अंबाला सेंट्रल जेल में कैदियों से ज्यादा खतरनाक है कर्मियों की कमी, 200 की बजाए 110 कर्मी दे रहे ड्यूटी
अंबाला सेंट्रल जेल से बंदी अजय कुमार के फरार होने से जेल प्रशासन पर कई सवाल खड़े हो गए हैं। सुरक्षा कर्मियों की कमी और जेल में क्षमता से अधिक कैदियों के होने से सुरक्षा व्यवस्था कमजोर हो गई है। यह पहली बार नहीं है जब कोई कैदी फरार हुआ है पहले भी एक कैदी भाग चुका है।

उमेश भार्गव, अंबाला। सेंट्रल जेल से फरार हुआ बंदी अजय कुमार बेशक तीन दिन बाद भले ही पकड़ा गया हो, लेकिन उसकी फरारी ने जेल प्रशासन की दीवारों से कहीं ज्यादा ऊंची एक और दीवार खड़ी कर दी है। वह है सवालों की दीवार।
ये सवाल सिर्फ एक बंदी के भागने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि एक व्यापक और गंभीर व्यवस्था की ओर इशारा करते हैं, जो समय के साथ कमजोर होती जा रही है। अजय की फरारी कोई पहला मामला नहीं है।
इससे पहले 13 अगस्त को सुखबीर कालिया नामक बंदी भी फरार हो चुका है, और वह अभी तक पुलिस की पकड़ से बाहर है। इन दोनों मामलों की एक खास बात यह है कि दोनों ही बंदियों पर पंचकूला में मामले दर्ज थे। क्या यह मात्र संयोग है, या कोई गहरी कड़ी? इस पर जांच होनी चाहिए, लेकिन उससे पहले जरूरी है उन बुनियादी खामियों को समझना, जिनके कारण हाई-सिक्योरिटी जेल भी असुरक्षित हो गई है।
सिर्फ बंदी नहीं भागा, सुरक्षा व्यवस्था की पोल भी खुली
सूत्रों की मानें तो सेंट्रल जेल अंबाला में 200 सुरक्षा कर्मियों के पद सृजित हैं, लेकिन वर्तमान में मात्र 90 कर्मी कार्यरत हैं। इनमें से भी कुछ छुट्टी पर रहते हैं, कुछ बीमार, और कुछ अन्य ड्यूटी पर बाहर भेजे गए हैं -यानी जमीनी स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था लगभग 45 प्रतिशत स्टाफ के भरोसे चल रही है।
यही नहीं, इन 90 में से कुछ कर्मियों को बाल सुधार गृह और पंचकूला की नई जेल में भी तैनात किया गया है। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब निगरानी के लिए कर्मी ही नहीं होंगे, तो कोई भी बंदी फरार होना मुश्किल क्यों मानें ? और फिर, जब निगरानी पोस्ट पर ड्यूटी 8 घंटे से अधिक नहीं दी जा सकती, तो सीमित स्टाफ से 24 घंटे की सुरक्षा व्यवस्था कैसे चलाई जा रही है ?
जेल में क्षमता 1228, बंदी-कैदी 1800 से अधिक
सेंट्रल जेल की कुल क्षमता 1228 बंदियों और कैदियों की है, लेकिन इस समय यहां करीब 1800 से अधिक बंदी और कैदी मौजूद हैं। मतलब स्पष्ट है - जेल लगभग 46 फीसदी अधिक बोझ झेल रही है। ऐसे में सुरक्षा में चूक होना लगभग तय है। जब अजय कुमार जैसे विचाराधीन कैदी दिनदहाड़े हाई वोल्टेज तार के सहारे दीवार लांघकर भाग जाता है, तो यह सवाल
उठता है कि उसकी योजना को अंजाम देने से पहले क्या कोई तैयारी नहीं हुई थी? क्या जेल प्रशासन को कोई इनपुट नहीं मिला?
फरारी नहीं, एक चेतावनी है
अजय और सुखबीर कालिया की फरारी एक चेतावनी है- सिस्टम के लिए, प्रशासन के लिए और नीति-निर्माताओं के लिए। यह घटना बताती है कि
सिर्फ ऊंची दीवारें बनाना सुरक्षा नहीं होती, असली सुरक्षा तो उन दीवारों पर खड़े कर्मियों से होती है, जो चौकसी बरतते हैं। जब वही कर्मी नदारद हों, तो दीवारें भी खोखली लगती हैं। अब समय है कि जेल सिस्टम की समीक्षा बिल्कुल नए सिर से हो जोकि शुरू भी हो चुकी है।
लेकिन अमल कब तक होगा यह आने वाला समय ही तय करेगा। खाली पड़े पदों को जल्द से जल्द भरा जाए, तकनीकी निगरानी व्यवस्था
(सीसीटीवी, एआइ आधारित ट्रैकिंग आदि) को अपग्रेड और मजबूत किया जाए और सबसे जरूरी-स्टाफ की कार्यशैली और मनोबल के साथ उनके स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया जाए।
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