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    भिवानी शहर बड़ा गुलजार, 12 दरवाजे, चार बाजार

    By Edited By:
    Updated: Thu, 22 Dec 2016 01:02 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, भिवानी : 22 दिसंबर को भिवानी जिला 44 वर्ष का हो जाएगा और 45वें वर्ष में प्रवेश कर ज

    जागरण संवाददाता, भिवानी : 22 दिसंबर को भिवानी जिला 44 वर्ष का हो जाएगा और 45वें वर्ष में प्रवेश कर जाएगा। 44 वर्ष के इस लंबे अंतराल में भिवानी ने सफलता के बड़े आयाम स्थापित किए, वहीं कुछ ऐसे स्वर्णिम इतिहास रचे, जिनको भिवानी के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज विजेंद्र, विकास यादव एवं गीता व बबीता बलाली बहनों ने इस जिले को मिनी क्यूबा नया उप नाम दिया, वहीं आज भी भिवानी छोटी काशी के रूप में विख्यात है।

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    भिवानी के मिनी क्यूबा बनने की कहानी तो सबकी जुबान पर है, लेकिन छोटी काशी भिवानी कैसे बनी, इसकी पड़ताल दैनिक जागरण ने शहर के 68 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक एवं अधिवक्ता ओम परमार द्वारा पेश किए गए तथ्यों के आधार पर की। अधिवक्ता ओम परमार भिवानी के इतिहास पर वर्षो से कार्य करते रहे हैं और उनकी रुचि रही है।

    बकौल परमार एक समय यह कहावत प्रचलित थी कि भिवानी शहर बड़ा गुलजार, 12 दरवाजे, चार बाजार। शहर के चारों ओर 20 फुट दीवार होती थी। आज भी शहर में चार ही बाजार हैं।

    1858 में उतर भारत में सबसे बड़ी रियासत झज्जर होती थी। झज्जर स्टेट का इलाका डबवाली से कोटपुतली तक होता था। सादलपुर से लेकर बल्लभगढ़ तक यह स्टेट था।

    1857 का गदर हुआ तो झज्जर स्टेट को 12 हिस्सों तोड़ दिया गया था। गदर में मदद करने वालों को अंग्रेजों ने रियासतें सौंप दी थी। उस समय भिवानी गांव महम जिले का हिस्सा होता था। गंगाराम भोड़ूका मकान में पटवार खाना होता था। इस पटवारखाने की दीवार पर नीली स्याही से लिखा था कि भिवानी गांव का जिला महम है। महम एक प्रभावशाली जिला होता था। महम के बाद भिवानी रोहतक जिले का हिस्सा बना और इसके बाद हिसार जिले में शामिल किया गया।

    22 दिसंबर 1972 को भिवानी अलग से जिला बना था। भिवानी शहर की बात करें तो इसके दो प्रमुख हिस्से थे। भिवानी जोनपाल व भिवानी लोहड़ दो गांव थे। सन 1901 में भिवानी तहसील बनी थीं।

    22 दिसंबर 1972 को बने थे तीन जिले

    तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कुरुक्षेत्र, सोनीपत व भिवानी को अलग जिला बनाया था। भिवानी जिला बनने पर महेन्द्रगढ़ का कुछ हिस्सा मिला दिया गया था।

    ये होते थे भिवानी में 12 दरवाजे

    1. रोहतक गेट

    2. महम गेट

    3. तिगड़ाना गेट

    4. हांसी गेट

    5. रेल दरवाजा

    6. दिनोद गेट

    7. देवसर गेट

    8. हलवास गेट

    9. पतराम गेट

    10. हनुमान गेट

    11. बेरी गेट

    12. बावड़ी गेट

    (नोट: सन 1965 में तोड़े गए)

    ये चार बाजार थे

    नया बाजार

    लोहड़ बाजार

    बिचला बाजार

    हालु बाजार

    नोट- आज भी चार ही बाजार हैं।

    1890 में ये था लाल डोरा एरिया

    नया बाजार, सराय चौपटा, दिनोद पुलिस चौकी, डग्गों वाली गली, हालु बाजार, घोसियान चौक, जैन चौक, बाग कोठी, फैंसी चौक शामिल था।

    1909 में लाल डोरे की परिधि बढ़ाई गई तो यह 12 दरवाजों से बाहर आ गया। ताजा सरकुलर रोड को लाल डोरे की परिधि मान लिया गया।

