कर्मो से बनता है वर्तमान व भविष्य : प्रज्ञाचक्षु
जागरण संवाददाता, चरखी दादरी : व्यास पीठासीन, मानस मर्मज्ञ स्वामी रामशरण दास प्रज्ञा चक्षु ने कहा कि
जागरण संवाददाता, चरखी दादरी : व्यास पीठासीन, मानस मर्मज्ञ स्वामी रामशरण दास प्रज्ञा चक्षु ने कहा कि कर्मो से जीव के वर्तमान व भविष्य का निर्धारण होता है। संचित कर्मो के अनुसार जीव सुख, दुख भोगता है। जीवन की हर स्थिति का कारण कर्मो से जुड़ा है। संचित कर्मो, प्रारब्ध जीव को फल मिलना निश्चित है। स्वामी रामशरण दास दादरी नगर के श्री गीता भवन सभागार में आयोजित श्रीराम कथा महायज्ञ के दौरान तुलसी कृत मानस के आधार पर दर्शन के विविध पक्षों की सरल व्याख्या कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कर्म विधान ईश्वर की स्वचालित व्यवस्था। सद्कर्म, परोपकार, त्याग, तप, साधना इत्यादि के मार्ग पर चलने से मनुष्य का जीवन सफलता की ओर बढ़ सकता है।
भक्ति मार्ग पर चलने से जीवन निष्काम कर्म भावना का उदय होता है। निष्काम कर्म से दुख, सुख की भावना का भी लोप हो जाता है। इस अवस्था में जीव कई बंधन से भी मुक्त हो जाता है। निष्काम कर्म मार्ग दूसरे शब्दों में मुक्ति का मार्ग है।
भगवान श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार थे। उन्हें भी संसार में रहते हुए विधि के विधान का पालन करते हुए सुख, दुख, संताप, वियोग इत्यादि परिस्थितियों से गुजरना पड़ा।
रामशरण दास प्रज्ञाचक्षु ने कहा कि अहंकार, अहम, सांसारिक वासनाएं, ज्ञान, भक्ति मार्ग में सबसे बड़ी बाधाएं हैं। अज्ञानता के वशीभूत जीव संसार व शरीर को ही सब कुछ समझता है। जिस प्रकार मृग की नाभि में कस्तूरी होती है लेकिन उसकी सुगंध को ढूंढते ढूंढते दौड़ दौड़ कर वह प्राण गंवा देता है। इसी प्रकार मनुष्य भी जीवन पर संसार के पदार्थो में सुख खोजता खोजता एक दिन जीवन का सफर पूरा कर देता है लेकिन कुछ हाथ नहीं आता।
संसार रूपी भवसागर को पार करने के लिए धर्म मार्ग पर चलना जरूरी है। निष्काम कर्म भावना परमानंद की डगर की ओर अग्रसर करती है।
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