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    'वेद व्यास का अर्थ है वेदों का विस्तार करना'

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    Updated: Tue, 06 Oct 2015 07:22 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, अंबाला : वेद व्यास का अर्थ है वेदों का विस्तार करना। किस प्रकार भागवत के रचयिता श्र

    जागरण संवाददाता, अंबाला : वेद व्यास का अर्थ है वेदों का विस्तार करना। किस प्रकार भागवत के रचयिता श्री वेद प्रकाश ने एक वेद को सरलता से आम लोगों को समझाने के लिए उस वेद का चार वेदों में अलग-अलग विषय अनुसार विस्तार किया। उन्होंने महाभारत की रचना की, पुराणों को रचा, उपनिषद, वेदांत सुत्र आदि की रचना की। परंतु इतनी रचना करने पर भी श्री वेद व्यास जी का मन शांत नहीं हुआ, तब उनके गुरुदेव श्री नारद जी ने स्वयं उनसे कहा कि तुमने बाकि सब तो किया, लेकिन भगवान श्री कृष्ण की मधुर माखन चोरी, गौचारण सखाओं खेल आदि और गोपियों के प्रेम की व्याख्या आदि नहीं की, इसलिए तुम्हारा मन अशांत अर्थात खिन्न है। यह बातें मंगलवार को छावनी के बीपीएस प्लेनेटोरियम में चल रही पंचम वार्षिक भागवत सप्ताह के दूसरे दिन वृंदावन से आए कथा वाचक श्रीश्रीमद भक्ति वेदांत सिद्धांती महाराज ने कही।

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    कथा में मौजूद भक्तों को वेदांत सिद्धांती महाराज ने भागवत कथा के परीक्षित महाराज, भागवत कथा के मूल वक्ता शुक्रदेव गोस्वामी, भागवत के रचयिता श्री वेद व्यास और वेद व्यास के गुरूदेव श्री नारद जी के जीवन बारे विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने भक्तों को नारद के जीवन से जुड़ी जीवनी के बारे में बताने के साथ ही उनके भक्तों की महिमा का भी गुणगान किया। उन्होंने कहा कि तुमने साधु संग की महिमा का भी गुणगान नहीं किया है। उन्होंने बताया कि इस प्रकार श्री नारद जी अपने पूर्व जन्म में उन्हें साधु संग और साधुओं की सेवा से परम भगवान श्री कृष्ण के प्रेम की प्राप्ति हुई। प्रेम ही श्रीमदभागवत की मूल विषय वस्तु है।

    उन्होंने भक्तों को बताया कि जिस प्रेम से सभी प्राणी यहां तक की पशु-पक्षी, कीट पतंग भी प्रेम चाहते है तथा किसी को प्रेम करते है और प्रेम की जगह जगह खोज कर रहे हैं। यह भागवत उसी सनातन प्रेम को प्रदान करती है। जिसकी आज सारे विश्व को आवश्यकता है यदि सारे प्राणियों में प्रेम होगा तो उस जगह से आंतकवाद, एक देश का दूसरे देश के साथ युद्ध, एक जाति का दूसरी जाति से नफरत और अन्य सभी युक्त की समस्याओं को समूल नष्ट किया जा सकता है। कथा के बाद सभी भक्तों को प्रसाद का वितरण किया गया।