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    Farmer Protest: दिल्ली कूच से अलग हैं हरियाणा के बड़े किसान संगठन, जानें क्या है इसके पीछे की वजह?

    By Anurag Aggarwa Edited By: Shoyeb Ahmed
    Updated: Wed, 14 Feb 2024 07:29 AM (IST)

    पंजाब के किसान संगठनों द्वारा फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी और कर्जमाफी को लेकर किए जा रहे दिल्ली कूच से हरियाणा के बड़े किसान संगठनों ने खुद को इससे अलग कर लिया है और इस कूच में हरियाणा की भूमिका यह है कि प्रदेश पंजाब व दिल्ली के बीच में है। प्रदेश सरकार गेहूं व धान समेत 14 फसलों की खरीद एमएसपी पर कर रही हैं।

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    किसानो के प्रदर्शन में दिल्ली कूच से अलग हैं हरियाणा के किसान संगठन (फाइल फोटो)

    अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। पंजाब के किसान संगठनों द्वारा फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी और कर्जमाफी को लेकर किए जा रहे दिल्ली कूच से हरियाणा के बड़े किसान संगठनों ने स्वयं को अलग कर रखा है। प्रदेश की भाजपा सरकार गेहूं व धान समेत 14 फसलों की खरीद पहले ही एमएसपी पर कर रही है।

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    इस कूच में हरियाणा की भूमिका सिर्फ इतनी है कि यह प्रदेश पंजाब व दिल्ली के बीच में पड़ता है। पंजाब के जिन संगठनों ने दिल्ली कूच का आह्वान किया है, उन्हें हरियाणा के रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ता है। ऐसे में राज्य की कानून व्यवस्था बनाए रखने तथा पंजाब के किसान संगठनों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने उनके रास्ते में अवरोध पैदा किए हैं। पिछली बार भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

    नहीं पसंद आया था गुरनाम का चुनाव लड़ना

    पिछली बार किसान संगठनों के दिल्ली कूच में हरियाणा के सबसे बड़े संगठन भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) गुट ने सक्रिय भागीदारी निभाई थी। चढूनी की कभी कांग्रेस तथा कभी आम आदमी पार्टी से नजदीकियां रही हैं। इसके बाद चढूनी ने स्वयं की संयुक्त संघर्ष पार्टी बना ली थी, जिसने पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ा था।

    उनका चुनाव लड़ना वहां के किसान संगठनों को पसंद नहीं आया था। अपनी अलग पार्टी बनाने से पहले चढूनी हरियाणा में स्वयं विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। उनकी पत्नी बलबिंद्र कौर ने कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से 2014 में आप के टिकट पर चुनाव लड़ा था।

    गुरनाम इस बार किसानों 

    इस बार गुरनाम चढूनी पंजाब के किसान संगठनों के दिल्ली कूच के साथ खड़े नजर नहीं आ रहे हैं। इसके राजनीतिक कारण तो हैं ही साथ ही चढूनी 16 फरवरी के ग्रामीण भारत बंद को ही अपना आंदोलन मानते हैं।

    16 फरवरी का बंद खेती-किसानी को बचाने व कारपोरेट की कथित लूट को खत्म करने के नारे के साथ संचालित किया जा रहा है। गुरनाम चढ़ूनी हरियाणा के साथ पंजाब व उत्तर प्रदेश में भी राजनीतिक विस्तार चाहते थे, जिस कारण उन्होंने पिछले आंदोलन में भाकियू नेता राकेश टिकैत के साथ अहम भूमिका निभाई थी।

    इस बार के दिल्ली कूच की बागडोर

    चूंकि पंजाब के उन किसान संगठनों के हाथों में है, जिन्हें टिकैत या चढूनी गुट अपने राजनीतिक विरोधियों में मानता है, इसलिए वे साथ नहीं आए हैं। इस गुट का यह भी मानना है कि 16 फरवरी के बंद को विफल करने के लिए पंजाब के संगठनों ने यह आंदोलन खड़ा किया है।