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    मूक बताकर बना शिक्षक, फिर पोलियाे दिखाकर हथियाई प्रधानाचार्य की नौकरी; आरटीआइ से पकड़ में आया फर्जीवाड़ा

    By Sudhir TanwarEdited By: MOHAMMAD AQIB KHAN
    Updated: Thu, 01 Jun 2023 06:51 PM (IST)

    Haryana कागजों में खुद को मूक (बोलने में दिक्कत) बताकर पहले सामाजिक अध्ययन का शिक्षक बन गया। फिर दिव्यांग कोटे से प्राधानाचार्य की भर्ती हुई तो पोलियो दिखाकर नौकरी हासिल कर ली। सूचना का अधिकार (आरटीआइ) से फर्जीवाड़ा पकड़ में आया तो मामला दिव्यांगजन आयुक्त के पास पहुंचा।

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    मूक बताकर बना शिक्षक, फिर पोलियाे दिखाकर हथियाई प्रधानाचार्य की नौकरी; आरटीआइ से पकड़ में आया फर्जीवाड़ा : जागरण

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़: कागजों में खुद को मूक (बोलने में दिक्कत) बताकर पहले सामाजिक अध्ययन का शिक्षक बन गया। फिर दिव्यांग कोटे से प्राधानाचार्य की भर्ती हुई तो पोलियो दिखाकर नौकरी हासिल कर ली। सूचना का अधिकार (आरटीआइ) से फर्जीवाड़ा पकड़ में आया तो मामला दिव्यांगजन आयुक्त के पास पहुंचा। जांच में आरोप सही मिलने पर राज्य दिव्यांगजन आयुक्त राजकुमार मक्कड़ ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक को आरोपित प्रधानाचार्य युद्धवीर सिंह के खिलाफ तीन माह में कार्रवाई करने की सिफारिश की है।

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    स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार ने दिव्यांगजन आयुक्त को दी शिकायत में आरोप लगाया था कि युद्धवीर सिंह ने वर्ष 2003 में शिक्षा विभाग में शिक्षक लगते समय खुद को मूक बताया था, जबकि शिक्षा विभाग के रिकार्ड में उसका ऐसा कोई प्रमाणपत्र नहीं मिला है। इसके बाद दिव्यांग कोटे से प्रधानाचार्य के पद पर भर्ती शुरू हुई तो पोलियो का फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर गलत लाभ ले लिया।

    रिकार्ड में कहीं नहीं मिला मूक दिव्यांगता का प्रमाणपत्र

    जांच में पाया गया कि युद्धवीर का मूक दिव्यांगता का प्रमाणपत्र रिकार्ड में कहीं नहीं मिला, जिसके आधार पर वह एसएस मास्टर लगा था। पोलियो का दिव्यांग सर्टिफिकेट भी नहीं मिला। इसके उलट युद्धवीर द्वारा अपने बयान में बताया गया कि वह बचपन से ही पोलियो ग्रस्त है। उच्च स्तरीय विभागीय जांच में पता चला कि वह वर्ष 2005 में पैर में गोली लगने से दिव्यांग हुआ था। उसने नए नियमों के आधार पर दिव्यांग सर्टिफिकेट बनवाने के लिए आवेदन दिया था जो खारिज हो चुका है।

    तीन माह में रिपोर्ट न्यायालय में देने की सिफारिश

    न्यायालय ने पाया कि युद्धवीर वर्ष 2003 से दिव्यांगों के बैकलाग का नाजायज फायदा उठा रहा है। इस पर न्यायालय ने अपने आदेश में दिव्यांग अधिनियम की धारा 80 बी का उपयोग करते हुए माध्यमिक शिक्षा निदेशक को तीन माह में कार्रवाई कर रिपोर्ट न्यायालय में देने की सिफारिश की है।