    भिवानी लोहड़ ने की उन्नति पर नहीं विकसित हुआ जोनपाल

    भिवानी लोहड़ की जमीन से भिवानी जोनपाल की जमीन डेढ़ गुणा थी पर वह रेतीला इलाका था। आज भी जोनपाल विकास से महरूम है। शहर आठ-आठ पानों में बंटा हुआ था। भिवानी लोहड़ में दो पट्टी हैं। मेघाण व मोधाण। मेघाण में चार पाने, इनमें राजान, डुमराण, पिरथान व दासान शामिल हैं। मोधाण में बंसी, टाइयान, सोहलाण व खोखरान पाना शामिल है। जोनपाल के आठ पानों में आसीयान, वीरवाण, नरसाण, मानान, ¨हदवान, लाखाण, किताण व बिखाण पाना शामिल है।

    बे चिराग रह गया बिखाण पाना

    बिखाण पाना रेवेन्यू रिकार्ड में तो है पर बेचिराग है और यह वर्तमान में अस्तित्व में ही नहीं है।

    हर पाने का अलग होता था तालाब

    उस समय भिवानी के हर पाने का अपना एक तालाब होता था। नगर परिषद के रिकार्ड में 16 तालाब थे पर असल में अधिकांश अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं।

    पंडित रामकुमार बिढाठ पहले विधायक थे

    पहला विधायक पंडित रामकुमार बिढ़ाठ दो बार 1952 से 1962 तक यहां से नेतृत्व करते रहे। जबकि हरियाणा बनने के बाद भगवान देव प्रभाकर भिवानी के पहले विधायक बने।

    शिक्षा के क्षेत्र में भिवानी की बोलती थी तूती

    1944 में पहला कॉलेज वैश्य कॉलेज। उस दौर में रोहतक, हिसार में कॉलेज नहीं होते थे। उस समय दिल्ली, लाहौर व अंबाला में ही कॉलेज होते थे। शिक्षा के क्षेत्र में भिवानी इस एरिया में सबसे आगे रहा। बीटी कॉलेज 1953 में स्थापित हो गया था, जो केएम बीएड कॉलेज के नाम से चल रहा है। उस समय उतर प्रदेश, बिहार व राजस्थान सहित उतर भारत के अधिकांश शिक्षक यहां से पढ़ लिखकर गए थे।

    धार्मिक कार्यो में थी रुचि

    1943 में सेठ किरोड़ीमल द्वारा गठित ट्रस्ट ने शहर में कई बड़े काम किए। इनमें अस्पताल, किरोड़ीमल पार्क, साईं होस्टल बीएड कॉलेज के छात्रों का होस्टल होता था। राजकीय केएम वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, हांसी गेट पर स्कूल, वैश्य कॉलेज का भवन भी सेठ किरोड़ीमल ने ही बनाया था। 1952 में किरोड़ीमल मंदिर बना था। 1952 से 1968 तक इस मंदिर में लाखों लोग यहां आते थे। मंदिर में चलचित्र झांकियां निकाली जाती थी, जो कि पूरे उतर भारत में आकर्षण का केंद्र बनी होती थीं। इन झांकियों को देखने के लिए दूरदराज से लोग एक दिन पहले आकर ठहरते थे। सन 1966 में भिवानी व अंबाला दो ही शहर थे, जिनकी आबादी एक लाख थी।

