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इस शख्स ने पाकिस्तान जाकर सलाउद्दीन को वापस किए उसके 20 हजार रुपये

भारत-पाक विभाजन के बाद कई लोगों को विरह की पीड़ा झेलनी पड़ी। हरियाणा से भी कई लोग पाकिस्तान गए, लेकिन उन्हें आज भी विभाजन की टीस है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 04 Feb 2018 02:04 PM (IST)Updated: Thu, 08 Feb 2018 09:37 AM (IST)
इस शख्स ने पाकिस्तान जाकर सलाउद्दीन को वापस किए उसके 20 हजार रुपये

भिवानी [बलवान शर्मा]। बुजुर्ग सलाउद्दीन पाकिस्तान में रहते हैं। वह भरी आंखों से बताते हैं उनके बीस हजार रुपये लौटाने के लिए सेठ हंसराज सोलह साल बाद उनकी तलाश करने के लिए पाकिस्तान आए। सलाउद्दीन कुरुक्षेत्र के ठसका गांव से बंटवारे के समय पाकिस्तान गए थे। उनका परिवार वहां खैर में जाकर बस गया था। उस वक्त उनकी उम्र थी 19 साल।

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कुरुक्षेत्र में उस समय सेठ हंसराज का बैंक था। उस समय बैंक में सलाउद्दीन के परिवार के 20 हजार रुपये जमा थे। उसे छोड़कर जाना पड़ा, लेकिन सेठ हंसराज ने ईमान नहीं खोया। उनकी तलाश की। पासपोर्ट-वीजा बनवाया और उनकी रकम जो चांदी के सिक्कों के रूप में थी, वापस की। सलाउद्दीन कहते हैं, खुदा ने वे सांचे ही तोड़ दिए, जिसमें सेठ हंसराज जैसे लोग ढला करते थे।

सलाउद्दीन अकेले नहीं हैं, जो आज अपने हरियाणा की याद में खोए हैं। उन जैसे बहुत से बुजुर्ग हैं। उन बुजुर्गों की याद को हरियाणा से पाकिस्तान गए परिवारों के युवा सोशल मीडिया के जरिये साझा कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने फेसबुक पर पेज बनाया है। पेज का नाम है हरियाणवी लैंग्वेज, कल्चर एंड हिस्ट्री एकेडमी ऑफ पाकिस्तान। इस फेसबुक पेज पर हरियाणा से पाकिस्तान गए बुजुर्गों के साक्षात्कार के वीडियो अपलोड किए जा रहे हैं।

उनकी यादें शेयर की जा रही हैं। वे बताते हैं बंटवारे के समय हरियाणा में ऐसे लोगों की कमी कमी नहीं थी, जिन्होंने पाकिस्तान पहुंचने तक मदद तो की ही, उनके खाने-पीने का भी कई दिनों तक इंतजाम किया। बुजुर्ग बंटवारे के समय की मीठी यादें, युवाओं को बताते हैं गौरवशाली हरियाणा के अतीत को बताते हैं। वहां भी हरियाणवी कल्चर की छाप उन गांवों और मुहल्लों में मिलती है, जहां हरियाणवी बसते हैं। चौपालों में तो हैं ही, घर के ड्राइंग रूम में भी हुक्के की शान बरकरार है तो सिर पर पगड़ी हरियाणा के गौरव के रूप में प्रतिष्ठा पाती है।

लियाकत अली खां की पाई-पाई चुकाई थी नांगल खेड़ी वालों ने

पानीपत में जीटी रोड के किनारे शहर से लगता हुआ गांव है, नांगल खेड़ी, इसे गढ़ी भी कहते हैं। करनाल-मुजफ्फर नगर के मुस्लिम शासक लियाकत अली खां बंटवारे के बाद पाकिस्तान जा रहे थे। उनकी भूमि नांगल खेड़ी के जाट किसानों के पास थी। गढ़ी के किसानों को उनकी जमीन की कीमत चुकाना मुश्किल था, लेकिन पानीपत के प्रसिद्ध उद्यमी पालीवाल परिवार ने उनकी मदद की और गढ़ी के किसानों ने लियाकत अली खां की पाई-पाई चुकाई।

लियाकत अली खां भी जाट थे जिनके पूर्वजों ने मुस्लिम मजहब स्वीकार कर लिया था। लियाकत अली खां पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने थे। गढ़ी के हर गांव में पालीवाल परिवार के प्रति आज भी अपार कृतज्ञता है। लियाकत अली खां के परिवार में आज भी गढ़ी के किसानों की तारीफ होती है।

कई हरियाणवी रहे हैं पाकिस्तान की तकदीर लिखने वालों में

लियाकत अली खां ही नहीं पाकिस्तान की तकदीर लिखने वालों में कई हरियाणवी शामिल रहे हैं। इनमें से एक नाम सैफ अली खां के चाचा इसफंदियार अली खान पटौदी का है, जो पाकिस्तानी सेना के मेजर जनरल रहे। उनके पिता मेजर जनरल नवाबजादा मुहम्मद अली पटौदी, मंसूर अली खान के पिता इफ्तिखार अली खान के छोटे भाई थे।

हिंदुस्तान-पाकिस्तान बंटवारे के समय नवाबजादा ने पाकिस्तानी सेना को चुना, जबकि उनके बड़े भाई भारत में ही रुक गए थे। पाकिस्तान की पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार सोनीपत की रहने वाली थीं। उनके पूर्वज जाट थे जो बाद में मुस्लिम बन गए थे। पाकिस्तानी टीम के क्रिकेट सितारे रहे शोएब मलिक भी सोनीपत के ही जाट परिवार के वंशज हैं।

पाकिस्तान में ढाई करोड़ लोग बोलते हैं हरियाणवी

पाकिस्तान में ढाई करोड़ लोग हरियाणवी बोलते हैं, जिसे वहां रांगड़ी कहा जाता है, यानी उतने ही लोग जितने हरियाणा में बोलते हैं। हरियाणवी को वहां रांगड़ी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि हरियाणा में जो राजपूत मजहब बदलकर मुसलमान बने थे, वे रांगड़ कहा जाता था। उनमें से ज्यादातर पाकिस्तान चले गए। उनकी बोलचाल की भाषा हरियाणावी रही, जो वहां रांगड़ी कही जाने लगी। इसलिए वहां हरियाणा से गए जो लोग हैं, वे भले ही अन्य जातियों के हों उनकी भाषा को रांगड़ी कहा जाता है।

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