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    'लड़कों की भाति लड़कियों की भी मनाएं लोहड़ी'

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    Updated: Sun, 11 Jan 2015 01:04 AM (IST)

    संवाद सहयोगी, बराड़ा : छोटी-छोटी खुशियों का संग्रह है जिंदगी। खुशियों का पूरा गगन किसी के भी पास नहीं ...और पढ़ें

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    संवाद सहयोगी, बराड़ा : छोटी-छोटी खुशियों का संग्रह है जिंदगी। खुशियों का पूरा गगन किसी के भी पास नहीं है कि मनुष्य जब चाहे खुशी का सितारा तोड़ कर जिंदगी को सजा ले। अगर मनुष्य की जिंदगी से मेले-त्योहार व महत्वपूर्ण दिनों को हटा दिया जाए तो समस्त जिदंगी नीरस, फीकी एवं बेस्वाद होकर रह जाएगी। मेले और त्योहार मनुष्य की जिंदगी में खूबसूरती, सुंदरता, जीने की उमंग तथा ललक पैदा करते हैं। इन त्योहार में से एक मुख्य त्यौहार है लोहड़ी। लोहड़ी समस्त मजहबों, धर्मो के लिए एकता का प्रतीक तथा संस्कृति का एक भव्य उपहार है। लोहड़ी माघ महीने की संक्राति से पहली रात को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और आसपास के राज्यों में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। लड़के के जन्म की पहली लोहड़ी हो या बेटे की शादी की पहली लोहड़ी, तो लोग इस पर्व को दुगने उत्साह के साथ मनाते है जबकि प्रचलित लोककथा के अनुसार यह त्यौहार गरीब दो लड़कियों की शादी से संबधित है और हमारी मानसिकता देखिये कि हम रिश्तों में मधुरता एवं प्रेम का प्रतीक लोहड़ी का यह त्योहार अब सिर्फ़ लड़को के जन्म और शादी की खुशी में मना रहे है। लोहड़ी के साथ कोई धार्मिक घटना नहीं जुड़ी हुई है, पर इससे जुड़ी प्रमुख लोककथा दुगा भट्टी की है जो मुगलों के समय का बहादुर योद्धा था। मुसीबत की घड़ी में दुगा भट्टी ने एक ब्राह्मण की मदद की और लड़के वालो को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का ब्याह करवाया, दुगे ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया और शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी और इसी कथा को लोहड़ी वाले दिन गीत के रूप में अब तक गाया जाता है। यह त्यौहार लड़कियों से संबधित होने के बावजूद समाज में अभी भी रूढि़वादी मान्यताओं के चलते लड़कियों की लोहड़ी मनाने में भेद-भाव किया जा रहा है। लड़कियों को समाज में बराबर का स्थान दिलाने के लिए , लड़कियों के घटती संख्या के चलते समाज में लड़कियों की शिक्षा, सुरक्षा के लिए सकीर्ण मानसकिता को बदलने पर जोर दिया जाना चाहिए। इसके लिए लड़के और लड़की में भेदभाव को समाप्त करना होगा। कई बुद्धिजीवियों से जब इस बारे में चर्चा की तो यह बात सामने आई कि लोहड़ी जैसे पर्व जिसे हमेशा से ही विशेष रूप से लड़कों से संबधित समझा जाता है, लड़कियों की भी लोहड़ी मनाए जाने की आवश्यकता है।

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    एसएमएस स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. त्रिलोचन भाटिया का कहना है आज लड़किया हर क्षेत्र में लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है और लड़कों से एक कदम आगे है। दुखदायी पहलू यह है कि आज भी बहुत से लोग लड़का व लड़की में सामाजिक स्तर पर अंतर समझते हैं। बिना भेदभाव के लड़कों व लड़कियों दोनों को एक बराबर सम्मान देना चाहिए। अब वक्त आ गया है रूढि़वादी मान्यताओं को खत्म कर-लड़कियों की भी लोहड़ी मनाने का, तभी ये लड़के-लड़की के भेद-भाव को खत्म किया जा सकता है।

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    हमें अपनी सोच को बदलने की जरूरत हैं

    एसएमएस ग‌र्ल्ज कालेज की लेक्चरर डॉ. पुष्पा का कहना है कि लड़किया किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कम नहीं हैं। लड़किया निरन्तर सेना, सुरक्षा, व विभिन्न क्षेत्रों में ऐतिहासिक बुंलदिया प्राप्त करके देश का नाम रोशन कर रही है। लड़कियों के संबंध में हमें अपनी सोच को बदलने की जरूरत हैं। हमें लोहड़ी के पवित्र त्योहार पर लड़कियों से भेदभाव नहीं करना चाहिए व लड़कियों की लोहड़ी भी धूमधाम से मनानी चाहिए। इससे जहा लड़कियों के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आएगा वहीं प्रदेश में लिंग अनुपात भी सामान्य होगा।

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    महिलाओं ने विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई

    टीचर प्रीती छाबड़ा का कहना है कि शिक्षा, राजनीति, खेल व उद्योग जगत में लड़कियों ने विश्व में अपना परचम लहराया हैं। सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल, कल्पना चावला, सोनिया गाधी, सुषमा स्वराज, कुमारी सैलजा आदि ने महिला होकर ही विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई हैं। जिसके लिए महिलाएं आज देश के लिए प्ररेणास्त्रोत बन गई हैं। उन्होंने कहा कि हमें बेटो की तरह ही बेटियों का जन्म दिन, लोहड़ी सहित अन्य त्यौहार मनाने चाहिए। लड़के-लड़कियों में किए जाने वाले भेदभाव के खिलाफ मुहिम चलाकर लोगों को जागरूक करते हुए लड़कियों की भी लोहड़ी मनाने के अलावा समाज को लड़कियों के संबंध में अपनी सोच को सार्थक करना चाहिए।

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    भ्रूणहत्या जैसे जघन्य अपराधों के प्रति जागरूक करना होगा

    प्राध्यापिका डॉ. नेहा बठला का कहना है कि सरकार द्वारा प्रदेश में लिंगानुपात के अंतर को समाप्त करने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की सफलता के लिए हमें एकजुट होकर लोगों को भ्रूणहत्या जैसे जघन्य अपराधों के प्रति जागरूक करना होगा। सरकार द्वारा लड़कियों के जन्म से लेकर उनकी शिक्षा तक जो सुविधाएं व योजनाएं चलाई जा रही हैं वह काबिले तारीफ है। इससे लड़कियों में सम्मान से जीने की भावना का विकास हो रहा है।