संतमत में रहता है सेवा पर जोर, यह सहज सरल भक्ति मार्ग को करता प्रशस्त : कंवर महाराज
संतमत में सेवा पर जोर इसलिए दिया जाता है यह मत सहज व सरल भक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। भक्ति दया और प्रेम के बिना संभव नहीं है और दया प्रेम केवल सेवा से उपजते हैं। सब एक बूंद से पैदा हुए हैं तो फिर भेदभाव किस लिए हो।

जागरण संवाददाता, भिवानी : संतमत में सेवा पर जोर इसलिए दिया जाता है यह मत सहज व सरल भक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। भक्ति दया और प्रेम के बिना संभव नहीं है और दया प्रेम केवल सेवा से उपजते हैं। सब एक बूंद से पैदा हुए हैं तो फिर भेदभाव किस लिए हो। ये भेदभाव भी सेवा से ही खत्म होता है। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने अपने गुरु परमसंत ताराचंद महाराज के 97वें अवतरण दिवस पर होने वाले सत्संग की पूर्व संध्या पर सेवाकार्यो के लिए जुटे सेवादारों के समक्ष फरमाए। उन्होंने उपस्थित सेवादारों से कहा कि आप इस सत्संग के संचालन के लिए पिछले कई दिनों से सेवा में जुटे हुए हो। ये सेवा का प्रताप है कि आप का मन केवल परमात्मा में ही टिका रहता है। हुजूर महाराज ने कहा कि तन की पवित्रता सेवा से मन की सुमिरन से और धन की पवित्रता दान से होती है। माना कि तन और धन से सेवा हर कोई नहीं कर सकता लेकिन मन तो सबके पास है तो मन की सेवा जो प्रभु के सिमरन से होती है हम वो तो कर सकते हैं।
गुरु महाराज ने कहा कि मन में उत्पन्न ख्यालों में बड़ी ताकत होती है। ये इतने बड़े बड़े आश्रम उस बात का द्योतक हैं कि ये कुल मालिक अवतार परमसंत ताराचंद के मन के ख्यालों के कारण ही बन पाए हैं। हुजूर कंवर साहेब महाराज ने कहा कि वर्तमान में जीना सीखो। आपको कोई दुख और कष्ट नहीं होगा। वर्तमान सुखी होगा तभी भविष्य सुखी होगा। वर्तमान बिगाड़ कर हम अपने अगत में सिर्फ कांटे ही बोते हैं। जिसके पारिवारिक और सामाजिक जीवन मे अशांति है वो कैसे ध्यान भजन और बंदगी करेंगे। पहले अपना आपा सुधारो तभी औरों के लिए भलाई कर पाओगे। दूसरा अगर आपके साथ बुरा करता है तो भी आप उसके साथ अच्छा करो। वो आपके लिए कांटे बोता है तो पहले वो कांटे उसी को मिलेंगे। जिस बात के लिए सन्त मना करें वो कभी ना करो। फकीरी रास्ता इतना आसान नहीं है। फकीरी का तो अजीब सा ही आलम है। जिसने फकीरी को पा लिया वो तो सबसे बड़ा बादशाह होता है।
कंवर महाराज ने फरमाया जिस परमपुरुष का हम अवतरण दिवस मनाने जुटे हैं उन्होंने असली फकीरी पाई थी। परमसंत ताराचंद महाराज ने खुद अनेकों कष्ट झेले लेकिन दुनिया को रूहानी दौलत से मालामाल कर गए। महाराज ने सेवादारों को सेवा का महत्व समझाते हुए कहा कि जो सेवा करना जान गया वो भक्ति भी करना जान जाता है। उन्होंने कहा कि आपको किसी और के गीत गाने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि आपके लिए सबसे बड़े आदर्श तो इसी धरा पर जन्में ताराचंद महाराज का जीवन है। अपने सेवा भाव से उन्होंने इतना बड़ा अध्यात्म का केंद्र बना दिया जहां दुनिया अपने कर्म सुधारती है। अपना जीवन सुधारने का सबसे बड़ा मन्त्र आपके पास ही है। सेवा आपके मन को पवित्र करती है और पवित्र मन ही आपके सुख का मंत्र है। हुजूर महाराज ने कहा कि जिस प्रकार हम घर में दूध को मथ कर मखन निकालते हैं वैसे ही सन्त सतगुरु भी अपने जीवन को मथ कर आपके लिए भक्ति का अमृत निकालते हैं। ये अमृत आप सन्तों के वचन की पालना करके पा सकते हो। जो मरजी वे हैं वे ही इस माखन को पाते है।
हुजूर महाराज ने कहा परमात्मा सब का मालिक है तो वो किसी को भूखा नहीं मरने देगा। उन्होंने कहा कि ना अजगर किसी की चाकरी करता है ना पक्षी किसी निदा चुगली में अपना समय बिताते हैं फिर भी उनके दाना चुगे का प्रबंध परमात्मा करता है। इंसानी जीवन मिला है तो भर्मो की नींद त्यागो। मन में तलब तड़फ पैदा करो, हरि के जन बनो। फिर देखो आप जीवन के रसो का भोग छोड़कर कैसे परमात्मा के रस का आनन्द लोगे। हुजूर महाराज ने कहा कि आगे की चिता मत करो। हम जो कुछ कर सकते हैं वो अभी इसी जीवन में कर सकते हैं। पहले परमात्मा के नाम के जाप की आदत डालो। एक दिन यही जाप अजपा बन जाएगा और अजपा अगले दर्जे पर पहुंच कर तीनों अवस्थाओं में अनहद जाप में परिवर्तित हो जाएगा। अभ्यास करते एक दिन ये अनहद जाप आपके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाएगा। उन्होंने कहा कि नाम जपो, काम करो और आराम करो। बड़े बुजुर्ग भी कहते हैं कि सौ काम छोड़ कर नहाना चाहिए, हजार काम छोड़ कर खाना चाहिये और करोड़ काम छोड़ कर परमात्मा का नाम लेना चाहिए। उन्होंने इस अवसर पर नए शब्द संग्रह का विमोचन किया। छह अक्टूबर को राघास्वामी सत्संग दिनोद की संगत आश्रम के अधिष्ठाता ताराचंद महाराज का 97वां जन्मदिवस मनाएगी। इस अवसर पर रक्तदान शिविर और मुफ्त वैक्सीनशन कैम्प भी लगाया जाएगा।
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