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    कारगिल युद्ध में हरियाणा के पहले बलिदानी थे मंजीत सिंह, दुश्मनों के दांत खट्टे कर सीने पर खाई थी गोली

    By Jagran NewsEdited By: Rajat Mourya
    Updated: Tue, 25 Jul 2023 10:32 PM (IST)

    Kargil War में हरियाणा के कई वीर सपूतों ने देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी थी। इनमें एक नाम अंबाला के मंजीत सिंह का भी है। मंजीत सिंह कारगिल युद्ध में हरियाणा के पहले बलिदानी थे। उनके बलिदान को आजतक याद किया जाता है। उनकी शौर्य गाथा हमेशा देशवासियों के जहन में रहेगी। मंजीत सिंह महज साढ़े अठारह साल की उम्र में बलिदान हो गए थे।

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    कारगिल युद्ध में हरियाणा के पहले बलिदानी थे मंजीत सिंह। फोटो- जागरण

    अंबाला, जागरण संवाददाता। Kargil War Stories कारगिल युद्ध में देश के लिए बलिदान होने वाले अंबाला के मंजीत सिंह (Martyr Manjeet Singh) की याद आज भी उनके माता-पिता के जहन में है। देश सेवा के लिए जब बेटा रवाना हुआ, तो माता-पिता को काफी गर्व था। पाकिस्तान ने कारगिल में जब युद्ध शुरू किया तो मंजीत सिंह देश की रक्षा करते बलिदान हो गए। आज भी गांव कांसापुर में उनकी बहादुरी को याद किया जाता है कि कैसे दुश्मनों को पछाड़ कर मंजीत ने सीने पर गोली खाई।

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    कारगिल में प्रदेश के पहले बलिदानी थे मंजीत सिंह

    कारगिल युद्ध में प्रदेश से पहले बलिदानी मंजीत सिंह हुए थे। बराड़ा के गांव कांसापुर के मनजीत सिंह सन 1998 में आठ-सिख रेजिमेंट अल्फा कंपनी में भर्ती हुए थे। डेढ़ वर्ष के बाद ही पाकिस्तान ने हमला कर दिया। मंजीत की ड्यूटी कारगिल में लगाई गई। 7 जून 1999 को टाइगर हिल (Tiger Hill) में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए देश के लिए बलिदान दिया।

    17 वर्ष की आयु में भर्ती हुए थे

    कारगिल युद्ध में सभी बलिदानियों में मंजीत सबसे कम उम्र के थे। कारगलि युद्ध में बलिदान होने वाले वह हरियाणा के पहले सैनिक (Haryana First Martyr) थे। वे करीब 17 वर्ष की आयु में सेना में भर्ती हुए और साढ़े अठारह वर्ष की आयु में शहीद हो गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली सरकार ने उनके परिवार को द्वारका (दिल्ली) में एक फ्लैट और बराड़ा में गैस एजेंसी अलॉट की थी। इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकार से आर्थिक सहायता भी दी गई।

    यह बोले बलिदानी के माता-पिता

    शहीद मंजीत के पिता गुरचरण सिंह व मां सुरजीत कौर का कहना है कि उन्हें अपने बेटे मंजीत सिंह के बलिदान होने पर गर्व है। उनके भतीजों को पढ़ाया-लिखाया जा रहा है और उनको भी फौज में भेजेंगे। देश सेवा का धर्म तो मंजीत सिंह ने शुरू किया था और वह उसे कभी नहीं भूलेंगे। हर किसी को देश के लिए कुछ न कुछ अवश्य करना चाहिए, फिर चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो।