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    मुरादें पूरी करता टिल्ला श्री गुरु गोरखनाथ मंदिर

    By Edited By:
    Updated: Fri, 17 Feb 2012 07:59 PM (IST)

    फोटो-31, 32

    अंबाला के धार्मिक स्थल..

    -जेहलम टिल्ले से चली थी शिवजी की बारात

    -लक्ष्मण ने स्थापित किया था त्रेता में श्री गुरु गोरखनाथ धूना

    जितेंद्र अग्रवाल, अंबाला शहर

    अंबाला ने केवल ऐतिहासिक रूप से ही महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां स्थित धार्मिक स्थल लोगों की मुरादें पूरी करने में सबसे आगे हैं। ऐसे ही एक धार्मिक स्थल है टिल्ला श्री गुरु गोरखनाथ, जिसमें असंख्य लोगों की अगाध श्रद्धा है।

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    यहा अब भी जो श्रद्धालु श्रद्धा विश्वास के साथ आते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वर्तमान गद्दीनशीन पीर पारसनाथ इस दरगाह की उन्नति के लिए तन, मन एवं धन से कार्य कर रहे हैं जिसके चलते यह मंदिर विशाल भवन के रूप में बदल गया है। महिमा बताते हुए श्रद्धालु कहते हैं कि टिल्ला मन्दिर चमत्कारों से भरा पड़ा है। टिल्ले पर सबकी मुरादें पूरी होती हैं। वह बताते हैं कि इस गद्दी को वरदान प्राप्त हैं कि जिनके संतान नहीं होती, अगर वे सच्चे मन से मुराद मागे तो वह जरूर पूरी होती हैं। हर वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर हजारों परिवार जिन्हें गुरु कृपा से पुत्र रत्‍‌न की प्राप्ति हुई। दूर-दराज से आकर गुरु महाराज से आशीर्वाद लेते हैं।

    टिल्ले में धूने का महत्व सबसे अलग

    प्रत्येक योगी के मठ की तरह यहां भी धूना अवश्य बना हुआ है, जिसे नाथ जी का धूना कहकर पुकारा जाता है तथा धूने की भवभूति प्रसाद के रूप में सेवकों तथा श्रद्धालुओं को दी जाती है। पीर कलानाथ, पीर समुद्रनाथ, पीर श्रद्धानाथ की कड़ी में अब पीर पारस नाथ टिल्ला पर गद्दीनशीन हैं। पीर पारसनाथ जी की कोशिशों से जब गद्दी दरगाह टिल्ला श्री गोरखनाथ, नाथ सागर नजदीक जगाधरी गेट अंबाला शहर में विशाल भवन में है।

    योगियों का परम पावन तीर्थ: टिल्ला

    दरअसल प्राचीनकाल से ही टिल्ला गुरु गोरखनाथ भारत में योगियों का परम पावन तीर्थ स्थल माना जाता है। भारत में नाथ योगियों के अनेक मठों में से टिल्ले के मठ का स्थान सर्वोपरि है। बारह पंथों के योगी टिल्लाधीशों की सर्वोच्चता स्वीकार करते रहे है। आदिकाल में गुरु गोरखनाथ, चर्पटनाथ, जलंधरीनाथ, हाडी भडनाथ, नृप भर्तृहरी और अनेक अन्य नाथों व सिद्धों के वहा रहने के प्रमाण मिलते है।

    शिव विवाह व लक्ष्मण के शिष्यत्व से जुड़ा है टिल्ला :

    मान्यता है कि पूर्व कल्प में जब सती का दूसरे जन्म में भगवान शकर से विवाह हुआ था तो शिवजी की बारात इस गोरख टिल्ले से ही चली थी। इसी प्रकार जेहलम जिले के नमक के पहाड़ी क्षेत्र में स्थित टिल्ले का ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व भी अद्वितीय है। इस टिल्ले को टिल्ला बाल गुदाई और लक्ष्मण का टिल्ला भी कहा जाता है जो कि अब पाकिस्तान में है। त्रेता युग में राम अवतार के पश्चात अपने अंतिम चरण में लक्ष्मण योगी बनकर टिल्ले पर आ गए और उन्होंने श्री गोरखनाथ का एक धूना भी स्थित था।

    गुरु गोरखनाथ का धूना पाकिस्तान में :

    गुरु गोरखनाथ का मूल टिल्ला पाकिस्तान के जेहलम में है। इसके विषय में कहा जाता है कि सर्वप्रथम इस स्थान पर श्री गुरु गोरखनाथ ने धूना जलाया था। तब से अनवरत वह धूना वहीं पर स्थित है। जब गोरखनाथ टिल्ले का स्थान छोड़कर जाने लगे तो उन्होंने उस स्थान पर एक किल्ला गाड़ दिया। बाद में उस लकड़ी ने एक वृक्ष का रूप धारण कर लिया। इस वृक्ष की दो टहनिया अथवा शाखाएं थी। जिनमें एक शाखा सूखी और दूसरी शाखा हरी बन गई। इस विषय में एक कहावत हैं- जब तक किल्ला, तब तक टिल्ला। आधा सूखा, आधा गिल्ला। इस किल्ले के विषय में गोरखनाथ स्वयं कह गए थे कि जब तक यह किल्ला उक्त स्थान पर यथावत स्थापित होगा, तब तक टिल्ले का मठ भी सुरक्षित रहेगा और जब इस किल्ले को उखाड़ दिया जाएगा तो टिल्ला भी नष्ट हो जाएगा। पाकिस्तान में टिल्ले के भवन पर भी धूना हर समय जलता रहता था।

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