरजमल ने यहां सती सरोवर, महल, कचहरी, बारह खंभों का निर्माण कराया। सती सरोवर की यहां काफी महत्ता है। आज भी प्रत्येक वर्ष सती सरोवर पर सती का मेला लगाया जाता है जिसमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते है। इनके अलावा होडल का चमेली वन की ऐतिहासिकता भी किसी से कम नहीं है। चमेली वन में भगवान श्रीकृष्ण ने कृष्ण लीलाएं की थीं। लीलाएं करते समय भगवान श्रीकृष्ण अचानक गायब हो गए तथा वन में स्थित एक तालाब में से हनुमान जी प्रकट हुए। इस वन में आज भी हनुमान जी की विशाल मूर्ति स्थापित है जिसमें प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को लोग वन की परिक्रमा करने के बाद पूजा अर्चना करते है तथा हनुमान जी का रोट करते है।