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एक करोड़ की लोकल प्रचेज से खरीदी दवाएं फिर भी इलाज का संकट

प्रदेश के लोगों को सुगम इलाज मुहैया व निश्शुल्क दवाइयां उपलब्ध कराने के मकसद से मुख्यमंत्री फ्री इलाज योजना चलाई गई थी। जिसके लिए दवाई आपूर्ति का जिम्मा हरियाणा मेडिकल सर्विस कार्पोरेशन लिमिटेड(एचएमएससीएल) को दिया गया था। इसके बावजूद कार्पोरेशन आपूर्ति देने में नाकाम साबित हो रहा है। प्रदेश भर में एचएमएससीएल के सात में से एक अंबाला के साहा इंडस्ट्रियल एरिया स्थित गोदाम में इन दिनों इंजेक्शन पट्टियां टेप कॉटन ताकत व दर्द निवारक जैसी दवाइयों की आपूर्ति का संकट बना हुआ है। इन हालात में स्वास्थ्य मंत्री के जिले में मरीज लोकल प्रचेज से खरीदी करीब एक करोड़ से ज्यादा की दवाइयां गटक चुके हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 08:09 AM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 08:09 AM (IST)
एक करोड़ की लोकल प्रचेज से खरीदी दवाएं फिर भी इलाज का संकट
एक करोड़ की लोकल प्रचेज से खरीदी दवाएं फिर भी इलाज का संकट

पवन पासी : अंबाला शहर : प्रदेश के लोगों को सुगम इलाज मुहैया व निश्शुल्क दवाइयां उपलब्ध कराने के मकसद से मुख्यमंत्री फ्री इलाज योजना चलाई गई थी। जिसके लिए दवाई आपूर्ति का जिम्मा हरियाणा मेडिकल सर्विस कार्पोरेशन लिमिटेड(एचएमएससीएल) को दिया गया था। इसके बावजूद कार्पोरेशन आपूर्ति देने में नाकाम साबित हो रहा है। प्रदेश भर में एचएमएससीएल के सात में से एक अंबाला के साहा इंडस्ट्रियल एरिया स्थित गोदाम में इन दिनों इंजेक्शन, पट्टियां, टेप, कॉटन, ताकत व दर्द निवारक जैसी दवाइयों की आपूर्ति का संकट बना हुआ है। इन हालात में स्वास्थ्य मंत्री के जिले में मरीज लोकल प्रचेज से खरीदी करीब एक करोड़ से ज्यादा की दवाइयां गटक चुके हैं। पहले जहां किसी भी बीमारी के मामले में अस्पतालों में चार प्रकार की दवाइयों का विकल्प रहता था तो अब महज दो प्रकार की उपलब्ध हैं। पहले जहां मरीज को टेबलेट के साथ क्रीम, सिरप भी मिलता था अब खाने को टेबलेट ही मिल पा रहा है। ऐसे में मरीजों के मर्ज का पूरी तरह से इलाज नहीं हो रहा। अलबत्ता, लोकल प्रचेज के लिए बजट की कमी ने मुश्किल और बढ़ा दी है। हालात जल्द नहीं सुधरे तो संकट और गहरा सकता है। जानकारी के मुताबिक जिले में वित्त वर्ष 2018-19 में फरवरी के दूसरे सप्ताह तक करीब 55 लाख रुपये की इंडोर व ओपीडी दवाओं पर 65 लाख रुपये का खर्च आया है। जो कि करीब साढ़े आठ रुपये मासिक है। दवाओं की आपूर्ति के लिए बजट का जो संकट है उसमें कहीं बड़ा योगदान पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर चल रही कैथ लैब, डायलिसिस, सीटी स्कैन जैसी परियोजनाओं का भी है। जानकारी मुताबिक करीब 50 लाख रुपये मासिक का बजट तो कैथ लैब का ही है। मुख्यमंत्री फ्री इलाज योजना सहित सभी योजनाओं के लिए विभाग ने चालू वित्त वर्ष में करीब 6 करोड़ 30 लाख रुपये खर्चे हैं और करीब छह करोड़ रुपये के बजट की मंजूरी मांगी हुई है। बजट की कमी की किस कदर है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कैथ लैब में बीते साल अगस्त माह तक के सरकारी भुगतान के बिल पेंडिग हैं। मरीजों को करना पड़ रहा है दवाओं का इंतजार

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- दवाओं के लिए जो हालात बने हुए हैं उससे कई बार मरीजों को निराश होना पड़ता है। इसी सप्ताह जिला नागरिक अस्पताल में एंटी रैबीज इंजेक्शन को लेकर भी संकट बना रहा। कुत्ते के काटने पर लगाया जाने वाला यह इंजेक्शन मरीज को अस्पताल में 100 रुपये में उपलब्ध होता है जो कि बाहर 250 से 300 रुपये तक है। लोकल प्रचेज के माध्यम से खरीदी जाने वाली दवाएं उस अनुपात में नहीं आती जितना की गोदाम से उपलब्ध होती हैं। बाहर से दवाएं खरीदना खुद विभाग के लिए भी किफायती भी साबित नहीं हो रहा। एचएमएससीएल द्वारा दवा खरीदने के बाद इन्हीं गोदाम में सप्लाई भेजी जाती है। मरीज को दवा की लंबी लाइन में लगने के बावजूद बेहतर दवाइयां नसीब नहीं हो रही है। वेयर हाउस में नहीं आने से खरीदनी पड़ रही दवाएं

जिला नागरिक अस्पताल शहर की प्रिसिपल मेडिकल आफिसर पूनम जैन के मुताबिक सरकारी दवाओं की आपूर्ति नहीं होने से लोकल प्रचेज करनी पड़ती है। मरीजों को तो दवाएं उपलब्ध करानी पड़ती हैं। काफी समय से ऐसी दिक्कत बनी हुई है।


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