पेड़-पौधों की कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार
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विजय शंकर झा, पलवल : पलवल के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में पौधों की कई प्रजातियां या तो पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं या फिर विलुप्त होने के कगार पर है। वन विभाग को कई ऐसे पेड़ ढूंढे नहीं मिल रहे जो अब से एक दशक पहले तक दिखाई दे रहे थे। धीरे-धीरे कम हो रहे पेड़-पौधों की इन प्रजातियों का संरक्षण करने के लिए विभाग नए सिरे से तैयारी कर रहा है।
ढाक, कदम, जाल, जेंड, रौंज, गिरनी व शीशम जैसे हरे-भरे पेड़ अब बमुश्किल दिखाई देते हैं। विलुप्त हो रही कई प्रजातियां ऐसी हैं, जो पर्यावरण की दृष्टिकोण से काफी मायने रखती हैं। रौंज, जैंड, बड़ व धाक जैसे लंबे आकार वाले पौधे न होने की वजह से कई पक्षियों के बसेरों को अन्य जगह तलाशनी पड़ रही है। इसके अलावा ये पेड़ भी पीपल की तरह ही बड़ी मात्रा में आक्सीजन का स्त्रोत हैं, जिनसे आबोहवा संतुलित रहती है।
विलुप्त हो रहे पौधे का क्या है कारण
विलुप्त हो रहे पौधे का प्रमुख कारण गिरता भू जल स्तर और लगातार बढ़ रहे दीमक का प्रकोप है। विभाग का कहना है कि जहां पहले भू जल स्तर आठ फीट था, वहीं आज यह बढ़कर 50 फीट पर जा पहुंचा है। बढ़ते दीमक का प्रकोप भी एक प्रमुख कारण है। पेड़ की जड़ में दीमक लग जाने से कई पौधे सूख रहे हैं।
संरक्षण के लिए क्या कर रहा विभाग
पौधे की प्रजातियों को बचाने के लिए वन विभाग पूरी तरह प्रयास में जुटा हुआ है। विभाग का कहना है कि पौधारोपण के दौरान दीमक से बचाने के लिए दवा का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा अन्य मौसम में भी पेड़ों को बचाने के लिए सभी बेहतर उपाय किए जा रहे हैं।
क्या कहते हैं वन खंड अधिकारी
वन खंड अधिकारी किरण सिंह रावत का कहना है कि विभाग अपनी ओर से पौधे की प्रजाति को संरक्षित करने की पूरी कोशिश कर रहा है। जिन पौधे की प्रजाति मिल रही है उन्हें फिर से पौधारोपण किया जा रहा है, जबकि ढाक व अन्य कई पौधे की उपलब्धता न होने की वजह से इनका पौधारोपण भी नहीं किया जा सकता।
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