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एंकर.. देसी वृक्षों से पर्यावरण को बचा रही संस्था

जिले में हर साल पौधारोपण अभियान तो चलते रहे हैं लेकिन एक ऐसी संस्था भी है जो देसी वृक्षों को बढ़ाने और बचाने में जुटी हुई है। मंथन सामाजिक चेतना संगठन पिछले चार वर्षो से इस उद्देश्य पर काम कर रही है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2020 06:48 AM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2020 06:48 AM (IST)
एंकर.. देसी वृक्षों से पर्यावरण को बचा रही संस्था
एंकर.. देसी वृक्षों से पर्यावरण को बचा रही संस्था

जागरण संवाददाता, अंबाला शहर: जिले में हर साल पौधारोपण अभियान तो चलते रहे हैं, लेकिन एक ऐसी संस्था भी है जो देसी वृक्षों को बढ़ाने और बचाने में जुटी हुई है। मंथन सामाजिक चेतना संगठन पिछले चार वर्षो से इस उद्देश्य पर काम कर रही है। संस्था का उद्देश्य हरियाली बनाए रखने के साथ-साथ यह भी है कि आने वाली पीढ़यिां देसी वृक्षों से परिचित रहे। क्योंकि इस समय काफी लोग देसी वृक्षों के नाम तक नहीं जानते। ऐसे में संस्था की ओर से इसके लिए प्रतियोगिताएं भी करवाई जाती हैं।

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संगठन के अध्यक्ष प्रेम अग्रवाल, उपप्रधान चमन अग्रवाल और सचिव अभिनव गुप्त ने बताया कि उनकी संस्था पर्यावरण और सामाजिक जागरूकता को लेकर पिछले चार साल से काम कर रही है। इसी के अंतर्गत जलपुरुष के नाम से विख्यात रैमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता डा.राजेंद्र सिंह को अंबाला में पर्यावरण और जल संरक्षण को लेकर संस्था बुला भी चुकी है। ताकि लोगों का पर्यावरण को बचाने में रुझान बढ़े। उन्होंने बताया कि हर परिवार को चाहिए कि अपने बच्चों को अपने प्रमुख वृक्षों की पहचान करवाए। ज्यादातर देखा जाता है कि बच्चे देसी वृक्षों को नहीं जानते। इसके साथ ही अपनी संतानों में वृक्षारोपण का मोह पैदा करना चाहिए।

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-इन देसी वृक्ष को दिया जा रहा बढ़ावा

वृक्षारोपण को लेकर संस्था विशेष रूप से कार्य कर रही है। जिसमें देसी वृक्ष लगाने का ही मुख्य उद्देश्य होता है। इसमें कई कई स्थानों पर त्रिवेणी (वट, नीम, पीपल) सहित कदम्ब, चंदन, रुदराक्ष, विल्व, जामुन, आम, अर्जुन, कीकर, गुलमोहर, सिम्बल, सीता अशोक, पिलखन, महुआ, खैर, शीशम इत्यादि कई वृक्ष हर वर्ष लगा रहे हैं।

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-खाली जमीन में डाले जाते हैं बीज

संस्था की ओर से कई जगहों पर खाली जमीन होने पर ही बीज गिरा दिए जाते हैं। यह काम संस्था 16 जून से शुरू कर देती है। क्योंकि इसके बाद बरसाती मौसम शुरू हो जाता है और बीज खुद ही अंकुरित हो जाते हैं। इतना ही नहीं संस्था लगाए गए देसी वृक्षों की बाद में भी खुद देखभाल करती है, ताकि बेसहारा जानवर उन्हें नुकसान न पहुंचाएं।


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