    भिवानी का छोटी काशी नाम क्यों पड़ा

    अधिवक्ता ओमपरमार के अनुसार 1857 के गदर में भिवानी क्षेत्र में अंग्रेजों पर राजपूत व मुसलमान भारी पड़ रहे थे। अंग्रेजों की हार होने पर दो अंग्रेज उच्चाधिकारी नंदराम कटला के तहखाने में उनको छुपा लिया और कई दिनों तक उनको संरक्षण दिया। जब गदर शांत हो गया तो अधिकारियों ने कहा कि आपने हमारी रक्षा की है, हम आपको कुछ देना चाहते हैं। इस पर सेठ नंदराम ने मांग की कि 12 कोस के इलाके में पशु वध व शिकार पर रोक लगाई जाए। एक थाने की स्थापना की मांग की थी, जो कि वर्तमान शहर पुलिस थाने के स्थान पर पुरानी बि¨ल्डग का निर्माण 1857 में किया गया था। कलानौर में भी इसी दौरान थाना बना था। तीसरी मांग मंदिर बनाने के लिए जगह के लिए कोई टैक्स नहीं लेगी अंग्रेज सरकार। ये तीनों मांगे अंग्रेज सरकार ने मंजूर कर ली थी। 1857 में भिवानी में कई बड़े मंदिरों की स्थापना हुई। इनमें आचार्यो का मंदिर, दादू पंथियों का मंदिर शामिल हैं, जो कि नंदराम के बेटे पतराम ने बनाए थे। उस समय काफी अन्न क्षेत्र बनवाए थे, जिनमें से चार अभी भी चल रहे हैं। जहां पर हर रोज गरीबों को नि:शुल्क खाना दिया जा रहा है। इनमें एक में लगभग 200 से 300 व्यक्तियों को खाना खिलाया जा रहा है। नीम चौक नया बाजार, रामबाग, कृष्णा कालोनी स्वर्ग आश्रम के पास व हालु बाजार में चल रहे हैं। इसलिए छोटी काशी नाम पड़ा।

    कपड़ा व्यवसाय में भिवानी देश में दूसरे नंबर पर रहा है

    सन 1962 में भिवानी में अहमदाबाद के बाद भिवानी टैक्सटाइल में पूरे देश में नंबर दो पर था। उस समय पंजाब टैक्सटाइल मिल व टीआइटी मिल थी। 1940 में टीआइटी स्थानीय निवासी पंडित अंगुरीलाल शर्मा ने स्थापना की थी। यहां बड़ी बात यह है कि अंगुरीलाल शर्मा तकनीकी रूप से ज्यादा दक्ष न होते हुए भी धागा बनाने व कपड़ा बुनने की यहां शुरुआत की थी। हरियाणा बनने से पहले इन फैक्ट्रियों में 16 हजार से अधिक मजदूर कार्य करते थे।

    आंखों के इलाज के लिए भी उत्तर भारत में था प्रसिद्ध

    भिवानी शहर को आंखों के इलाज के लिए उतर भारत में जाना जाता था। भिवानी के जालान व कन्हैया आंखों के अस्पताल में देशभर से हजारों मरीज इलाज के लिए आते थे। 1935 से लेकर 1972 तक डॉ. पीडी गिरधर का नाम विख्यात रहा था।

    दंगों में भी शांति बनाए रखने के लिए इन्होंने दिया योगदान

    सन 1947 में जब देश आजाद हुआ और दंगे हुए, उन दंगों की रिपोर्ट आवासीय दंडाधिकारी गंगाराम जैन व सरदार ¨सह ट्रांसपोर्टर थे। इन्होंने भिवानी में ¨हदुओं को बचाने के लिए अहम योगदान दिया। शहर के चारों ओर मुसलमानों बाहुल्य गांव होते थे। ये दोनों शांतिदूत की भूमिका में थे। 15 अगस्त 1947 गंगाराम सरदार ¨सह की गाड़ी में हिसार कलेक्टर को दंगों की रिपोर्ट देने जा रहे थे तो हिसार के पास स्थित डबल फाटक के पास इनकी गाड़ी सेना की गाड़ी से टकरा गई थी और दोनों की मौत हो गई थी।

    कपड़ा व सोने के कारोबार में आज भी बजता है डंका

    उतर भारत में आज भी भिवानी में कपड़ा व सोना राजस्थान, पंजाब, दिल्ली से सस्ता व गुणवत्ता वाला उपलब्ध है। भिवानी में उतरी भारत के व्यापारी यहां से ही इन दोनों वस्तुओं का लेन-देन करते हैं।

    देशभर में बिकती हैं भिवानी की ऑपरेशन टेबल

    प्लास्टिक दाना बनाने में भावनगर के बाद पूरे देश में सर्वाधिक उत्पादक भिवानी है। यह आज भी रिकार्ड है। ऑपरेशन टेबल व लाइटों की सप्लाई पूरे देश में भिवानी से ही होती है। जो टेबल विदेशों में 5 से दस लाख रुपये में मिलती हैं, वहीं भिवानी में एक लाख रुपये तक उपलब्ध हो जाती है। इसी तरह आपरेशन लाइट भी 10 हजार रुपये तक की कीमत में उपलब्ध हैं।